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19 कंपनियों पर 424 करोड़ के मनी लांड्रिंग का केस, सीबीआई करेगी जांच

locationनई दिल्लीPublished: Sep 10, 2017 11:57:00 am

Submitted by:

manish ranjan

ये कंपनियां चेन्नई के मिंट स्ट्रीट स्थित पंजाब नेशनल बैंक के कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर इस गैरकानूनी ट्रांजैक्शन को अंजाम दिया है।

CBI

नई दिल्ली। सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (सीबीआई) ने 19 कंपिनयों के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया है। ये कंपनियां 700 ट्रांजैक्शन की मदद से 424 करोड़ चपत कर गई हैं। सीबीआई का कहना है कि इन कंपनियां ने शेल कंपनियों के माध्यम से इस काम को अंजाम देकर पैसो को देश के बाहर भेजा है। सीबीआई ने अपने एफआईआर में कहा है कि, वर्ष 2015 में ये कंपनियां चेन्नई के मिंट स्ट्रीट स्थित पंजाब नेशनल बैंक के कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर इस गैरकानूनी ट्रांजैक्शन को अंजाम दिया है।


अलग-अलग खातों से किया गया ट्रांजैक्शन

ध्यान देने वाली बाता ये है कि इन सभी कंपनियों का खाता इसी शाखा मे था। अधिकारियों के साथ सांठगांठ होने के वजह से ये कंपनियां बिना किसी करोबारी सौदा किए ही विदेशी मुद्रा को हांगकांग भेजती रहीं। एफआईआर मे कहा गया है कि बैंक खातों का इस्तेमाल एडवांस में विदेशी मुद्रा भेजने के लिए किया गया। सीबीआई के अनुसार, आयात के लिए अलग-अलग खातों के जरिए एडवांस रूप से 700 ट्रांजैक्शन किए गए है। जनवरी 2015 से मई 2015 के बीच अलग-अलग चालू खातों से आयात के लिए एडवांस भुगतान के नाम पर 700 ट्रांजैक्शन के जरिए 424 करोड़ रुपए की राशि भेजी गई है। बैंक ने अपने जांच मे पाया कि दर्ज किए गए पते पर कोई भी कंपनी कार्यरत नहीं थी।

 

ऐसे लगाया 424 करोड़ का चपत

इस धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए ये कंपनियां अपने कस्टमर्स को अलग-अलग बैंको से उनके खातों मे रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) के जरिए धन भेजती थी। इसके बाद ग्राहक 100 फीसदी एडवांस रकम के लिए विदेशी कंपनियों की ओर से कोटेशन के साथ अपना रिक्वेस्ट डालता था। इन अकाउंट में ज्यादातर पैसे आरटीजीएस के जरिए मुुंबई और दूसरी जगहों के कोऑपरेटिव सोसइटी के तरफ से आया है। ये कोऑपरेटिव सोसाइटी एडवांस में के्रडिट देतीं है। ये आरोप लगाया जा रहा है कि कोऑपरेटिव सोसाइटी में फर्जी लोगों के नाप पर अकाउंट खोले गए है। इस प्रक्रिया मे सबसे खास बात यह थी कि रिजर्व बैंक के नियमों से बचने के लिए यह रकम हर बार एक लाख डॉलर (करीब 64 लाख रुपए) से नीचे रखी जाती थी।

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