कॉलोनियों में पानी भरा तो विधायक का पारा चढ़ा, अधिकारियों को फटकारा…लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर इसके बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी परभगवान विष्णु की योग निद्रा पूर्ण होती है। इस एकादशी को देवउठानी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। चार माह बाद आठ नवंबर को देवोत्थानी एकादशी पर फिर से शहनाइयां बजनी शुरू हो जाएंगी। चातुर्मास के दौरान भगवान की पूजा-पाठ, कथा, साधना, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। चातुर्मास में पूजा, पाठ, भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
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Astrologer ज्योतिषाचार्य अमित जैन ने बताया कि चातुर्मास में विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश, कर्ण भेदन, गृहारम्भ जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इन दिनों में गुरू और शुक्र तारा भी अस्त होता है। इस कारण इन दिनों में मांगलिक कार्यक्रम नहीं किए जाते हैं।
Astrologer ज्योतिषाचार्य अमित जैन ने बताया कि चातुर्मास में विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश, कर्ण भेदन, गृहारम्भ जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इन दिनों में गुरू और शुक्र तारा भी अस्त होता है। इस कारण इन दिनों में मांगलिक कार्यक्रम नहीं किए जाते हैं।
देवशयनी एकादशी का महत्व देवशयनी एकादशी से भगवान चार माह के लिए विश्राम करते है। इस दौरान चार माह तक मांगलिक और वैवाहिक कार्यक्रम करना वर्जित रहता है। हालांकि मांगलिक कार्यों की तैयारी और खरीदारी इन दिनों में की जा सकती है। स्कंद पुराण में एकादशी महात्म्य नाम का अध्याय है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर के संवाद है। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को साल भर के सभी एकादशियों का महत्व बताया है। भगवान विष्णु के लिए इस तिथि पर व्रत किया जाता है। एकादशी पर विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए।