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बनारसी या कलकत्तई को छोड़ कोटा ने उठाया देशावरी पान खाने का बीड़ा..

locationकोटाPublished: Jul 13, 2019 11:07:35 pm

Submitted by:

Rajesh Tripathi

दरीबा ए पान, राजस्थान का तीसरा जिला बनेगा कोटा जहां होगी पान की संरक्षित खेती
 

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बनारसी या कलकत्तई को छोड़ कोटा ने उठाया देशावरी पान खाने का बीड़ा..

कोटा. पान के तलबगारों की जुबान पर अब बनारसी, कलकत्तई, महोबाई और मगही नहीं बल्कि कोटा के देशावरी पान का जायका चढ़कर बोलेगा। कोटा के किसान जल्द ही पान की खेती कर नकदी फसलों की नई इबारत लिखते नजर आएंगे। इसके लिए उद्यानिकी एवं वानिकी विभाग कृषि प्रबंधन प्रौद्योगिकी एजेंसी (आत्मा) योजना के तहत कोटा की मिट्टी में पान उगाने की जुगत में जुट गया है।
राजस्थान के भरतपुर, करौली, चित्तौडगढ़़, उदयपुर, बांसवाड़ा, पाली और झालावाड़ जिलों में यूं तो गिने-चुने किसान पान की खेती करते हैं, लेकिन सभी जगह परम्परागत खेती ही की जाती है। करौली के मासलपुर गांव के पान की तूती तो पाकिस्तान से लेकर अरब देशों में बोल रही है। यहां तमोली जाति के लोग पुश्तैनी तरीके से जैविक पान की खेती करते हैं, जिसका जायका बाकी तमाम किस्मों से एकदम अलग है। जबकि उदयपुर और बांसवाड़ा की जमीं से उठकर महोबा पहुंचे पान का जायका पूरे उत्तर भारत की जुबान पर चढ़ा हुआ है। कृषि और उद्यानिकी विशेषज्ञ इन दोनों किस्मों को कोटा की मिट्टी से मिला देशावरी पान की कड़क और बरखरे जायके वाली चटख प्रजाति तैयार करने में जुटे हैं।
होगी संरक्षित खेती
आत्मा के परियोजना निदेशक शंकरलाल मीणा ने बताया कि परम्परागत तरीके की बजाय कोटा में पान की संरक्षित खेती की जाएगी। इसके लिए अत्याधुनिक ग्रीन हाउस, पॉली हाउस और सैटनेट पॉली हाउस तैयार कर पान के खेत यानी बेरजा बनाए जाएंगे। करौली और चित्तौड़ से मंगाई गई कलमों को रोपने से पहले बेरजा में पारी बनाई जाएंगी। हर पारी में लोहे के करीब दस हैंगल खड़े कर उसके ऊपर घासफूस के छप्परों का कवर खड़ा किया जाएगा। ताकि पान की फसल को तेज धूप से बचाकर संतुलित छांव देकर तरीके से पोषित किया जा सके।
बूंद-बूंद पानी से होगी सिंचाई
एक बेरजा का आकार एक से पांच बीघा का होता है और उसके ऊपरी परत पर चिकनी मिट्टी डाली जाती है, ताकि बानी जमा होने के बजाय बह जाए। पानी में नमी बनी रहना जरूरी है। इसलिए परम्परागत तरीके से होने वाली पान की खेती में मटके में छेद कर उससे दिन में पांच बार पानी देना पड़ता है। कोटा में होने वाली संरक्षित खेती आधुनिक होगी और मटके की बजाय यहां बूंद-बूंद पानी पद्धति से इसकी सिंचाई की जाएगी। इस दौरान निकलने वाले अंकुर (नागरबेल) को बेरजा में लगाए गए सरकंडे के सहारे ऊपर चढ़ाया जाएगा। जिस पर पान के पत्ते उगेंगे। नगरबेल पर दो पान के पत्ते छोड़कर बाकी उगे पत्तों को तोड़कर बिक्री के लिए भेज दिया जाता है।
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कोटा का मौसम आदर्श
पान की खेती को पाला और लू से सबसे ज्यादा नुकसान होता है, लेकिन कोटा में पाले की स्थिति सालों में कभी कभार ही बनती है, जबकि अत्याधुनिक पॉली हाउस सिस्टम के जरिए पान के पत्तों को लू से आसानी से बचाया जा सकता है। उपजाऊ मिट्टी होने से पैदावार भी अच्छी मिलने की उम्मीद है।
किसानों को किया जाएगा प्रोत्साहित
परियोजना निदेशक ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के जरिए कोटा और आसपास के जिलों में कहां-कहां पान की खेती हो सकती है, इसकी संभावनाएं तलाशी जाएंगी। इसके लिए कोटा ही नहीं देशभर के पान खेती विशेषज्ञों से भी सलाह और सहायता ली जाएगी। पान की खेती के लिए युवाओं को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार 70 फीसदी तक सब्सिडी देने का प्रस्ताव ला चुकी है। इससे हाड़ौती के किसानों को नकदी फसल का नया और बेहतर विकल्प मिल सकेगा।
होगी जैविक खेती
उद्यानिकी एवं वानिकी विशेषज्ञ कोटा में पान की जैविक खेती करने की कोशिश में जुटे हैं। इसकी वजह से उन्हें स्थानीय स्तर पर बड़ा बाजार उपलब्ध हो सकेगा। इसके साथ ही अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जैविक उत्पादों की फेहरिस्त में नाम दर्ज करा अच्छी कीमतें हासिल कर सकेंगे। पान की अच्छी पैदावार के लिए जैविक खाद के तौर पर नीम, सरसों व तिल आदि की खली के अलावा जौ, उड़द, दूध, दही व म_े का भी इस्तेमाल किया जाएगा। इससे पान की मिठास और पत्ते की चिकनाहट बढ़ती है। कोटा का जैविक पान करकरेपन के साथ ही सुगंध और जायके के साथ आसानी से मुंह में घुल जाएगा।
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