बुलेटिन में सामने आई यह बातें 6 जनवरी को बुलेटिन जारी किया गया, जिसमें प्रदेश में संचालित कुल 72 संयंत्रों में से 66 का निरीक्षण किया गया था, जो कि मानकों के अनुसार है। वहीं 11 संयंत्र मानकों को पूरा नहीं कर पा रहे है। इसके बाद 9 जनवरी को जारी बुलेटिन के अनुसार 43 संयंत्रों का निरीक्षण किया गया। यह सभी मानकों को पूरा करते पाए गए, जबकि 10 जनवरी की बुलेटिन में 55 संयंत्रों का निरीक्षण किया गया। हालांकि, एसटीपी की कुल शोधन क्षमता के मुकाबले कितने सीवेज का मानकों के मुताबिक उपचार हो रहा है इसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। वहीं गंगा नदी जल गुणवत्ता की रियल टाइम मॉनिटरिंग में यह भी पाया गया कि ज्यादातर स्थलों पर कई पैरामीटर्स का स्तर सामान्य दर्ज हुआ है। हालांकि, यह प्रदूषण कंट्रोल करना आसान काम नहीं था। इसके लिए चमड़ा इकाई, पेपर मिल, डिस्टिलरी सहित ऐसे उद्योग का इस्तेमाल रोका गया, जो गंगा को दूषित कर रहे थे। वहीं नाले साफ करने के लिए बायोरेमिडिएशन तकनीक की मदद से प्रदूषण रोका गया।
इन जगहों को किया गया टार्गेट गंगा पर स्थापित जल गुणवत्ता अनुश्रवण स्थलों से जुड़ी रियल टाइम मॉनिटरिंग में उन सभी स्थानों को लिया गया था, जहां बोर्ड की नवंबर व दिसंबर 2018 की नवीनतम मॉनिटरिंग रिपोर्ट में नदी जल गुणवत्ता को असंतोषजनक पाया गया। कानपुर, बिठूर, कन्नौज, बदायूं, वाराणसी पर बीओडी, सीओडी व टोटल सस्पेंडेड सॉलिड को मानक सीमा के भीतर दर्ज किया गया। हालांकि, इन बातों को नदारद कर नदी विशेषज्ञ यूके चौधरी ने कहा कि गंगा की ऑक्सीजन वहन करने की क्षमता 12-14 पीपीएम है। कहीं पर भी ऑक्सीजन का स्तर इतना ही है। बीडीओ का स्तर पर एक से दो मिग्री के बीच मिला है। ऐसे में किस तकनीक से किस कारण से गंगा का प्रदूषण कम हो गया। उनका दावा है कि गंगा इस तरह से प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकती है।