मुख्य गेट पर रेत व गिट्टी के ढेर
ट्रामा सेंटर की तरह ही एमसीएच सेंटर के हाल हो गए हैं। यहां मुख्य गेट एक बार भी नहीं खुला है। गेट के सामने ही रेत व गिट्टी के ढेर लगे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंदर अब भी काम बाकी है। पीआईयू के बाद ठेकेदार की मदद से रिनोवेश का काम किया जा रहा है, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं।
प्रसूताओं की परेशानी पर नहीं ध्यान
अस्पताल में मेटरनिटी वार्ड ही ऐसी जगह है, जहां पर्याप्त डॉक्टरों के साथ स्टाफ है। यहां प्रतिदिन 25 से 30 महिलाओं की डिलीवरी कराई जाती है। मरीजों के दबाव के चलते यहां वार्ड छोटा पड़ रहा है। इसके बावजूद प्रसूताओं की परेशानी पर किसी का ध्यान नहीं। प्रभारी मंत्री से लेकर कलेक्टर व अन्य आला अधिकारी अस्पताल का दौरा कर चुके हैं। एमसीएच सेंटर को शुरू करने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई।
हेंडओवर नहीं
बारिश की वजह से छत टकपने के कारण निर्माण रूका है। बिल्डिंग बनने के बाद उसमें कुछ सुधार करना था। इसलिए रिनोवेशन किया जा रहा है। अभी यह विभाग को हेंडओवर नहीं हुई है।
डॉ. राजेंद्र जोशी, सिविल सर्जन जिला अस्पताल
ट्रामा सेंटर की तरह ही एमसीएच सेंटर के हाल हो गए हैं। यहां मुख्य गेट एक बार भी नहीं खुला है। गेट के सामने ही रेत व गिट्टी के ढेर लगे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंदर अब भी काम बाकी है। पीआईयू के बाद ठेकेदार की मदद से रिनोवेश का काम किया जा रहा है, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं।
प्रसूताओं की परेशानी पर नहीं ध्यान
अस्पताल में मेटरनिटी वार्ड ही ऐसी जगह है, जहां पर्याप्त डॉक्टरों के साथ स्टाफ है। यहां प्रतिदिन 25 से 30 महिलाओं की डिलीवरी कराई जाती है। मरीजों के दबाव के चलते यहां वार्ड छोटा पड़ रहा है। इसके बावजूद प्रसूताओं की परेशानी पर किसी का ध्यान नहीं। प्रभारी मंत्री से लेकर कलेक्टर व अन्य आला अधिकारी अस्पताल का दौरा कर चुके हैं। एमसीएच सेंटर को शुरू करने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई।
हेंडओवर नहीं
बारिश की वजह से छत टकपने के कारण निर्माण रूका है। बिल्डिंग बनने के बाद उसमें कुछ सुधार करना था। इसलिए रिनोवेशन किया जा रहा है। अभी यह विभाग को हेंडओवर नहीं हुई है।
डॉ. राजेंद्र जोशी, सिविल सर्जन जिला अस्पताल