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इंडियाबुल्स मामले में याचिकाकर्ताओं की भूमिका संदिग्ध, यह जानकारी आई सामने

Published: Jun 12, 2019 08:01:15 am

Submitted by:

Saurabh Sharma

इंडियाबुल्स के एक साल में 44 फीसदी शेयर टूटे, मंगलवार को 8 फीसदी की गिरावट
कंपनी के निदेशकों पर 98 हजार करोड़ रुपए की फेराफेरी का लगाया है आरोप
कंपनी ने आरोपों को बताया निराधार, कहा-अकाउंट में 90 हजार करोड़ रुपए

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इंडियाबुल्स मामले में याचिकाकर्ताओं की भूमिका संदिग्ध, यह जानकारी आई सामने

नई दिल्ली। इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के खिलाफ गलत तरीके से कारोबार की चर्चाओं में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। कार्वी फिनटेक के प्रमाण पत्र के अनुसार दोनों याचिकाकर्ता इंडियाबुल्स हाउसिंग लिमिटेड के शेयरधारक हैं, दोनों के पास कंपनी के चार से पांच शेयर हैं। खास बात ये है कि दोनों याचिका डालने से ठीक पहले ही कंपनी के शेयरधारक बने हैं। आपको बता दें कंपनी के अध्यक्ष और निदेशकों पर सार्वजनिक धन के 98,000 करोड़ रुपए के कथित रूप से दुरुपयोग का आरोप लगने से कंपनी शेयरों की कीमत मंगलवार को 59.20 रुपए तक टूट गई। वहीं, कंपनी ने इन आरोपों को गलत करार दिया है और कहा है कि इंडियाबुल्स की प्रतिष्ठा को ‘खराब’ करने और लक्ष्मी विलास बैंक के साथ उसके विलय में बाधा उत्पन्न करने के लिए ये आरोप लगाए गए हैं।

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पिछले एक साल में 44 फीसदी की गिरावट
पिछले एक साल के दौरान स्टॉक में 43.71 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और इस साल की शुरुआत से 20.73 फीसदी की गिरावट आई है। लार्ज कैप शेयर में सेक्टर की तुलना में 8 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं वकील किसलय पांडे ने मंगलवार को, याचिकाकर्ता अभय यादव और विकाश शेखर की सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट -2014 के तहत दर्ज की गई शिकायतों को धारा 11, 12, 13, 14, 15 और 16 के तहत निपटाया जाना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई है याचिका
सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ( आईएचएफएल ), इसके अध्यक्ष और निदेशकों के खिलाफ 98,000 करोड़ रुपए के सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग के लिए कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि फर्म के अध्यक्ष समीर गहलोत और इंडियाबुल्स के निदेशकों द्वारा उनके निजी उपयोग के लिए हजारों करोड़ रुपए के धन का गबन किया गया। याचिकाकर्ता और आईएचएफएल शेयरधारकों में से एक अभय यादव ने आरोप लगाया कि गहलोत ने हरीश फैबियानी -स्पेन में रहने वाले एक एनआरआई – की मदद से कथित रूप से कई ‘छद्म कंपनियां’ बनाईं, जिन्हें आईएचएफएल ने ‘फर्जी तरीके से’ भारी रकम कर्ज पर दी।

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याचिका में लगाया है आरोप
याचिका में आरोप लगाते हुए यादव ने तर्क दिया था कि शेल कंपनियों ने ऋण की राशि को अन्य कंपनियों को हस्तांतरित कर दिया, जो या तो गहलोत, उनके परिवार के सदस्यों या इंडियाबुल्स के अन्य निदेशकों द्वारा संचालित या निर्देशित थी। याचिका में कहा गया है कि घोटाले की यह पूरी श्रृंखला ऑडिटर्स, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और संबंधित सरकारी विभागों के अधिकारियों के साथ मिले बिना संभव नहीं थी। याचिका में बाजार नियामक सेबी, केंद्र सरकार, आरबीआई ( भारतीय रिजर्व बैंक ) और आयकर विभाग या सक्षम प्राधिकारी को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे निवेशकों के धन को बचाने के लिए जरूरी कार्रवाई करें।

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याचिकाकर्ताओं की भूमिका संदिग्ध
मंगलवार को यह जानकारी सामने आई कि याचिका दायर करने वाले अभय यादव इंडियाबुल्स के शेयरधारक हैं, लेकिन 9 मई 2019 और 7 जून 2019 के बीच, उसकी कुल हिस्सेदारी केवल 4 शेयरों की है। इसका मतलब यह है कि वह याचिका दायर करने से ठीक पहले एक शेयरधारक बन गए और शायद एक तरह से अल्पसंख्यक निवेशक के रूप में भूमिका निभा रहे हैं। कार्वी फिनटेक ने मंगलवार को इसे प्रमाणित करते हुए एक प्रमाणपत्र जारी किया है। इसी तरह दूसरे याचिकाकर्ता विकास शेखर ने 14 दिसंबर 2018 को दो शेयर खरीदे और 25 मार्च 2019 तक, उन्होंने कार्वी फिनटेक के अनुसार केवल दो शेयर रखे।

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आईबीएचएफएल का स्पष्टीकरण
एक स्पष्टीकरण में इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड ( आईबीएचएफएल ) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका कंपनी की प्रतिष्ठा को ‘खराब’ करने और लक्ष्मी विलास बैंक के साथ इसके विलय में बाधा पैदा करने का प्रयास है। आईबीएचएफएल ने सोमवार को कहा, “रिट याचिका केवल आज ही दायर की गई है और अदालत में अभी इसकी सुनवाई नहीं हुई है, इंडियाबुल्स हाउसिंग के ऋण खाते में लगभग 90,000 करोड़ रुपए हैं। इसलिए 98,000 करोड़ रुपए के घपले के आरोप निराधार हैं।

 

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