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मोदी जी की राह देख रहा गया यहां का गन्ना किसान बीत गए पांच साल, दुबारा आ गए चुनाव

locationकुशीनगरPublished: Mar 24, 2019 12:33:24 am

लोकसभा क्षेत्र कुशीनगर

sugarcane

Sugarcane Former

बड़ी आरजू थी कि शहर मुस्कुराए, अंधेरे गए पर उजाले न आए। कुशीनगर के गन्ना किसानों पर यह लाइन बिल्कुल फिट बैठती है। ठीक पांच साल पहले। लोकसभा चुनाव का वक्त था। देश एक नए नेतृत्व की ओर आस लगाए देख रहा था। पडरौना भी देश की आवाज में सुर मिलाए हुए था। एक उम्मीद थी कि आश्वासनों से निजात मिलने के साथ उनके यहां की बंद पडरौना चीनी मिल फिर आबाद हो जाएगी। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने उम्मीदों को और बल दिया, पडरौना की जनता की दुखती रग पर हाथ रखते हुए चीनी मिल मुद्दे को उठाकर भावनात्मक रूप से जुड़ते गए। लेकिन पांच साल बीत चुके हैं, लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। पर गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री पद तक सफर कर पांच साल सत्ता में विराजमान रहे प्रधानमंत्री को न तो किसानों से किया वादा याद आया न ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों को।
पडरौना चीनी मिल एक बार फिर चुनावी मुद्दा बनने को आतुर है। विरोधी दल पीएम मोदी पर वादा खिलाफी का आरोप लगाकर बीजेपी को घेरने का प्रयास कर रहे हैं तो सत्ताधारी बीजेपी अन्य मुद्दों की ओर ध्यान केंद्रित कर चीनी मिल मुद्दे पर चुप्पी साधने में ही भलाई समझ रहे हैं।
संयुक्त देवरिया-कुशीनगर पूर्वांचल में कभी चीनी का कटोरा कहा जाता था। गन्ना को यहां की लाइफलाइन तक कहा गया। अकेले देवरिया-कुशीनगर जनपद में चैदह चीनी मिलें यहां की खुशहाली की कहानी बयां करती थी। लेकिन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा ने गन्ना किसानों की बर्बादी की दास्तां लिख दी। एक एक कर चीनी मिल बंद होते गए और गन्ना किसान कभी बकाया धनराशि तो कभी गन्ना खेतों में खड़ी कर पर्ची के लिए परेशान होता रहा। हालात यह कि इससे जुड़े तमाम रोजगार के दरवाजे भी बंद होते चले गए।
90 का दशक खत्म होते होते कुशीनगर के गन्ना किसानों के दुर्दिन शुरू हो गए। एक एक कर चीनी मिलों के बंद होने का दौर शुरू हुआ। सबसे अधिक प्रभाव पडरौना और कठकुइयां चीनी मिलों के बंद होने से पड़ा। पहले तो सरकारी क्षेत्र की इन दोनों चीनी मिलों को बेच दिया गया। सरकार के चहेते खरीदार चीनी मिलों को खरीददते गए और अपना फायदा निकाल किसानों की बदकिस्मती की कहानी लिखते गए। आलम यह कि पडरौना चीनी मिल पर किसानों और मजदूरों का करोड़ो रुपये बकाया है। अकेले पडरौना मिल पर 47 करोड़ से अधिक का बकाया किसानों-मजदूरों का है। एक मजदूर नेता बताते हैं कि सरकार के चहेते ही इस मिल को खरीदते। सरकार भुगतान पर दबाव नहीं बनाती और किसान बेचारा मारा जाता। वह गन्ना देता गया और बकाया बढ़ता गया। उधर, मुनाफा लेने के साथ अपनी लागत निकाल खरीदार हाथ खड़े करते गए। फिर मिल बंद हो गई। इसका प्रभाव यह रहा कि एक दशक से अधिक समय से पडरौना क्षेत्र का गन्ना किसान अपना गन्ना लेकर मारा मारा फिरता है। इसका फायदा बिचैलिये उठाते हैं और वे गन्ने को औने पौने दाम में खरीदकर भारी मुनाफा कमाते हैं।

