केशवपुरा सर्किल: यहां सर्किल के बीच में तीन बत्ती की ओर से आने वाले रास्ते पर यह गड्ढा अरसे से अपना अस्तित्व बनाए हुए है। किसी पेचवर्क का इसे खौफ नहीं। थोड़ी मिट्टी या गिट्टी, बहुत हो जाए तो डामर इसमें डाल भी दी जाती है, लेकिन उसकी ताकत इसकी जिद से ज्यादा नहीं होती। नतीजा, इससे बचना ही जनता के लिए बड़ा मुश्किल। झटका खाकर निकलना ही एकमात्र विकल्प।
विज्ञान नगर फ्लाईओवर का छोर विज्ञान नगर से एरोड्राम की ओर आते वक्त ठीक फ्लाईओवर के छोर पर यह गड्ढा सबको वर्षों से चिढ़ा रहा है। जोखिम ऐसा कि फ्लाईओवर से तेज वाहन उतरते हैं और ठीक बगल से नीचे रोड पर विज्ञान नगर से वाहन तेजी से आते हैं। नीचे वाले वाहनों को इससे बचना है तो फ्लाईओवर की ओर जाना होगा, और यहां गंभीर हादसे का खतरा। निगम और सरकारी प्रयास अब तक तो इसका अस्तित्व मिटा नहीं सके।
एरोड्राम सर्किल इसे शहर का प्रमुख सर्किल कहा जाता है। पुराना एंट्री प्वॉइंट भी। कभी इसके नाम से ही वाहन चालकों में यातायात नियमों की पालना की सुरसरी सी दौड़ जाती थी, लेकिन वर्दी का यह रौब यहां पसरे दो दर्जन से ज्यादा गड्ढों पर कतई नहीं चलता। झालावाड़ रोड की ओर से आने पर तो गड्ढे से बचना बेहद मुश्किल। साल-दर-साल गुजर गए, गड्ढा बूढ़ा हो गया, फटेहाल भी, लेकिन पसरता ही जा रहा है। अब तो करीब-करीब बायां हिस्सा कब्जा ही लिया। बैंकिंग हब की ओर भी हालात इससे बस थोड़े ही कम हैं।
इंडस्ट्रियल मार्ग, एसबीआई के सामने
इंडस्ट्रियल एरिया में ऑटो हब वाले रास्ते पर एसबीआई शाखा के सामने के इस गड्ढे पर भी किसी का वश नहीं। मार्ग पर नामी कंपनियों की कारों के शोरूम और कई प्रभावशाली संस्थान हैं। व्यस्ततम मार्ग है, लेकिन क्या मजाल कि गड्ढा डरे। बरसात में पानी भरने पर यह कई दर्जन लोगों को जमीन चटा देता है। कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया। पानी उतरने पर यह फिर सीना ताने खड़ा हो जाता है।
इंडस्ट्रियल एरिया में ऑटो हब वाले रास्ते पर एसबीआई शाखा के सामने के इस गड्ढे पर भी किसी का वश नहीं। मार्ग पर नामी कंपनियों की कारों के शोरूम और कई प्रभावशाली संस्थान हैं। व्यस्ततम मार्ग है, लेकिन क्या मजाल कि गड्ढा डरे। बरसात में पानी भरने पर यह कई दर्जन लोगों को जमीन चटा देता है। कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया। पानी उतरने पर यह फिर सीना ताने खड़ा हो जाता है।
नया बस स्टैण्ड नया बस स्टैण्ड जब से बना है, कोटा की शान में एक सितारा लग गया मानो। रुतबा भी वैसा ही, लेकिन यहां सामने का डेढ़ किमी का पूरा मार्ग उधड़ा पड़ा है। करीब १०० मीटर हिस्से में बुरे हाल। सड़क तो है ही नहीं। पेचवर्क की रस्म यहां भी अदा की जाती है, लेकिन यहां भी गड्ढों का वर्चस्व वर्षों से कोई पेचवर्क नहीं तोड़ पाया। हिचखोले खाते हुए यहां से सैकड़ों बसें और हजारों वाहन चालक रोज निकलते हैं।
खास तथ्य यह: १५० करोड़ रुपए से ज्यादा हर साल खर्च करते हैं यूआईटी और नगर निगम सड़कों की मरम्मत व नवीनीकरण पर। पत्रिका व्यू
चुनिंदा गड्ढों के चयन के साथ स्टोरी प्रकाशन का पत्रिका का उद्देश्य शहर में पसरे ऐसे ही ‘जिद्दी गड्ढोंÓ की ओर जिम्मेदारों का ध्यान आकर्षित करना है। शहर का कोई छोर अथवा मार्ग नहीं जहां इस तरह के वर्षों पुराने नासूर मौजूद न हों। ये आमजन को झटक रहे हैं, हादसों के सबब बन रहे हैं। बेहतर रहे, जिम्मेदार ऐसे स्थानों का जमीनी सर्वे कराकर इन्हें चिह्नित करें और इनका अस्तित्व खत्म किया जाए। बजट हर साल खर्च होता है तो फिर क्यों सड़कों के ये जख्म यूं ही हरे रह जाते हैं?
चुनिंदा गड्ढों के चयन के साथ स्टोरी प्रकाशन का पत्रिका का उद्देश्य शहर में पसरे ऐसे ही ‘जिद्दी गड्ढोंÓ की ओर जिम्मेदारों का ध्यान आकर्षित करना है। शहर का कोई छोर अथवा मार्ग नहीं जहां इस तरह के वर्षों पुराने नासूर मौजूद न हों। ये आमजन को झटक रहे हैं, हादसों के सबब बन रहे हैं। बेहतर रहे, जिम्मेदार ऐसे स्थानों का जमीनी सर्वे कराकर इन्हें चिह्नित करें और इनका अस्तित्व खत्म किया जाए। बजट हर साल खर्च होता है तो फिर क्यों सड़कों के ये जख्म यूं ही हरे रह जाते हैं?
वर्जन… नगर विकास न्यास की ओर से समय रहते सड़कों की मरम्मत कराई जाएगी। जहां ज्यादा दिक्कत वहां दिखवाया जा रहा है। बरसात के बाद हुए हालात से निपटने के लिए न्यास की टीम लगातार सक्रिय है।
– भवानी सिंह पालावत, सचिव नगर विकास न्यास