2. विनोद डागा, चश्मा व्यवसाई:- जिस दिन से यह घटना घटी है, उस दिन से पानी पीने से पहले भी आंखों में आंसू आ जा रहे हैं। पता नहीं हमसे ऐसी कौन सी गलती हो गई जो भगवान ने हमें यह सजा दी। अब आंखों के सामने सिर्फ अंधेरा दिख रहा है। पता नहीं हमारे बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा।
3. राजकुमार साह, बैग व्यवसाई:- शनिवार की उस काली रात ने सब बर्बाद कर दिया। कुछ नहीं बचा। कभी यहां आने के लिए सुबह होते ही तैयार होते थे। अब लगता है काश सुबह हो ही ना। सुबह कहां जाएंगे? क्या करेंगे? क्या बेंचेगे पता नहीं। पहले रोज एक टार्गेट और गोल होता था। लेकिन आग ने ऐसी तबाही मचाई कि अब ना टार्गेट है और न कोई गोल।