• अगर माँ की मृत्यु हो गयी हो।
• अगर माँ एच॰आई॰वी॰/एड्स से पीड़ित हो।
• किसी कारण से शिशु को स्तनपान न करा पा रही हो।
• यदि शिशु परित्यक्त या गोद लिया हुआ हो।
अगर डिब्बे वाला दूध लाभदायक नही है तो इसको रोकने के लिए शासन ने क्या कदम उठाये हैं माँ के दूध के स्थान पर डिब्बा बंद पाउडर बनाने वाली कंपनियों ने विज्ञापन द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की कोशिश करी। इससे स्तनपान और पूरक आहार का महत्व समाज में घटता गय। इसलिए भारत सरकार ने 1992 में शिशु दुग्धाहार विकल्प, दुग्धपान बॉटल एवं शिशु आहार( उत्पादन आपूर्ति, एवं वितरण का नियमन ) अधिनियम, 1992 पारित किया गया जो कि 1 अगस्त 1993 को लागू किया गया तथा 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
• 2 साल से कम आयु के बच्चों को तैयार किये गए डिब्बा बंद अन्न पदार्थ का विज्ञापन या प्रोत्साहन देने पर पाबन्दी है।
• किसी भी प्रसार माध्यम से माँ के दूध का पर्याय समझाकर डिब्बा बंद पाउडर का प्रचार वर्जित है।
• प्रसव पूर्व देखभाल और शिशु आहार के सम्बन्ध में शैक्षणिक सामग्री विज्ञापन हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गए हैं।
• माँ और स्वास्थय सेवक की भेंट, वस्तु या अन्न पदार्थ के मुफ्त नमूने देने को वर्जित किया गया है।
• शैक्षणिक साहित्य और बाल आहार के डिब्बे को सैंपल या डोनेशन के रूप में देने पर पाबंदी है।
• बाल आहार के डिब्बों पर बच्चों या माँ के चित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• स्वास्थय संस्था को किसी भी प्रकार का डोनेशन देने के लिए इन कंपनियों पर पाबंदी है।
• इस प्रकार की सामग्री की बिक्री के लिए कर्मचारियों को कोई भी प्रोत्साहन रुपी रकम पर पाबन्दी लगायी गयी है।
• सभी शिशु दुग्ध विकल्प व Feeding Bottles पर यदि इंग्लिश में कहना चाहते हैं तथा स्थानीय भाषा में लिखा होना चाहिए कि “स्तनपान सर्वोत्तम है।
• लेबल्स पर किसी भी महिला, शिशु व ऐसे की भी वाक्य का प्रयोग नहीं करना जो कि एस प्रकार के उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देते हों।
• पोस्टर्स के द्वारा विज्ञापन पर मनाही।