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26 हजार फुट ऊपर दो फ्लाइट आ गईं आमने-सामने, 350 यात्रियों ने हवा में देखा मौत का तांडव, मचा हड़कंप

locationलखनऊPublished: Feb 07, 2019 12:49:39 pm

जेट एयरवेज और गो एयर की फ्लाइट के पायलटों को आमने-सामने आने की मिली चेतावनी और फिर…

Jet Airways and GO Airlines Flight massive accident escape

26 हजार फुट ऊपर दो फ्लाइट आ गईं आमने-सामने, 350 यात्रियों ने हवा में देखा मौत का तांडव, मचा हड़कंप

लखनऊ. लखनऊ में 4 फरवरी की शाम हजारों फुट की ऊंचाई पर दो विमान आमने-सामने की भिड़ंत से बाल-बाल बच गए। एविएशन विशेषज्ञ अब यह जानने में जुट गए हैं कि आखिर गलती किस सिरे पर हुई। विमानों के टकराने की यह नौबत आई ही क्यों। एविएशन विशेषज्ञ इसकी जांच कर जिम्मेदारी तय करने की कार्रवाई में जुट गए हैं।

टल गया बहुत बड़ा हादसा

26 हजार फुट की ऊंचाई पर जेट एयरवेज (Jet Airways) के पायलट को अलार्म मिला। विमान का खास उपकरण टीसीएएस पहले तो चेतावनी देता है। उसके बाद वह आरए यानी सीधे पायलट को निर्देश देता है कि तत्काल रास्ता बदलें नहीं तो टकरा जाएंगे। जेट-गो एयर दोनों के पायलटों को कुछ इसी तरह दूसरे स्तर की चेतावनी मिली। जिसके बाद दोनों विमान में हड़कंप मच गया। विमान में अचानक बढ़ी चहलकदी से दोनों विमानों के करीब 350 यात्रियों में भी दहशत का माहौल बन गया।

36 हजार फुट पर आफत में फंसी 350 यात्रियो की जान

जब जेट एयरवेज का विमान गुवाहाटी से दिल्ली जा रहा था। तभी जेठ की उड़ान 9 डब्ल्यू 606 सात बजकर 22 मिनट बजे करीब 28 हजार फुट की ऊंचाई पर थी। वहीं 26 हजार फुट पर गो एयर (Go Airlines) की उड़ान जी8-145 दिल्ली से रांची के रास्ते में थी। गो एयर (Go Air) की उड़ान को 26 हजार फुट की ऊंचाई पर आने का निर्देश था। दोनों विमान एक दूसरे के करीब आ रहे थे। ऐर अचानक इतना नजदीक आ गए कि दोनों की टकराव रोधी प्रणाली का अलार्म बजने लगा। एटीसी सूत्रों के मुताबिक जेट की फ्लाइट में 200 और गो एयर की फ्लाइट में 150 यात्री सवार थे। जिन्होंने 26 हजार फुट की ऊंचाई पर मौत का इस तांडव को टलते एहसास किया।

यहां से मिलते हैं निर्देश

घरेलू कमर्शियल हवाई जहाज 20 से 46 हजार फुट की ऊंचाई पर चलते हैं। लंबी दूरी वाले विमानों को पच्चीस हजार से ऊपर का रास्ता दिया जाता है। एयर ट्रैफिक कंट्रोलर के अलग-अलग अधिकार क्षेत्र हैं। 24 हजार फुट तक की ऊंचाई के विमानों को दिशा-निर्देश देना लखनऊ एटीसी का काम है। इसके ऊपर 46 हजार फुट तक दिल्ली और वाराणसी एयरपोर्ट के कंट्रोल टॉवर दीवानों को निर्देश देते हैं।

निर्देश देने का ये होता है सिस्टम

रडार के जरिए विमानों पर नजर रखी जाती है। सरफेस मूवमेंट रडार से रनवे पर कोई अवरोध न आए इसकी जानकारी के लिए होता है। टर्मिनल एप्रोच राडार या एप्रोच टर्मिनल रडार रनवे से विमान ऊपर उठने के बाद से 14000 फुट या जो डीजीसीए तय करे, वहां तक नजर रखता है। कंट्रोलर का काम हवाई अड्डे पर उतरने या उड़ान भरने वाले विमानों को धीरे-धीरे नीचे लाना होता है। उनको एक के पीछे एक इस तरह से स्थान देना होता है, जिससे वे आपस में टकराने न पाएं। उसके बाद रूट रडार होता है। जो एयरपोर्ट से लेकर दूसरे एयरपोर्ट के क्षेत्र तक आने-जाने वाले सभी विमानों पर नजर रखता है। रूट कंट्रोलर से संबंधित एयरपोर्ट ही नहीं, उसके क्षेत्र से गुजर रहे अन्य विमानों को भी दिशा निर्देश देता है।
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