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शुरू हुआ दस दिनों तक मनाए जाने वाला पर्यूषण पर्व, सजाए गए नगर के जिनालय

locationललितपुरPublished: Sep 15, 2018 06:29:51 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

जैन समुदाय का पर्यूषण (दसलक्षण पर्व) महापर्व 14 सितम्बर से शुरू हुआ हैं जो दस दिन तक चले

LALITPUR

शुरू हुआ दस दिनों तक मनाए जाने वाला पर्यूषण पर्व, सजाए गए नगर के जिनालय

ललितपुर. जैन समुदाय का पर्यूषण (दसलक्षण पर्व) महापर्व 14 सितम्बर से शुरू हुआ हैं जो दस दिन तक चलेगा। इस दौरान जनपद के सभी जिनालयों में दसलक्षण पर्व की विशेष पूजन-आराधना होती है। इस दौरान संतों, बाहर से आमंत्रित विद्वानों द्वारा प्रतिदिन प्रत्येक धर्म पर प्रवचन करते हैं। इस संबंध में नगर के अटा जैन मंदिर, क्षेत्रपाल, आदिनाथ मंदिर, समवसरण मंदिर, शांतिनाथ मंदिर नई बस्ती, पार्श्वनाथ मंदिर इलाइट, बड़ा मंदिर, नया मंदिर, सिविल लाइन मंदिर, बाहुबली नगर, डोडाघाट जैन मंदिरों की विशेष सजावट की गई है।
जैनदर्शन के अध्येता डॉ. सुनील संचय इस पर्व के महत्त्व के बारे में बताते हैं कि यह पर्व जीवन में नया परिवर्तन लाता है। दस दिवसीय यह पावन पर्व पापों और कषायों को रग-रग से विसर्जन करने का संदेश देता है। यह एक ऐसा उत्सव या पर्व है, जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है। पर्यूषण आत्म जागरण का संदेश देता है और हमारी सोई हुई आत्मा को जगाता है। यह आत्मा द्वारा आत्मा को पहचानने की शक्ति देता है। यह पर्व जीवमात्र को क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, असंयम जैसे विकारी भावों से मुक्त होने की प्रेरणा देता है।
दस दिन तक निर्जला उपवास

उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव शौच, सत्य, सयंम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये दश धर्म हैं। दस दिन तक इन धर्मों की आराधना की जाती है। मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं और अभिषेक-शांतिधारा, विशेष पूजन, विधान करते हैं। इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं जैसे दिन में केवल एक समय ही भोजन करना। बड़ी संख्या में साधक दस दिन तक निर्जला उपवास भी रखते हैं।
मानवीय एकता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, मैत्री, शोषणविहीन सामाजिकता, अंतरराष्ट्रीय नैतिक मूल्यों की स्थापना, अहिंसक जीवन आत्मा की उपासना शैली का समर्थन आदि तत्त्व पर्युषण महापर्व के मुख्य आधार हैं। आज की दौड़-भाग भरी जिंदगी में जहां इंसान को चार पल की फुर्सत अपने घर-परिवार के लिए नहीं है, वहां खुद के निकट पहुंचने के लिए तो पल-दो पल भी मिलना मुश्किल है। इस मुश्किल को आसान और मुमकिन बनाने के लिए जब यह पर्व आता है, तब समूचा वातावरण ही तपोमय हो जाता है। संक्षेप में पर्यूषण महापर्व (दसलक्षण धर्म) का तात्पर्य है पुरानी दिनचर्या का बदलना, खान-पान और विचारों में परिवर्तन आकर मन सद्भावनाओं से भर जाना। विकृति का विनाश और विशुद्धि का विकास करना ही इस पर्व का ध्येय है। बताते हैं कि संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र महापर्व पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत-उपवास रखते हैं।पर्व के ये दिन खाने-पीने मौज मस्ती के नहीं बल्कि त्याग और संयम के होते हैं।

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