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जन्म के 14 साल बाद देखी दुनिया तो छलक उठे आंसू

locationकोटाPublished: Sep 14, 2019 05:49:24 pm

Submitted by:

mukesh gour

एमबीएस अस्पताल : नेत्र विभाग में हुआ दो दृष्टिहीन भाइयों का ऑपरेशन

जन्म के 14 साल बाद देखी दुनिया तो छलक उठे आंसू

जन्म के 14 साल बाद देखी दुनिया तो छलक उठे आंसू

कोटा. एमबीएस अस्पताल के नेत्र विभाग में जन्म से ही दृष्टिहीन दो सगे भाइयों ने 14 साल बाद पहली बार अपनी आंखों से दुनिया देखी। एमबीएस अस्पताल में शुक्रवार को दिनेश और बबलू का सफल ऑपरेशन कर उनकी दृष्टि लौटाई गई। नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. जयश्री ने बताया कि बारां जिले के सीसवाली निवासी 13 वर्षीय दिनेश व 14 वर्षीय बबलू की आंखों में जन्मजात कमियां थी।

दोनों की आंखों में रोशनी ना के बराबर थी। इनके पिता ने इनका दाखिला झालावाड़ रोड स्थित मूक-बधिर स्कूल में करवाया था। पिछले महीने अस्पताल की तरफ से स्कूल में लगे शिविर में स्क्रीनिंग के दौरान 5 बच्चों को चिह्नित किया गया था। अस्पताल में जांच के बाद दोनों का ऑपरेशन किया गया। बबलू की दोनों आंखों व दिनेश की बाईं आंख का पोस्टीरियर कंटीन्यूअस कैप्सूलोरेकेसिस ऑपरेशन किया गया। इस ऑपरेशन में आंखों में छोटा चीरा लाकर झिल्ली को हटाकर लैंस डाला गया। इसके बाद दोनों भाई अब देख सकते हैं। दोनों ने पहली बार माता-पिता को देखा। यह देख दिनेश और बबलू व माता-पिता भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू छलक गए।
उम्मीद ही छोड़ दी थी
पिता नन्दकिशोर ने बताया कि दोनों जन्म से दृष्टीहीन थे। कई जगह डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन किसी ने भी ऑपरेशन के बाद आंखों की रोशनी लौट आने की बात नहीं कही। इसके चलते उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी थी। एमबीएस अस्पताल के डॉक्टरों ने जटिल ऑपरेशन कर इनकी जिंदगी में नई खुशियां लौटाई हैं।
अब भेंगेपन का होगा इलाज
विभागाध्यक्ष डॉ. जयश्री ने बताया कि अब आंखों की अस्थिरता रोकने के लिए अब दोनों की जांच विशेषज्ञों से कराई जाएगी ताकि उनकी आंखों का तिरछापन दूर हो सके। इससे भविष्य में उनको मोतियाबिंद होने की आशंका भी नहीं रहेगी। दिनेश और बबलू की आंखों की थेरेपी व मसल की सर्जरी की जाएगी। ऑपरेशन करने वाली टीम में डॉ. निजामुद्दीन, डॉ. आनंद गोयल, डॉ. प्राची, डॉ. जसराम मीना व एनेस्थिया विभाग की टीम शामिल थी।
दोनों बच्चों को जन्मजात जटिल बीमारी थी। ऐसी सर्जरी जितनी जल्दी हो जाए अच्छा रहता है। इस तरीके के केस में रौशनी लौटने की संभावना रहती है।
डॉ. विजय सरदाना, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज

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