पीएम मोदी ने 2014 में किया था पडरौना में वादा

लोकसभा चुनाव 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पडरौना में चुनावी सभा करते हुए सरकार बनने के बाद पडरौना चीनी मिल को चलवाने का वादा किया था। उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन सांसद व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह पर कटाक्ष करते हुए किसानों से मिल नहीं चलवाने के लिए कांग्रेस सरकार को जमकर कोसा भी था। दस साल तक कांग्रेस की सरकार में चीनी मिल नहीं चलने से परेशान किसानों ने एक बार पीएम मोदी पर विश्वास किया। पडरौना चीनी मिल चलने की उम्मीद में वोटों की बारिश कर दी। कुशीनगर लोकसभा सीट भाजपा के खाते में गई। लोग उम्मीद लगाए रहे कि अब मिल चलने का ऐलान होगा लेकिन उम्मीद पूरे पांच साल तक चीनी मिल चलने की कवायद का इंतजार ही रहा। हालांकि, किसान पांच साल तक उम्मीद लगाए रहे क्योंकि पीएम ने गोरखपुर में फर्टिलाइजर को चलवाने का वादा साल भर में ही पूरा कर दिया था। साल बीतते गए। विधानसभा चुनाव भी आया। बीजेपी की प्रदेश में भी सरकार बनी। पडरौना चीनी मिल चलवाने का उम्मीद कायम रहा। लेकिन पिपराइच और मुंडेरवा चीनी मिल को सरकार ने चलवाने की जोरदार कवायद की परंतु पडरौना की ओर पलट कर भी नहीं देखा गया। पांच साल बीत चुके हैं। फिर चुनाव में सभी आ चुके हैं और पडरौना चीनी मिल जस की तस है। किसान की मनःस्थिति तो इससे समझा ही जा सकता है।

गोरखपुर क्षेत्र में 28 चीनी मिलों में 17 हो चुकी हैं बंद

यूपी में सबसे अधिक चीनी उत्पादक क्षेत्र गोरखपुर-बस्ती परिक्षेत्र में कभी 28 चीनी मिलें हुआ करती थी। लेकिन पिछले कुछ दशकों में अगर कुशीनगर में एक निजी चीनी मिल ढाढा चीनी मिल को छोड़ दें तो कोई भी सरकार एक नई चीनी मिल नहीं लगवा सकी है। हालांकि, विभिन्न सियासी पार्टियों के अलग-अलग राज में एक के बाद एक 17 चीनी मिल्स पर ताला लग चुके हैं। कुछ खस्ता हाल में फिलहाल चालू हैं। यह बात दीगर है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपने क्षेत्र की दो बंद चीनी मिलों को चलवाने की प्रक्रिया अंतिम दौर में पहुंचाने में सफल रहे हैं। आने वाले गन्ना सत्र में गन्ना पेराई भी हो सकेगा। हालांकि, इस समय सिर्फ 11 मिलें चल रही हैं। गोरखपुर जिले की बात करें तो यहां सरदारनगर, धुरियापार व पिपराइच चीनी मिलें थीं जो अब बंद हो चुकी हैं। बीते दिनों बंद पिपराइच चीनी मिल का उद्घाटन कर दिया गया है।
देवरिया की पांच मिलों में चार गौरीबाजार, बेतालपुर, देवरिया व भटनी मिलों पर ताला लग चुका है। सिर्फ एक प्रतापपुर मिल संचालित है।
कुशीनगर जिले में 10 चीनी मिलें हुआ करती थीं। इनमें पांच मिलें रामकोला, खड्डा, सेवरही, कप्तानगंज व ढाढा बुजुर्ग चल रही हैं जबकि छितौनी, लक्ष्मीगंज, पडरौना, कठकुइयां व रामकोला खेतान पर ताला लग चुका है। महराजगंज की चार मिलों में से सिसवा व गड़ौरा चल रही हैं जबकि फरेंदा व घुघली बंद हो चुकी हैं। बस्ती की बात करें तो यहां पांच में से तीन बभनान, वाल्टरगंज व रुधौली मिलें चल रही हैं जबकि बस्ती की मिल बंद है। मुंडरेवा को चलाने का उपाय हो रहा। संतकबीरनगर की एक मात्र मिल बंद हो चुकी है। सिद्धार्थनगर में कोई चीनी मिल नहीं।

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