घर छोड़कर भागे थे सावजी
सावजी का जन्म गुजरात के अमरेली जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। सावजी का मन पढ़ने में नहीं लगता था। लेकिन जब घरवाले पढ़ाई-लिखाई करने पर जोर डालने लगे तो सावजी 13 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर भाग गए । सावजी भागकर सूरत गए और वहां कि एक छोटी से फैक्ट्री में काम करने लगे। पांच-छह महीने बाद सावजी सूरत से अपने घर वापल लौट आए। सावजी के घर वापस लौटने के बाद उनके माता-पिता ने उन्हें समझाया कि पढ़ना-लिखना आगे बढ़ने के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन सावजी को ये सब बाते समझ नहीं आ रही थी। इसलिए सवाजी बार-बार घर छोड़कर भाग जाते थे।
179 रुपए कमाते थे सावजी ढोलकिया
ढोलकिया ने जब सूरत कि फैक्ट्री में नौकरी करनी शुरू की थी तब उन्हें वहां पर मात्र 179 रुपए ही मिलते थे। 179 रुपए में से 140 रुपए सावजी के खाने-पीने में खर्च हो जाते थे। इसी फैक्ट्री में उनका दोस्त दिनेश भी काम करता था, जिसकी तनख्वाह 1200 रुपए थी। वो फैक्ट्री में हीरा घिसने का काम करता था। सावजी को भी ज्यादा पैसों की जरूरत थी। इसलिए उन्होंने अपने दोस्त जैसा काम करके ज्यादा पैसे कमाने की सोची। इसके बाद उन्होंने अपने दोस्त के साथ काम सीखना शुरू किया।
10 साल तक किया हीरा घिसने का काम
सावजी ने करीब 10 साल तक हीरा घिसने का काम किया। इसके बाद सावजी को हीरे के बारे में काफी अनुभव हो गया।फिर सावजी ने अपने घर में कुछ दोस्तों के साथ हीरा घिसने का काम शुरू किया, जो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। कारोबार को आगे बढ़ता देख सावजी ने हरि कृष्ण डायमंड के नाम से कंपनी खोल ली।
50 देशों के लिए हीरा सप्लाई करते है सावजी
सावजी ने कंपनी को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिए। फिर 1991 में पहली बार सवाजी की कंपनी ने एक करोड़ का करोबार किया। इसके बाद सावजी की कंपनी ऊंचाइयों को छूती गई। मार्च 2014 तक सवाजी की कंपनी का कारोबार 2100 करोड़ तक पहुंचा गया। ढोलकिया के अनुसार उनकी कंपनी अभी 50 देशों के लिए हीरा सप्लाई करती है। हरि कृष्ण डायमंड के दुनिया के सात देशों में खुद के आउटलेट्स हैं। इसके अलावा दुनिया भर के 5000 हजार शोरूम में इनका हीरा उपलब्ध है।