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योगी सरकार पर आरोप, रासुका से मुसलमानों का उत्पीड़न

locationलखनऊPublished: Sep 24, 2018 01:35:46 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

योगी आदित्यनाथ सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि प्रदेश में रासुका का दुरुपयोग हो रहा है

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योगी सरकार पर आरोप, रासुका से मुसलमानों का उत्पीड़न

लखनऊ. योगी आदित्यनाथ सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि प्रदेश में रासुका का दुरुपयोग हो रहा है। खासकर एक जाति और धर्म विशेष के लोगों को परेशान करने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया जा रहा है। माना जा रहा है कि पिछले 10 महीने में करीब 160 लोगों को रासुका के तहत गिरफ्तार किया गया। जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उन मुस्लिम परिवारों का आरोप है कि योगी सरकार उनके परिजनों को सांप्रदायिक कारणों से परेशान कर रही है।
16 जनवरी 2018 को उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून और व्यवस्था की स्थिति पर नियंत्रण रखने के लिए 160 लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाया। इसके बाद सरकार पर आरोप लग रहा है कि बुलंदशहर और सहारनपुर जैसे स्थानों पर हुई सांप्रदायिक हिंसा में हिंदू युवा वाहिनी और भाजपा के के लोग भी शामिल थे लेकिन यहां जिन पर रासुका लगा उनमें अधिकतर मुस्लिम हैं। रासुका मेंभीम सेना के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद भी गिरफ्तार हुए थे। इनको रिहा कर दिया गया। लेकिन अभी तमाम लोग जेल में बंद हैं।
पूर्वांचल में की गयी एक पड़ताल के अनुसार एक वर्ष में रासुका में अधिकतर लोगों की गिरफ्तारी सांप्रदायिक झड़प की घटनाओं के बाद हुई। लेकिन इसमें ज्यादातर मुसलमानों को जेल भेजा गया। पिछले साल कानपुर में हुईं दो बड़ी सांप्रदायिक झड़पों में भी कमोबेश ज्यादा गिरफ्तारियां मुसलमानों की हुईं। लेकिन, इसमें रामलला कमेटी के कई लोग गिरफ्तार किए गए जिन्हें बाद में रिहा कर दिया गया। जबकि जूही परम पुरवा बस्ती के गिरफ्तार 57 लोगों में से अधिकतर रिहा हो गए। पर अभी हाकिम ख़ान, फरक़ुन सिद्दीक़ी और मोहम्मद सलीम आदि जेलों में बंद हैं।
इसी तरह बहराइच के नानपारा में पिछले साल हुए सांम्प्रदायिक तनाव के बाद यहां के मजदूर मुन्ना, चूड़ी विक्रेता असलम, मदरसे में अध्यापक मक़सूद रज़ा, रिक्शा चालक नूर हसन और एक छात्र रासुका के तहत पिछले नौ महीने से जेल में हैं। यह सभी मुस्लिम हैं। जबकि, बाराबंकी जिले के रामनगर थाने की पुलिस ने पिछले साल यहां हुए एक सांप्रदायिक तनाव के बाद 12 मुस्लिमों के खिलाफ गंभीर आरोपों में और 40-45 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। इनमें से रिज़वान, ज़ुबैर, अतीक और मुमताज को रासुका के तहत हिरासत में लिया गया।
पुलिस ने आरोपों से किया इनकार
उत्तर प्रदेश पुलिस के डीआईजी (कानून-व्यवस्था) प्रवीण कुमार इस आरोप से इनकार करते हैं। उनका कहना है, ‘हम हिंदू-मुस्लिम के बीच भेदभाव नहीं करते। सारी गिरफ्तारियां अलग-अलग हैं और ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध हैं जो इलाके में शांति और सौहार्द को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
क्या कहते हैं जानकार
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी का मानना है कि रासुका के तहत दर्ज मामले उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और दलितों को प्रताडि़त करने की हिंदुत्व परियोजना का अंग हैं।
-ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के कार्यकारी निदेशक क्रान्ति एलसी यह तर्क रखते हैं कि ऐसे बहुत से मामले न्यायपालिका के सामने आने चाहिए। वे कहते हैं, ‘यह स्पष्ट है कि जांच निष्पक्ष नहीं है क्योंकि सभी गिरफ्तारियां हाशिए के समुदायों के लोगों की हैं। इस पर संवैधानिक ढंग से विचार किया जाना चाहिए।
-सामाजिक संस्था रिहाई मंच के कार्यकर्ता राजीव यादव के मुताबिक हिंदू समाज पार्टी के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार न किया जाना पुलिसिया कार्रवाई के पूर्वाग्रह से ग्रसित होने का सबूत है।
क्या है रासुका
रासुका कानून 23 सितंबर 1980 को लागू हुआ था। यह कानून केंद्र और राज्य सरकारों को किसी भी व्यक्ति को हिरासत में रखने का अधिकार देता है। ताकि उसे भारत की सुरक्षा, विदेशों के साथ भारत के संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था को कायम रखने या समुदाय के लिए जरूरी और सेवाओं की आपूर्ति बनाए रखने के विरुद्ध किसी भी तरह की हानिकारक गतिविधि को अंजाम देने से रोका जा सके। इस कानून में हिरासत की अधिकतम अवधि 12 महीने है। इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारणों की सूचना दिए बिना भी 10 दिन तक हिरासत में रखा जा सकता है।

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