जब यह नारा लोगों की जुबान पर चढऩे लगा तो विरोध में एक नारा आया ‘लहर नहीं आंधी बना दो, ठगबंधन की समाधि बना दो। ऐसे एक नहीं कई नारे बने जो एक-दूसरे के विरोध में तैयार हुए। भाजपा कार्यकर्ता ‘मैं भी चौकीदार का नारे देकर लोगों को जोडऩे का जतन कर रहे हैं, तो कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने इसका जवाब देने के लिए ‘मैं भी रामनारायणÓ का नारा सोशल मीडिया पर चलाया है।
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सियासी दल भले ही कितने ही नारे दें, लेकिन इन सबके बीच इस लोकसभा चुनाव में जागरूकता से जुड़े नारों में जिला निर्वाचन विभाग आगे है। चुनाव आयोग की पहल पर फिल्मी तर्ज पर नारे और डायलॉग तैयार कराए गए हैं। जिला निर्वाचन विभाग मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए मतदाता जागरूकता कार्यक्रम (स्वीप) चला रहा है। इसमें नारों का जमकर उपयोग हो रहा है।
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जिम्मेदारी कभी न टालें… ‘चंबल माता रौ कहणो है, 29 अप्रेल कू वोट जरूर देणो हैÓ, ‘भारत में लोकतंत्र, वोट इसका मूलमंत्रÓ, ‘बहकावे में कभी न आना, सोच समझकर बटन दबानाÓ, ‘समय वोट के लिए निकालें, जिम्मेदारी कभी न टालेंÓ जैसे कई नारे शहर देहात में गूंज रहे हैं। होर्डिंग्स और बैनरों पर भी नजर आ रहे हैं। मतदाता जागरूकता कार्यक्रम (स्वीप) का उद्देश्य चुनाव में हर मतदाता की भागीदारी सुनिश्चित करना और सही उम्मीदवार चुनने के लिए प्रेरित करना है। इसके साथ ही निर्भीक होकर मतदान करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है।
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पहले जैसे रोचक नारे नहीं रहे
सियासी दलों से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं की मानें तो मौजूदा लोकसभा चुनाव में नारे पहले जैसे न रोचक रहे न ही हलके-फुल्के तंजों से भरे तीखे वार करने वाले। अब तो नारों की दुनिया सिर्फ और सिर्फ निजी हमलों पर केंद्रित हो गई है। एक वक्त था कि नेता लोगों को लुभाने के लिए रोचक नारे गढ़ते थे। कवियों, साहित्यकारों की टीम लगाई जाती थी। यह नारे न केवल सियासी बहार को धार देते थे, बल्कि आम आदमी के जेहन में बरसों तक रहते थे। अबकी बार फिर मोदी सरकार, मोदी है तो मुमकिन है आदि नारे भाजपाइयों के बीच गूंज रहे हैं। इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने चुनावी एजेंडे को धार देते हुए नारा दिया है ‘गरीबी पर वार 72 हजार…।