scriptविशेष संरक्षित जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर के 10 वर्ष में बढ़े सिर्फ 321 सदस्य, टीआरआई ने जारी किए आंकड़े | Only 321 members increased in 10 years of Korwa and Birhor | Patrika News

विशेष संरक्षित जनजाति में शामिल पहाड़ी कोरवा और बिरहोर के 10 वर्ष में बढ़े सिर्फ 321 सदस्य, टीआरआई ने जारी किए आंकड़े

locationकोरबाPublished: May 01, 2019 12:22:07 pm

Submitted by:

Rajkumar Shah

विलुप्ति के कगार पर इन जनजातियों को परिवार नियोजन से भी रखा गया है मुक्त

विलुप्ति के कगार पर इन जनजातियों को परिवार नियोजन से भी रखा गया है मुक्त

विलुप्ति के कगार पर इन जनजातियों को परिवार नियोजन से भी रखा गया है मुक्त

कोरबा. विशेष संरक्षित जनजाति में शामिल राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाने वाले पहाड़ी कोरवा और बिरहोर की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। ट्रायबल रिसर्च इंस्टीट्यूट(टीआरआई) द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ो की माने तो 10 वर्ष में जिले में पाए जाने वाले पहाड़ी कोरवा और बिरहोर जनजाति की संख्या में सिर्फ 321 सदस्यों की ही बढ़ोत्तरी हुई है।

पिछली बार इन परिवारों की जनसंख्या का आंकलन करने के लिए वर्ष 2004-05 में सर्वे किया गया था। इसके बाद ठीक 10 वर्ष बार वर्ष 2014-15 की रिपोर्ट अब आई है। जिसके आंकड़े चौकाने वाले हैं। जबकि संरक्षित जनजातियों की घटती जनसंख्या को देखते हुए इन्हें परिवार नियोजन की योजनाओं से मुक्त रखा गया है। तेजी से विलुप्त हो रहे इन आदिवासियों को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया गया है। राज्य में ऐसी आधा दर्जन से अधिक जनजातियां हैं। बैगा, कमार, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा और अबूझमाडिय़ा को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। इनके संरक्षण के नाम पर आधा दर्जन प्राधिकरण बने हुए हैं। कई योजनाएं चल रही हैं। जिला प्रशासन द्वारा भी 11 सूत्रीय कार्यक्रम चलाया जाता है। जिसमें सभी विभाग मिलकर काम करते हैं। लेकिन यह सब कागजों में है, क्योंकि सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी राज्य में इनकी आबादी घट रही है। 10 साल में आबाी सिर्फ 321 ही बढ़ी है।

कई मजरे टोले छूटे
2014-15 की रिपोर्ट में जनसंख्या के आंकलन के लिए कुल 64 मजरा, पारा और टोला को सर्वे में शामिल किया गया है। जबकि जिले के आदिवासी विभाग का कहना है कि टीआरआई की टीम से कई मजरे टोले छूट गए हैं। जिनका भी सर्वे किया जाना जरूरी है। हालांकि जो मजरे टोले छूटे हैं, उनकी संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। लेकिन विभाग द्वार ाइसके लिए शासन को पत्र लिखे जाने की बात कही गई है।

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कौरवों के वंशज, जिले का नामकरण भी इनसे ही
कोरवा जनजाति की उपजाति में ‘दिहारिया’ और ‘पहाड़ी कोरवा प्रमुख हैं। पहाड़ी कोरवा को ‘बनबरिया’ भी कहा जाता है। कुछ शोध में कौरवों को वंशज भी कहा गया है। कोरबा जिले का नामकरण भी कोरवाओं के नाम पर ही किया गया है। इनकी कम जनसंख्या के कारण सरकार ने इनको परिवार नियोजन से मुक्त रखा है। इस समाज के लोगों की नसबंदी नहीं होती।

फैक्ट फाईल
वर्ष पहाड़ी कोरवा(जनसंख्या/परिवार) बिरहोर(जनसंख्या/परिवार)
2004-05 2397/610 1294/353
2014-15 2464/643 1548/505


कहां है विशेष जानजाति के आदिवासियों का निवास
0बैगा- कबीरधाम, बिलासपुर, कोरिया, मुंगेली, राजनांदगांव
0कमार- गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, कांकेर
0पहाड़ी कोरवा- सरगुजा, जशपुर, कोरबा, बलरामपुर
0बिरहोर- रायगढ़, जशपुर, नारायणपुर
0अबूझमाडिय़ा- नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर


-टीआरआई की रिपोर्ट में जिले में पाए जाने वाले विशेष जनजातियों में से पहाड़ी कोरवा और बिरहोर की जनसंख्या में ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। हालांकि सर्वे से कई मजरे, टोले छूट गए हैं। जिसके लिए शासन को पत्र लिखा जा रहा है।
-बीआर बंजारे, एसी, ट्रायबल
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