खुद का पलड़ा भारी मान रही सपा दरअसल 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में
समाजवादी पार्टी के प्रदर्शन के आधार पर
अखिलेश यादव गठबंधन में मुख्य भूमिका में रहना चाहते हैं। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी, जबकि सपा ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में भी सपा ने बीएसपी से ज्याटा सीटें जीती थीं। सूत्रों के मुताबिक इन चुनावों में सीटों के लिहाज से सपा अपनी पलड़ा बसपा से भारी मानती है। लेकिन बसपा प्रमुख मायावती भी कह चुकी हैं कि गठबंधन में अगर उन्हें सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं तो वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेंगी।
अखिलेश-मायावती में हो सकती है ये डील आपको बता दें कि अखिलेश यादव शुरू से ही कहते रहे हैं कि उनका प्रधानमंत्री बनने का कोई सपना नहीं और वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में ही सक्रिय रहेंगे। वहीं दूसरी तरफ बसपा अपनी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती को पीएम कैंडीडेट की तरह पेश कर रही है। इसी को देखते हुए माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ का जोगी फॉर्म्युला उत्तर प्रदेश के सपा-बसपा गठबंधन में लग सकता है। जैसे मायावती ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी से गठबंधन किया और सीएम पद के लिए जोगी का नाम आगे बढ़ाया गया। जबकि जोगी के बयान के मुताबिक उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में मायावती को पीएम के उम्मीदवार के रूप में समर्थन करेगी। जोगी के इस फॉर्म्युले के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे कि यूपी में भी ऐसा ही रास्ता निकल सकता है। जिसके मुताबिक एसपी अपनी तरफ से मायावती को पीएम के चेहरे के तौर पर समर्थन करे और बसपा 2022 के लिए अखिलेश को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए स्वीकार करे।
इस फॉर्मूले पर बन सकती है बात वहीं समाजवादी पार्टी सूत्रों के मुताबिक बीएसपी अगर अखिलेश यादव को 2022 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए स्वीकर करती है तो सपा भी 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती को पीएम पद के लिए अपना समर्थन देगी। वहीं सपा-बसपा का गठबंधन अगर होता है तो लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा 60 (बसपा):40 (सपा) के अनुपात में होगा। जबकि विधानसभा चुनाव में यह फॉर्मूला बिल्कुल पलट जाएगा और 60 (सपा):40 (बसपा) के मुताबिक सीटों का बंटवारा होगा। हालांकि छत्तीसगढ़ और यूपी की स्थितियों में बड़ा फर्क है। छत्तीसगढ़ में बीएसपी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि यूपी में मायावती की पूरी राजनीतिक यूपी में ही केंद्रित है। इसलिए अखिलेश से किसी भी गंठबंधन से पहले वह भविष्य की संभावनाओं को भी अच्छी तरह परखेंगी।