script…जब कृष्ण जी के लिए समर्पित कर दी अपनी हवेली | ... when devoted his mansion to Krishna ji | Patrika News

…जब कृष्ण जी के लिए समर्पित कर दी अपनी हवेली

locationकोटाPublished: Aug 24, 2019 06:08:09 pm

Submitted by:

mukesh gour

तब से ही शहर के पाटनपोल इलाके स्थित नंदग्राम क्षेत्र में विराजमान हैं भगवान मथुराधीशजी

...जब कृष्ण जी के लिए समर्पित कर दी अपनी हवेली

…जब कृष्ण जी के लिए समर्पित कर दी अपनी हवेली

हेमन्त शर्मा
कोटा. चर्मण्यवती के आंचल में बसा कोटा देशभर में ख्यात है। कोई इसे चंबल की नगरी के नाम से जानता है तो कोई शिक्षा नगरी के नाम से। उद्योग नगरी और राजस्थान के कानपुर के नाम से भी शहर की पहचान रही है। जब बात कृष्ण जन्माष्टमी की हो रही है तो परकोटे के भीतर बसे कोटा को नंदग्राम के नाम से जाना जाता है। अगर कोटा को बड़े मथुराधीशजी की नगरी भी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। पाटनपोल नंदग्राम क्षेत्र में मथुराधीश जी विराजमान हैं। कहानी जरा लंबी है, लेकिन कहा जाता है कि मथुरा के गोकुल क्षेत्र के ग्राम करनावल में सूर्यास्त के समय फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन श्रीमद् वल्लभाचार्य के समक्ष मथुराघीशजी विग्रह रूप में प्रकट हुए। इतिहासकारों के अनुसार मथुराधीशजी वर्षोंं तक छोटी काशी बूंदी में विराजमान रहे। शहर का भाग्य जागा तो सन 1737 में मथुराधीश जी कोटा आए।

मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष चेतन सेठ बताते हैं कि कोटा में मथुराधीश के प्रति लोगों की श्रद्धा इतनी अपार थी कि रियासत के तत्कालीन मंत्री द्वारकाप्रसाद भटनागर ने पाटनपोल स्थित अपनी हवेली मथुराधीश जी को पधराने के लिए भेंट कर दी, यहां ठाकुरजी को विराजमान किया गया। बाद में तत्कालीन महाराव दुर्जनसाल ने कोटा का नाम नंदग्राम रखा। इसके साथ ही कोटा की छवि कृष्ण भक्ति के रूप में प्रगाढ़ हो गई। तब से अब तक वल्लभ कुल की मर्यादाओं के अनुसार मंदिर में सेवा हो रही है।
मनमोहक है छवि
मंदिर में जो भी श्रद्धालु एक बार दर्शन को आ जाए तो बार-बार आने को मन करता है। ठाकुरजी की मनमोहक छवि के दर्शन कर मन आनंदित हो उठता है। बुजुर्ग गोविंद भाटिया बताते हैं कि ठाकुरजी की महिमा न्यारी है। भाटिया का यहां जन्माष्टमी पर होने वाले आयोजन में विशेष योगदान रहता है। अर्चना व डॉ.पुरुषोत्तम शृंगी बताते हैं कि वह वर्षों से मंदिर में दर्शन को आते हैं। यहां की महिमा को शब्दों में कह पाना मुश्किल है।

फिर मनोरथ के लिए बृज चले गए मथुराधीश
इसी दौरान 1953 में बड़े मथुराधीश जी को एक मनोरथ के लिए बृज ले जाकर पधराया गया, लेकिन बाद में तत्कालीन आचार्य गोस्वामी रणछोड़ाचार्य जी प्रथमेश मथुराधीश जी को करीब पांच दशक पहले 1975 में कोटा ले आए। तब से पाटनपोल स्थित उसी भटनागरजी की हवेली में ठाकुरजी विराजमान हैं। इस मौके पर आचार्य प्रथमेश के सान्निध्य में किशोरपुरा स्थित छप्पन भोग स्थल पर भव्य आयोजन किए गए। बुजुर्ग बताते हैं कि उस समय के माहौल की शोभा देखते ही बनती थी। भक्ति का सागर हिलौरें मार रहा था। इसके बाद छप्पन भोग स्थल पर समय-समय पर मनोरथ व उत्सव होते रहे।
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