scriptNissan को सफल कंपनी बनाने वाले कार्लोस का भारत में नहीं चला जादू, हर बार हुए फेल | When carlos Ghosn strategy failed in Indian auto Market | Patrika News

Nissan को सफल कंपनी बनाने वाले कार्लोस का भारत में नहीं चला जादू, हर बार हुए फेल

locationनई दिल्लीPublished: Nov 20, 2018 08:10:26 pm

Submitted by:

Ashutosh Verma

वित्तीय नियमों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार हुए निसान के चेयरमैन कार्लोस घोश्न दुनियाभर के आॅटो इंडस्ट्रीज में अपनी धाक जमाने में कामयाब रहे लेकिन भारतीय बाजार में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।

Carlos Ghosn

निसान को सफल कंपनी बनाने वाले कार्लोस का भारत में नहीं चला जादू, हर बार हुए फेल

नर्इ दिल्ली। दुनियाभर की आॅटो इंडस्ट्री में कार्लोस घोश्न सबसे अधिक जाना-माना नाम है। निसान मोटर्स लिमिटेड के चेयरमैन कार्लोस घोश्न को वित्तीय निमयों के उल्लंघन के मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। कंपनी भी उनके खिलाफ लगे आरोपों को लेकर आंतरिक जांच करने में जुटी हुर्इ है। अापको बताते चलें कि ये वही कार्लोस घोश्न हैं जिन्होंने एक समय पर जापानी फर्म निसान मोटर को दिवालिया होने से बचाया था। उस वक्त रेनाॅ के प्रेसीडेंट लूर्इस श्विटजर ने साल 1999 में इस लेबनान-ब्राजील मूल के शख्स को टोक्यो बुलाया था। कंपनी के लिए काॅस्ट कटिंग कारों के निर्माण के बाद कार्लोस घोश्न को ‘ली काॅस्ट किलर’ तक कहा जाने लगा है।


आनंद महिंद्रा ने कार्लोस की गिरफ्तारी पर किया ट्वीट

यही कुछ कारण हैं जिससे कार्लोस घोश्न की गिरफ्तारी के बाद दुनियाभर की आॅटो इंडस्ट्री सकते हैं। घोश्न की गिरफ्तारी ने भारतीय आॅटो इंडस्ट्री दिग्गजों को चौंका दिया है। भारत में महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा भी सकते में है। ट्विटर पर लगातार सक्रिय रहने वाले आनंद महिंद्रा ने कार्लोस की गिरफ्तारी की खबर आने के बाद साेमवार शाम को एक ट्वीट किया। महिंद्रा ने अपने ट्वीट में कहा, “क्यो? आखिर क्यों ? जब तक कार्लोस के उपर लगे आरोपों की जांच पूरी नहीं होती, तब तक मैं उन्हें संदेह का लाभ देना चाहता हूं। ये मानना बहुत कठिन है कि उनकी तरह प्रतिष्ठित प्रतिभावान व्यक्ति अपने प्रतिष्ठा आैर विरासत को दांव पर लगाएगा।”

https://twitter.com/anandmahindra/status/1064512689219678209?ref_src=twsrc%5Etfw

निसान में कदम रखते ही प्रबंधन नीतियों में किया बदलाव

आॅटो इंडस्ट्री में घोश्न को ‘उलटफेर विशेषज्ञ’ (Turnaround Specialist) का नाम भी दिया जा चुका है। 90 के दशक में वोल्वो के साथ रेनाॅ का विलय विफल होने के बाद इस फ्रेंच कंपनी ने अपने यूरोपियन फैक्ट्रियों को बंद करने का फैसला ले लिया था। बाद में निसान द्वारा 43 फीसदी स्टेक खरीदने से रेनाॅ के वित्तीय हालात में काफी सुधार देखने को मिला। कार्लोस ने निसान में पुराने प्रबंधन नीतियों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। उनका मानना था कि कर्मचारियों के बीच कम्युनिकेशन गैप से कर्इ प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हो पाते। इसके बाद उन्होंने क्राॅस-फंक्शनल टीम की रणनीति अपनार्इ। पिछले वित्तीय वर्ष में रेनाॅ व निसान, दोनों कंपनियों को भारी मुनाफा हुआ था। करीब दो साल पहले ही घोश्न ने एक आैर दिग्गज जापानी कंपनी मित्सुबिशी को अपने साथ लाने में कामयाब रहे। निसान ने मित्सुबिशी में 34 फीसदी हिस्सेदारी खरीदा है। हालांकि बाद में र्इंधन से जुड़े आर्थिक डाटा को लेकर विवादों में रहा।


भारत में भी कदम रखते मचाया धमाल

कार्लोस घोश्न उन उद्यमियों में से एक हैं जिन्होंने सबसे पहले भारत में निवेश करना शुरू किया। घोश्न ने कर्इ भारतीय कंपनियों के साथ पार्टनरशिप करने में कामयाब रहे। साल 2005 में महिंद्रा एंड महिंद्रा के साथ पार्टनरशिप के साथ रेनाॅ ने पहली बार भारतीय बाजार में कदम रखा आैर सबसे पहले रेनाॅ लोगान को भारत में लेकर आर्इ। इसके कुछ साल बाद ही टाटा नैनो को टक्कर देने के लिए रेनाॅ व निसान ने बजाज आॅटो के साथ हाथ मिलाया। भारतीय बाजार में घोश्न की आक्रमकता यही नहीं खत्म हुर्इ। घोश्न मिनी ट्रक ‘दोस्त’को लाॅन्च करने के लिए अशोक लेलैंड के साथ अाॅनबोर्ड होने में कामयाब रहे। इसके बाद घोश्न ने इस हेवी ट्रक मैन्युफैक्चरर को पैसेंजर वैन सेग्मेंट में भी उतरने में मदद की।


भारतीय बाजार को लेकर कार्लोस ने कहां की सबसे बड़ी गलती

एक के बाद एक भारत में रेनाॅ के तीनों वेंचर पूरी तरह से फेल हो गए। उत्पादों की कम मांग या फिर कंपनियों के प्रोमोटर्स के बीच मतभेद के कारण सभी पार्टनरशिप खत्म हो गर्इ। अशोका लेलैंड ने तो लोकल लाइसेंसिंग नियमाें के उल्लंघन को लेकर निसान को कोर्ट तक घसीटा। डैटसन को भारत में फिर से पुनर्जिवीत करने का श्रेय घोश्न को ही जाता है। उनका मानना था कि पाॅकेट फ्रेंडली कारों के मामले में मारुति सुजुकी को टक्कर देने में डैटसन कारगर होगी। साथ ही निसान होंडा व टोयोटा जैसी प्रमियिम गाड़ियाें को भी टक्कर देगी। घोश्न का यह प्लान पूरी तरह से फेल हो गया। कम कीमत होने के बावजूद भी डैटसन भारतीय बाजार में पकड़ बनाने में फेल हो गर्इ। डैटसन की तीनों वैरिएंट (रेडी-गो, गो आैर गो+) की कुल मासिक सेल मारुति सुजुकी की सबसे कम बिकने वाली एस-क्राॅस से कम रही। निसान भी भारतीय बाजार में कुछ खास करने में कामयाब नहीं हो पार्इ। तीनो ब्रांड में रेनाॅ भारत में सबसे अधिक कामयाब रही है। कुछ साल पहले रेनाॅ डस्टर देश में सबसे अधिक बिकने वाली एसयूवी कार रही है लेकिन आज यह टाॅप 5 में शामिल नहीं है। रेनाॅ के एक आैर क्विड के साथ भी यही देखा गया।

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