वहीं दूसरी ओर 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव का छत्तीसगढ़ में कांग्रेस विरोधी रुख सामने आया है। जिसके बाद अब उत्तर प्रदेश में अब गठबंधन के आसार कम हो गये हैं। वहीं अगर बसपा सुप्रीमो मायावती की बात की जाए तो वो पहले ही कांग्रेस के खिलाफ अपनी तल्खी जाहिर कर संकेत दे चुकी हैं कि वह उससे दूरी ही बनाए रखेंगी। ऐसे में यूपी में भाजपा के खिलाफ गठबंधन में कांग्रेस को लिया जाना मुश्किल ही लग रहा है।
समाजवादी पार्टी ने अब कांग्रेस पर हमले तेज कर दिये हैं और उसकी तुलना भाजपा से करनी शुरू कर दी है। रविवार को छत्तीसगढ़ में अखिलेश यादव ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा ने साथ मिलकर देश को पीछे ले जाने का काम किया है। देश के बैंकों का पैसा उद्योगपतियों को कांग्रेस और भाजपा ने दिया। राफेल जहाज में पहले कांग्रेस ने खेल किया अब भाजपा कर रही है।
इससे पहले अखिलेश यादव ने कांग्रेस को चेतावनी दी कि अगर ‘साइकिल’ को रोकोगे तो हम उसके हैंडल से ‘हाथ’ को हटा देंगे। इससे पहले उन्होंने एक जनसभा में कहा था कि कांग्रेस व भाजपा एक ही राह पर हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेता सब एक दूसरे से मिले हुए हैं। गरीब, किसान व नौजवानों की किस्मत बनाने में उनकी कोई रुचि नहीं है।
असल में बसपा सुप्रीमो मायावती पहले से ही कांग्रेस को निशाने पर लिये हुए हैं। यूपी में समाजवादी पार्टी हर हाल में बसपा से तालमेल कर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है ताकि गठबंधन के जरिए भाजपा को रोका जा सके। इसके लिए अखिलेश यादव कई बार सीटों को लेकर भी नर्म रुख अपनाए हुए हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक भी है कि सपा बसपा की राह पर चलते हुए कांग्रेस को निशाने पर रखे। वहीं मायावती ने गठबंधन में सम्मानजनक सीटें न दिये जाने से नाराज होकर ऐलान कर दिया कि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होगा।
इस फॉर्मूले पर बन सकती है बात
वहीं समाजवादी पार्टी सूत्रों के मुताबिक बीएसपी अगर अखिलेश यादव को 2022 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए स्वीकर करती है तो सपा भी 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती को पीएम पद के लिए अपना समर्थन देगी। वहीं सपा-बसपा का गठबंधन अगर होता है तो लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा 60 (बसपा):40 (सपा) के अनुपात में होगा। जबकि विधानसभा चुनाव में यह फॉर्मूला बिल्कुल पलट जाएगा और 60 (सपा):40 (बसपा) के मुताबिक सीटों का बंटवारा होगा। हालांकि छत्तीसगढ़ और यूपी की स्थितियों में बड़ा फर्क है। छत्तीसगढ़ में बीएसपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि यूपी में मायावती की पूरी राजनीतिक यूपी में ही केंद्रित है। इसलिए अखिलेश से किसी भी गंठबंधन से पहले वह भविष्य की संभावनाओं को भी अच्छी तरह परखेंगी।