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बीड़ी उद्योग: दिनभर अंगुली खपाने के बाद मिलते हैं इन्हें 50 से 100 रुपए, स्वास्थ्य को भी खतरा

locationकोटाPublished: Jul 15, 2019 01:07:14 am

सरकार ने बीड़ी श्रमिकों के लिए योजना संचालित कर कई प्रावधान कर रखे हैं, लेकिन जमीनी धरातल पर इन्हें योजनाओं का लाभ कहीं मिलता नजर नहीं आ रहा।

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सांगोद में एक घर में बीड़ी बनाने में जुटी महिलाएं।

कोटा/सांगोद.
सरकारें बीड़ी उद्योग में जीवन खपाने व अल्प पारिश्रमिक पाने वाले श्रमिकों के प्रति कितनी संवेदनशील है इसकी बानगी कोटा जिले का सांगोद क्षेत्र है। सरकार ने बीड़ी श्रमिकों के लिए योजना संचालित कर कई प्रावधान कर रखे हैं, लेकिन जमीनी धरातल पर इन्हें योजनाओं का लाभ कहीं मिलता नजर नहीं आ रहा। सरकारी कारिंदे योजनाओं के प्रचार-प्रसार को लेकर बेरूखी दिखाते हैं तो खामियाजा इन लोगों को भुगतना पड़ता है। चुनाव आते हैं तो जनप्रतिनिधि भी इन महिलाओं के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन बाद में कोई इनकी सुध लेने नहीं आता।
सांगोद क्षेत्र में सैकड़ों महिलाएं हैं जो तेंदू पत्तों से बीडिय़ां बनाने का काम करती हैं। यह काम इनकी सेहत बिगाड़ रहा है, लेकिन परिवार की आजीविका में सहयोग के लिए बीड़ी बनाना इनकी मजबूरी है। कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनकी आजीविका ही इसी काम पर टिकी है। लेकिन सरकारी मदद के नाम पर इन्हें कुछ नहीं मिल रहा। अकेले सांगोद कस्बे में करीब 40-50 परिवार हैं, जिनमें करीब सवा सौ से ज्यादा महिलाएं बीड़ी श्रमिक हैं। बरसों से ये महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती हैं। पुरूष सदस्य मजदूरी करते हैं। सुबह से रात तक जुटने के बाद एक महिला पांच सौ बीड़ी बना पाती है। इससे इन्हें पचास रुपए की आय होती है। साढ़े बारह सौ बीड़ी बनाने पर इन्हें एक सौ तीस रुपए मिलते हैं।
सिर्फ बीपीएल का लाभ
जहां एक ओर इन श्रमिकों को इस काम के लिए नाममात्र की दिहाड़ी मिलती है वहीं दूसरी तरफ बीड़ी बनाने में उन्हें टीबी, दमा जैसी बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। श्रमिकों की मानें तो उन्हें बीपीएल सुविधा को छोड़ अन्य किसी योजना का लाभ तक नहीं मिला। कई परिवार तो बीपीएल सूची में भी शामिल नहीं हैं। जबकि ऐसे श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय बीमा योजना समेत कई अन्य योजनाएं चल रही हैं।
पंजीयन हो तो मिलता है यह लाभ….

पंजीकृत श्रमिकों को बीड़ी श्रमिक आवास योजना में आवास निर्माण के लिए 40 हजार रुपए तथा परिवार में बेटी की शादी के लिए 500 हजार रुपए का अनुदान मिलता है। केन्द्रीय बीड़ी श्रमिक अस्पताल के जरिए बीड़ी मजदूर को मुफ्त इलाज और दवाइयां भी मिलती हैं। यही नहीं, किसी भी तरह की दुर्घटना पर 10 हजार रुपए की सहायता इन्हें देय है।
लेकिन सांगोद क्षेत्र के इन श्रमिकों का पंजीयन तक नहीं है। पंजीयन कैसे होता है इसकी जानकारी तक इन्हें नहीं तथा श्रम और रोजगार विभागों को फुर्सत नहीं कि इनके हाल जान सके। नतीजा, ये अंगुलीतोड़ और स्वास्थ्यघाती कार्य में दिनभर खपाने के बावजूद सरकार की योजनाओं से कोसों दूर है।
श्वांस रोगों की संभावना
वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. ओपी सामर कहते हैं कि श्रमिकों को बीड़ी बनाने के दौरान एहतियातन पूरी सुरक्षा रखनी चाहिए। बीड़ी बनाने के दौरान उपयोग होने वाले तम्बाकू के कण हवा के जरिए श्वांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचते हैं। इससे श्वांस रोगों की संभावना बढ़ जाती है। साल में एक बार इनका पूरा मेडिकल चेकअप जरूरी है।
जिम्मेदारों के सुर अरुचि से
मसमले में पत्रिकाडॉटकॉम ने विभागीय जिम्मेदारों से चर्चा की तो जनजागरण और अपनी ओर से पहले की बात छोड़ें, पंजीयन तक पर ज्यादा कुछ नहीं कह पाए। क्षेत्रीय श्रम निरीक्षक अजय व्यास कहते हैं कि बीड़ी श्रमिकों के लिए सरकार की कई योजनाएं संचालित हैं। लेकिन योजनाओं के लाभ के लिए इनका पंजीयन जरूरी है। उनका कहना है कि बीड़ी श्रमिकों का पंजीयन श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के जरिए होता है।
इसी तरह, श्रम निरीक्षक अनिल यादव स्वीकार करते हुए कहते हैं, यह सही है कि बीड़ी श्रमिकों को काम के लिहाज से मेहनत का पूरा दाम नहीं मिल पाता। लेकिन साथ ही दावा करते हैं कि विभागीय स्तर पर योजनाओं के प्रचार प्रसार के साथ उन्हें हर संभव सहयोग का प्रयास किया जाता रहा है।
लाभांवित करने का प्रयास करेंगे
मामले में उपखंड अधिकारी सांगोद संजीव कुमार शर्मा कहते हैं कि बीड़ी श्रमिकों को श्रम विभाग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की योजनाओं से लाभान्वित करने का प्रावधान है। वे स्वीकारते हैं कि अभी तक उनकी जानकारी में ऐसा मामला सामने नहीं आया। आगे जोड़ते हैं कि ऐसा है तो जानकारी करके इन्हें लाभान्वित करने का पूरा प्रयास किया जाएगा।

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