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‘दहेज अभिशाप और मानवता पर कलंक’

locationकोलकाताPublished: Nov 15, 2018 07:16:59 pm

Submitted by:

Shishir Sharan Rahi

मुनि कमलेश की धर्मसभा—सवालिया लहजे में कहा, जब लडक़े को सौंपी संपत्ति के लिए दान का प्रयोग नहीं तो फिर लडक़ी के लिए क्यों?

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‘दहेज अभिशाप और मानवता पर कलंक’

कोलकाता. दहेज शब्द अभिशाप और मानवता पर कलंक है। लडक़ी की शादी में खुशी से दिए गए उपहार को कन्यादान के नाम से पुकारना सरासर गलत है। दान शब्द का प्रयोग करके उसमें दीनता के भाव लाना हीन भाव पैदा करना उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने के समान है। राष्ट्रसंत कमलमुनि कमलेश ने गुरुवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। मुनि ने कहा कि लडक़ी और लडक़ा दोनों समान है। दोनों का अधिकार पूरा है, दोनों का बराबर का हक है। उन्होंने कहा कि जब लडक़े को सौंपी संपत्ति के लिए दान शब्द का प्रयोग नहीं करते तो फिर लडक़ी के लिए क्यों? मुनि ने कहा कि दान दी हुई वस्तु के ऊपर आप का कोई अधिकार नहीं होता है तो फिर लडक़ी को भी कन्यादान के रूप में आप मानते हैं तो क्या भविष्य में उसके साथ आपका कोई भी रिश्ता नहीं रहेगा? जैन संत ने कहा कि उसी दान को दहेज के नाम से क्यों पुकारा जाता है? मुनि ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि एेसे अनेक उदाहरण सामने आते हैं जब दहेज के कारण कन्या के हाथ की मेहंदी का रंग भी नहीं उतरा और दरिंदे ने असमय मौत के घाट उतार दिया। पीहर में नारकीय जीवन जीने को मजबूर किया, मानसिक यातनाएं दीं। यह अमानवीय अत्याचार धार्मिकता की दुहाई देने वालों के मुंह पर करारा तमाचा है। दहेज मांगने वाला भिखारी से भी गया बीता है, जो खून के रिश्ते को भी स्वार्थ से तौल रहा है। कन्या अपने आप में लक्ष्मी का रूप है उसे ससुराल में ससम्मान जीने का अधिकार देने वाला ही सच्चा धार्मिक है। दहेज के लिए लडक़ी के परिवार से सौदेबाजी करने वाला कसाई से कम नहीं। गुणवान लडक़ी भी दहेज के अभाव में परिवार को कांटे की भांति खटकती है। दहेज के अभाव में कितनी लड़कियों की सिंदूर से मांग भी नहीं भरी जाती। उन्होंने कहा कि दहेज लोभी भूखे भेडिय़ों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। लड़कियां वीरांगना बन कर ऐसे बारातियों को लौटा कर सबक सिखाएं और उन्हें कानून के हवाले करना चाहिए। मुनि ने कहा कि दुल्हन अपने आप में सबसे बड़ा और अनमोल तोहफा है। उन्होंने शादी में दान-दहेज न लेंगे और न देंगे का संकल्प सभी से कराया। कौशल मुनि ने मंगलाचरण और घनश्याम मुनि ने विचार व्यक्त किए।
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