जहां एक ओर इन श्रमिकों को इस काम के लिए नाममात्र की दिहाड़ी मिलती है वहीं दूसरी तरफ बीड़ी बनाने में उन्हें टीबी, दमा जैसी बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। श्रमिकों की मानें तो उन्हें बीपीएल सुविधा को छोड़ अन्य किसी योजना का लाभ तक नहीं मिला। कई परिवार तो बीपीएल सूची में भी शामिल नहीं हैं। जबकि ऐसे श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय बीमा योजना समेत कई अन्य योजनाएं चल रही हैं।
लेकिन सांगोद क्षेत्र के इन श्रमिकों का पंजीयन तक नहीं है। पंजीयन कैसे होता है इसकी जानकारी तक इन्हें नहीं तथा श्रम और रोजगार विभागों को फुर्सत नहीं कि इनके हाल जान सके। नतीजा, ये अंगुलीतोड़ और स्वास्थ्यघाती कार्य में दिनभर खपाने के बावजूद सरकार की योजनाओं से कोसों दूर है।
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ओपी सामर कहते हैं कि श्रमिकों को बीड़ी बनाने के दौरान एहतियातन पूरी सुरक्षा रखनी चाहिए। बीड़ी बनाने के दौरान उपयोग होने वाले तम्बाकू के कण हवा के जरिए श्वांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचते हैं। इससे श्वांस रोगों की संभावना बढ़ जाती है। साल में एक बार इनका पूरा मेडिकल चेकअप जरूरी है।
मसमले में पत्रिकाडॉटकॉम ने विभागीय जिम्मेदारों से चर्चा की तो जनजागरण और अपनी ओर से पहले की बात छोड़ें, पंजीयन तक पर ज्यादा कुछ नहीं कह पाए। क्षेत्रीय श्रम निरीक्षक अजय व्यास कहते हैं कि बीड़ी श्रमिकों के लिए सरकार की कई योजनाएं संचालित हैं। लेकिन योजनाओं के लाभ के लिए इनका पंजीयन जरूरी है। उनका कहना है कि बीड़ी श्रमिकों का पंजीयन श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के जरिए होता है।
इसी तरह, श्रम निरीक्षक अनिल यादव स्वीकार करते हुए कहते हैं, यह सही है कि बीड़ी श्रमिकों को काम के लिहाज से मेहनत का पूरा दाम नहीं मिल पाता। लेकिन साथ ही दावा करते हैं कि विभागीय स्तर पर योजनाओं के प्रचार प्रसार के साथ उन्हें हर संभव सहयोग का प्रयास किया जाता रहा है।
मामले में उपखंड अधिकारी सांगोद संजीव कुमार शर्मा कहते हैं कि बीड़ी श्रमिकों को श्रम विभाग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की योजनाओं से लाभान्वित करने का प्रावधान है। वे स्वीकारते हैं कि अभी तक उनकी जानकारी में ऐसा मामला सामने नहीं आया। आगे जोड़ते हैं कि ऐसा है तो जानकारी करके इन्हें लाभान्वित करने का पूरा प्रयास किया जाएगा।