रूपहले पर्दे में सुनहरा बंगाल
कोलकाताPublished: Sep 21, 2018 05:39:34 pm
भारतीय फिल्म इतिहास की शुरुआत से लेकर मौजूदा वक्त तक की यादें
रूपहले पर्दे में सुनहरा बंगाल
कोलकाता.
सतरंगे बॉलीवुड के रुपहले पर्दे के आगे, नेपथ्य में, आवाज में, अभिनय में, निर्देशन में, तकनीक में, कला में और सामाजिक सरोकारों में बंगाल की भूमिका हमेशा स्वर्णाक्षरों से लिखी जाएगी। छोटी छोटी प्रसारण सामाग्री के निर्माण से निकलकर आज विश्व की सबसे ज्यादा फिल्में रिलीज करने का रिकार्ड अपने तमगे में लगाए बैठा बॉलीवुड, सच कहें तो सिनेमा के हर दौर में बंगाल की ओर देखता रहा। फिर चाहे वो दौर कुछ मिनटों की चलती तस्वीरों वाले बॉयोस्कोप का हो, या फिर घोर मसाला फिल्मों के दौर में सकारात्मक समानांतर सिनेमा का हो। बंगाल ने बॉलीवुड को सिनेमा के हर उस क्षेत्र में समृद्ध किया जिसके सहारे सितारों की दुनियावाला बड़ा पर्दा अपनी सफलता पर इठलाता है। जब भद्र परिवारों की महिलाओं का इस सुनहले पर्दे पर आना एक तरह से निषेध था उस दौर में कवि गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से जुड़ीं देविका रानी ने अछूत कन्या(1936) में अपने दमदार अभिनय से नारी शक्ति की अलख जगाई। बॉलीवुड ने भी बंगाल को दिल भर के प्यार किया। सतरंगे बॉलीवुड को बंगाल का बसंत, यहां के साहित्य में मौजूद कालजयी चरित्र, कोलकाता की तंग गलियां, पुराने घर, विक्टोरिया काल की सरंचनाएं, हाथ रिक्शा, ट्राम, हुगली के तट, दार्जिलिंग की खामोशी भरी सर्द हवाएं हर काल में लुभाती रहीं। बंगाल के ग्राम्य जीवन में मौजूद विषमताएं, ग्राम समाज की समस्याएं, शहरी भद्र लोक का जितना चित्रण बॉलीवुड ने किया है उतना शायद किसी और समाज को बड़े पर्दे पर जगह नहीं मिली। बंगाल यह अधिकार पाने का अधिकारी भी है। वजह औपनिवेशिककाल में शिक्षा, राष्ट्रवादी आंदोलन के बंगाल में गहरे प्रवेश के साथ ही यूरोप में प्रचलित हो रही फिल्म तकनीक की सफलता का सिंहावलोकन कर चुके बंगाल से जुड़े शुरुआती फिल्मकारों ने यहां अपना डेरा डंडा जमाना शुरू कर दिया था। बॉयोस्कोप उन दिनों सिनेमा का पर्याय होता था। 1904 में भारत का पहला बॉयोस्कोप शो शुरू हुआ। शो शुरू करने वाले जेएफ मदन ने कोलकाता के दिल कहे जाने वाले मैदान में शो शुरू किया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि शो में किस तरह के वीडियो दिखाए जाते थे, लेकिन इतना तय है कि उस दौरान इस दृश्म माध्यम ने लोगों के सामने मनोरंजन का एक बिलकुल नया माध्यम सामने रखा था, जिसमें चलती फिरती तस्वीरें उन्हें रोमांचित करती थीं। फिल्म इतिहास यह भी बताता है कि जेएफ मदन ने देश का पहला सिनेमा हॉल 1907 में कोलकाता में तैयार किया, जिसे नाम दिया गया इल्फिनस्टोन पिक् चर। जेएफ मदन ने ही 1917 में बंगाल की पहली फीचर फिल्म भी तैयार की। जिसका नाम नल दमयंती था। मजेदार बात यह थी कि फिल्म के दोनों प्रमुख कलाकार इटालियन थे।
इसी दौरान कोलकाता में लगातार फिल्म निर्माण की जीजिविशा मजबूत होती रही और इस रुपहले माध्यम में सिद्धहस्त होने का तप चलता रहा। पर अफसोस की बात है कि बॉलीवुड के उस शुरुआती दौर की फिल्में और बंगाल में हुई शुुरुआती फिल्मी गतिविधियों का अभी कोई रिकार्ड नहीं है। न ही उन्हें संजो कर रखा गया।