इस संबंध में जब राजधानी के निजी विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राअों से बातचीत की गई तो इस फैसले पर किसी ने हामी भरी तो किसी ने इसको गलत बताया। छात्रा ज्योति गुप्ता ने बताया कि यह फैसला बिल्कुल गलत है। कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए। इसका गलत वायदा कोई भी उठा सकता है। छात्र राकेश गुप्ता कहते हैं कि कोर्ट के एेसे फैसले प्रेमी प्रेमिकाअों के बीच विवाद पैदा कर सकती है। सही मायने में देखा जाए तो यह फैसला बिल्कुल गलत है।
वहीं कुछ युवाअों ने इस फैसले को सही ठहराया है। कभी- कभी रिलेश्नशिप में चीजे ज्यादा लंबी नहीं चल पाती है। कुछ बातों से रिश्ते टूट जाते है। फिर उसका गलत उपयोग किया जाता है। पर कोर्ट के इस फैसले से एेसी खबरों रोक लगेगी।
वहीं कुछ युवाअों ने इस फैसले को सही ठहराया है। कभी- कभी रिलेश्नशिप में चीजे ज्यादा लंबी नहीं चल पाती है। कुछ बातों से रिश्ते टूट जाते है। फिर उसका गलत उपयोग किया जाता है। पर कोर्ट के इस फैसले से एेसी खबरों रोक लगेगी।
न्यायमूर्ति विभु भाखरू ने कहा, ‘जहां तक यौन संबंध बनाने के लिए सहमति का सवाल है, 1990 के दशक में शुरू हुए अभियान ‘न मतलब न’, में एक वैश्विक स्वीकार्य नियम निहित है। मौखिक ‘न’ इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यौन संबंध के लिए सहमति नहीं दी गई है।’ उन्होंने कहा, ‘यौन सहमति पर ‘न का मतलब न’ से आगे बढ़कर, अब ‘हां का मतलब हां’ तक व्यापक स्वीकार्यता है। इसलिए यौन संबंध स्थापित करने के लिए जब तक एक सकारात्मक, सचेत और स्वैच्छिक सहमति नहीं है, यह अपराध होगा।’