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जानें क्या है ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ जिसपर टिकी अयोध्या विवाद की आखिरी सुनवाई

locationलखनऊPublished: Oct 16, 2019 03:38:59 pm

Submitted by:

Karishma Lalwani

– राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मुद्दे पर आखिरी दिन की सुनवाई मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर
– हिंदू-मुस्लिम पक्षकारों ने मामले में रखी अपनी बात

जानें क्या है 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' जिसपर टिकी अयोध्या विवाद की आखिरी सुनवाई

जानें क्या है ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ जिसपर टिकी अयोध्या विवाद की आखिरी सुनवाई

लखनऊ. लंबे अरसे से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद (Ram Mandir-Babri Maszid) पर बहस का आज अंतिम दिन हो सकता है। सीजेआई रंजन गोगोई ने बुधवार शाम 5 तक अंतिम सुनवाई की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अयोध्या मामले में सुनवाई के 40वें दिन ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ (Molding of Relief) पर बहस हो सकती है। अयोध्या मामले में फैसले का इंतजार कर रहे लोगों को यह जान लेना चाहिए कि मोल्डिंग ऑफ रिलीफ है क्या।
कोर्ट में कोई फरियादी अपनी मांग को लेकर आता है और अपने पक्ष में सुनाए गए फैसले को वो इंसाफ मिलना कहता है। अयोध्या मामले में मंदिर-मस्जिद के पैरोकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सभी पक्षकारों की मांग थी कि विवादित जमीन उन्हें दी जानी चाहिए। वे ही इसके असली मालिक हैं। उनका ही अधिकार और कब्जा होना चाहिए।
अयोध्या का मामला संवेदनशील है। लिहाजा कोर्ट ने इस बात का ध्यान रखकर इंसाफ कैसे हो, इसका प्रावधान तय किया। कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों को सुनने के बाद वह मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर भी चर्चा करेगा।
क्या है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ

मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का प्रावधान सिविल सूट वाले मामले से होता है। मालिकाना हक वाले मामलों में इस शब्द का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है। वकील विष्णु जैन के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट संविधान के आर्टिकल 142 और सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल किया जाता है। याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है अगर वह पूरी नहीं होती है, तो विकल्प क्या है जो उसे दिया जाए। यानी इसे सांत्वना पुरस्कार भी कहा जाता है। इसका मतलब कि दो दावेदारों के किसी विवादित जमीन पर बहस करने पर एक पक्षकार के हक में फैसला सुनाया जाए, तो दूसरे पक्षकार को क्या दिया जाए। ऐसे में कोर्ट मामले की गंभीरता को देखते हुए दूसरे पक्ष को जमीन का कुछ हिस्सा या कुछ और देकर उस मुद्दे को वहीं खत्म करे।
दोनों पक्षों को चाहिए जमीन

मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के तहत मामला सुलझाने पर मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन ने इस बात के संकेत दिए ऐसे में मुस्लिम पक्ष को 6 दिसंबर, 1992 से पहले वाली हालत की मस्जिद की इमारत चाहिए। वहीं, हिंदू पक्षकारों का कहना है कि उन्हें राम जन्मस्थान चाहिए।
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