केस 1 शहर के मुख्य बस स्टेण्ड के पास लॉयन्स सर्किल के सामने कचौड़ी-दहीबड़े की दुकान। जहां पूरे दिन भट्टी पर कचौड़ी की कड़ाही रहती है, जिसके पास एक और मिठाई व कचौड़ी-समोसे की दुकान। इन दुकानों के ऊपर चल रही है मासूम बच्चों की स्कूल। स्कूल को मान्यता मिले भी बरस हो गए और हरसाल यह स्कूल सुरक्षा प्रमाण पत्र भी ले रहा है। स्कूल में बच्चों की संख्या में सैंकड़ों में है। क्या निर्माण विभाग के अधिकारी और शिक्षा विभाग की नजर कभी इन भट्टियों और यहां उपयोग में आ रहे सिलेण्डरों पर नहीं जाती? इसके बावजूद खुलेआम यहां प्रथम तल और द्वितीय तल और तृतीय तल पर भट्टियों के ऊपर स्कूल संचालित की जा रही है। जहां आगजनी की स्थिति होने पर दूसरी मंजिल, तीसरी मंजिल पर दमकल से आग बुझाना भी दुश्वार है।
केस 2 शहर में स्टेशन रोड पर पैट्रोल के पास ही एक मिठाई की दुकान के ऊपर बहुमंजिला ईमारत में कई शिक्षण इंस्टीट्यूट और कोचिंग और हॉस्टल संचालित हो रहे हैं। खास बात यह है कि यहां घरेलू सिलेण्डर भी एक से अधिक रखे गए हैं, जहां कभी भी सिलेण्डर में आग लगने या भट्टी में आग भभकने पर बड़ा हादसा हो सकता है। खास बात यह भी है कि यहां महज 10 मीटर दूरी पर ही पैट्रोल पम्प भी संचालित हो रहा है। सभी मंजिलों पर चल रही यह संस्थान बच्चों की जान को जोखिम में डाल रहे हैं, इसके बावजूद प्रशासनिक अमला बेखबर बना हुआ है।
केस 3 शहर में डीडवाना रोड पर एसबीआई बैंक के सामने बेसमेंट व ग्राउण्ड फ्लोर पर पर फर्नीचर की दुकान है जहां सैंकड़ों क्विंटल लकड़ी की सामग्री पड़ी है और इसके ऊपर दूसरी मंजिल व तीसरी मंजिल पर कोचिंग क्लास संचालित हो रही है। ऐसे में कभी लकड़ी की दुकान में आग लगने की स्थिति में बड़ा हादसा हो सकता है और ईमारत में पढने वाले बच्चों की जान का संकट खड़ा हो सकता है।
पत्रिका व्यू सूरत के सरथाणा क्षेत्र में तक्षशिला बहुमंजिला इमारत में आग लगने से 19 बच्चों की मौत हो गई थी। कई बच्चे अपनी जान बचाने के लिए इमारते से नीचे कूदे तो गिरने से मौत हो गई और जो बच्चे इमारत में शेष रह गए वह जलकर मर गए। यह घटना दिल दहलाने वाली है। लेकिन क्या इस घटना से सबक नहीं सीखना चाहिए, यदि हां तो फिर कुचामन शिक्षा नगरी के रुप में फैल रहा है और यहां सैंकड़ों शिक्षण संस्थाओं में हजारों विद्यार्थी पढ रहे हैं। प्रदेश सहित दूसरे राज्यों के कई बच्चे यहां पढने तो आ रहे हैं लेकिन उनकी सुरक्षा का जिम्मा कोई नहीं उठा रहा। कहीं नीचे भट्टी और ऊपर स्कूल चल रहा है तो कहीं नीचे लकड़ी काटी जा रही और ऊपर कोचिंग चल रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। अधिकांश कोचिंग और शिक्षण संस्थानों में तो अग्निशमन यंत्र तक नहीं है। स्थानीय प्रशासन को कोचिंग व स्कूलों के सुरक्षा मापदण्डों की जांच करनी चाहिए और ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। जिससे पढ लिखकर देश का भविष्य बनने की चाहत रखने वाले मासूम बच्चों की सुरक्षा पर सवालिया निशान नहीं लगे।