29 मार्च को जैसे ही आईपीएल की आठ टीमें दनादन 60 टी 20 मैच खेलने के लिए क्रीज पर उतरीं सट्टा कारोबार की दुनिया में रौनक ही छा गई। शहर के हाईप्रोफाइल ठिकानों पर सटोरियों की जाजम बिछने लगी। चंद छोटी मछलियां पुलिस के हत्थे चढ़ी भी तो उनसे सिर्फ मोबाइल, लेपटॉप और कुछ करोड़ के बहीखाते ही बरामद किए जा सके। पुलिस ने भी इस गोरखधंधे की तह में जाने और बड़े बुकियों के जाल को काटने के बजाय महज उनके पंटरों को जेल भेजकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
जबकि इस गोरखधंधे की भौंचक कर देने वाली कहानी पंटरों को दबोचे जाने के बाद ही शुरू होती है। दरअसल जो लोग पकड़े गए वह तो महज क्लाइंट भर थे। जिन्होंने सट्टे के हाईटेक वर्जन की मेम्बरशिप लेकर खुद दांव लगाने के बजाय उसे ही कमाई का जरिया बनाने की कोशिश की। जबकि असल कारोबारी तो इंटरनेट पर बैठे धडल्ले से सट्टा किंग डॉट इन, सट्टा मटका मार्केट डॉट इन, डीपी बॉस डॉट नेटऔर बेट 365 डॉट कॉम जैसी अनगिनत वेबसाइटें चला रहे हैं।
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सट्टे का कॉरपोरेट कल्चर सटोरियों की डिजिटल दुनिया की जब पड़ताल की तो घर से लेकर दफ्तर तक के सामान्य से इंटरनेट कनेक्शन पर एक रुपए से लेकर करोड़ों तक का दांव लगाने वाली सैकड़ों वेबसाइटें तारी हो गईं। जहां पूरा गोरखधंधा कॉरपोरेट कल्चर में होता नजर आया। इन बेबसाइटों पर दिशावर गली कंपनी, कल्याण मिलन, सट्टा और आईपीएल किंग के नाम से कंपनियां और उनके अधिकारियों के नाम नंबर फ्लेश होने लगे। हालांकि बात सिर्फ इंटरनेट कॉल करने की ही शर्त पर की जा रही थी। जिसे रिकॉर्ड नहीं किया जा सकता। फोन रिसीव करने वाले खुद को सट्टा कंपनियों के चेयरमैन से लेकर एमडी और चीफ जर्नल मैनेजर तक बताते।