स्तुति ने बताया कि इन सभी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए उसे ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा, क्योंकि मेडिकल इंजीनियरिंग एंट्रेन्स व बोर्ड के काफ ी टॉपिक्स कॉमन होते हैं। टेक्सट बुक्स से पढ़ाई की और उनका ज्यादा से ज्यादा रिवीजन किया। जैसा गाइड किया, उसे फ ॉलो करती गई। रेगुलर टेस्ट देने से परफॉर्मेन्स में सुधार आता चला गया। रेगुलर क्लासरूम व सेल्फ स्टडी को मिलाकर करीब 12 से 13 घंटे पढ़ाई करती थी। चारों विषयों ‘पीसीएमबीÓ को बराबर समय देती थी। कोई भी चैप्टर पढ़ती थी तो उसका समय पर रिवीजन करती थी। डाउट होने पर तुरंत फैकल्टी से पूछकर उसे क्लीयर करती थी, क्योंकि किसी भी डाउट को नजरअंदाज कर आप आगे नहीं बढ़ सकते। वो डाउट आगे जाकर आपके लिए परेशानी खड़ी कर सकता है और उसका असर आपके रिजल्ट पर होता है। स्टूडेंट्स के मन में अक्सर यह बात आती है कि छोटा डाउट है, बार-बार पूछेंगे तो फैकल्टी अैर अन्य स्टूडेंट्स कहेंगे कि क्या छोटा सा सवाल पूछ रहा है, लेकिन ऐसा नहीं सोचना चाहिए और अपने हर डाउट्स को क्लियर करते रहना चाहिए। पिछले सालों के प्रश्न पत्रों को सॉल्व किया। इससे मुझे एग्जाम पैटर्न समझने व तैयारी करने में मदद मिली।
हाल ही में मुझे विश्व के नंबर 1 संस्थान मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एडमिशन मिल चुका है। वहां से पढ़ाई के बाद मैं रिसर्च के क्षेत्र में जाना चाहूंगी। मम्मी-पापा दोनों डॉक्टर हैं। उन्होंने हमेशा मुझे मोटिवेट किया। मुझे भरतनाट्यम काफी पसंद है और पिछले सात साल से इसका अभ्यास कर रही हूं। भरतनाट्यम में मुझे विशारद की डिग्री हासिल है।