यहां देखने को मिला अनोखा नज़ारा
आपको बता दें कि, ये अनोखा नज़ारा देखने को मिला मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में, जहां सनावद से खंडवा रेलवे रूट पर गेज कन्वर्जन का काम चल रहा है। ये डंपर इसी काम के तहत रेलवे ट्रेक पर गिट्टी बिछाने का काम कर रहे हैं। इस रेल मार्ग का काम देख रहे इंजीनियर का कहना है कि, ‘एक तरह से ये हमारे द्वारा की गई जुगाड़ है। जिसे कम लागत में तेज़ी से काम करने के लिए किया गया है। ये जुगाड़ काफी कारगर साबित हुई है, जिससे बड़ी मेहनत के काम को आसानी से किया जा रहा है।’
अनोखे डंपर की खूबियां
तेज और सुविधाजनक तरीके से निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए रेलवे अधिकारियों द्वारा ये अनोखाप्रयोग किया है। आमतौर पर किसी भी ट्रक या डंपर में रबर के टायर होते हैं लेकिन, रेलवे ट्रेक पर दौड़ने वाले इन डंपरों की खास बात ये है कि, इसमें रबर के टायर की जगह ट्रेन में इस्तेमाल होने वाले लोहे के पहिए लगाए गए हैं। इसकी मदद से डंपर आसानी से रेलवे ट्रैक दौड़ सकता है।
यहां चल रहा है ये अनोखा काम
बता दें कि, खंडवा से सनावद के बीच 56 किमी के मेन ट्रैक और 9 किमी के बायपास ट्रैक पर फिटिंग और गिट्टी बिछाए जाने का काम चल रहा है। हालांकि,अब तक 45 किमी ट्रैक का काम पूरा किया जा चुका है। अप्रैल तक मथेला-निमाड़खेड़ी और मई तक निमाड़खेड़ी-सनावद तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य है। खंडवा जंक्शन पर प्लेटफॉर्म के हाईलेवल होने और यार्ड निर्माण में करीब डेढ़ साल में पूरा होगा।
इतने सक्षम हैं रेलवे ट्रैक पर दौड़ने वाले ये डंपर
एक बार में 20 टन से ज्यादा गिट्टी ले जाने में सक्षम ये डंपर 40 कि.मी प्रतिघंटे की रफ्तार से ट्रैक पर दौड़ते हुए गिट्टी बिछाने का काम कर सकते हैं। हालांकि, इस दौरान डंपर का स्टेयरिंग लॉक कर दिया जाता है। ट्रैक पर डंपर चलाने वाले ड्राइवर श्याम सिरसाटे ने एक हिन्दी न्यूज वेबसाइट को बताया कि, ये ‘हॉपर’ एक साथ 100 मजदूरों के बराबर काम कर रहा है। इसमें इस्तेमाल किये गए पहिए प्रदेश के ग्वालियर से बनकर आए हैं। हाइड्रोलिक ट्रॉली की मदद से ये ट्रैक पर दौड़ते हुए गिट्टी बिछाने में सक्षम है।
इस तकनीक से इतने दिनों में होगा काम पूरा
बताया जा रहा है कि, जिस ट्रैक पर कनवर्जन का काम चल रहा है, वो ब्रिटिशकालीन ट्रैक है। इसके खस्ता हाल होने के कारण आखरी पैसेंजर ट्रैन जनवरी 2017 में अकोला से सनावद तक दौड़ी थी। इस ट्रैक के बनने के बाद खंडवा-सनावद ट्रैक चार राज्यों को जोड़ने वाले जयपुर-कांचीगुड़ा ट्रैक से मिल जाएगा। इसपर कोयले की ट्रैने दौड़ाई जाएंगी, जिसका लक्ष्य साल 2019 के अंतिम महीने तक रखा गया है। हालांकि, खंडवा तक ट्रेन करीब डेढ़ साल बाद सफर कर सकेगी।