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प्रदेश के 24 घने वनक्षेत्र में इको सेंसिटिव जोन का दायरा हुआ कम, जानिए क्या होगा नुकसान

locationकटनीPublished: Jul 11, 2019 12:21:39 pm

इको सेंसिटिव जोन को लेकर 35 वनक्षेत्रों का प्रस्ताव राज्य सरकार ने केंद्र को भेजा था, इसमें 24 का नोटिफिकेशन अलग-अलग समय में हुआ जारी.नोटिफिकेशन से पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देशभर के वनक्षेत्रों में सीमा से दस किलोमीटर दायरे से बाहर ही हो सकती थी खनन व दूसरी गतिविधियां.इकोसेंसिटिव जोन में किसी वनक्षेत्र में दो, किसी में पांच तो किसी में एक किलोमीटर दूरी का ही दायरा, इससे बाहर हो सकेगी माइनिंग एक्टिविटी.वनक्षेत्र से बेहद समीप खनन गतिविधि होने से जंगल में प्रदूषण बढऩे के साथ ही वन्यप्राणियों के विचरण और विकास पर असर पडऩे की आशंका.

Reduce eco-sensitive zone in 24 dense forest, know what the loss

इको सेंसिटिव जोन का दायरा कम होने से जंगल से सटे क्षेत्र में खनन और दूसरी गतिविधियां बढ़ेंगी

कटनी. केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो साल पहले प्रदेश के चार प्रमुख वनक्षेत्रों में इकोसेंटिव जोन का दायरा दो किलोमीटर तक कर दिया। इसमें सोन घलियाड़ सीधी, घाटीगांव ग्वालियर, गांधीसागर मंदसौर और पनपथा अभ्यारण्य बांधवगढ़ शामिल हैं। 2006-07 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से कहा था कि वनसीमा और माइनिंग गतिविधि को लेकर सरकारें सीमा चिन्हित करें। इस पर कई राज्यों ने ध्यान नहीं दिया तो कोर्ट ने सभी वनक्षेत्रों से बाहर दस किलोमीटर का क्षेत्र निर्धारित कर दिया गया।

इसके बाद किसी भी प्रकार की खनन व दूसरी गतिविधि की अनुमति इस सीमा से बाहर मिलती थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा राज्यों से भेजे जाने वाले प्रस्ताव के बाद इकोसेंसिटिव जोन में जो सीमा निर्धारण का नोटिफिकेश जारी किया जा रहा है उसमें कहीं दो किलोमीटर कहीं पांच तो कहीं एक किलोमीटर दूरी तक ही सीमा है। देशभर में बाघों के ब्रीडिंग सेंटर के रुप में विख्यात बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व जैसे वनक्षेत्र में इसका असर यह हुआ कि टाइगर रिजर्व के कटनी जिले की सीमा से लगे बिचपुरा और बड़ागांव में 11 क्रेशर को संचालन की अनुमति मिल गई। जंगल के समीप ये क्रेशर धड़ल्ले से चल भी रहे हैं।

 

जाहिर इन क्रेशर से होने वाले प्रदूषण से जंगल का इकोसिस्टम प्रभावित होगा। 11 क्रेशर के संचालन को लेकर खनिज विभाग कटनी के निरीक्षक सतीश मिश्रा बताते हैं कि फॉरेस्ट से एनओसी मिलने के बाद बिचपुरा और बड़ागांव में 11 क्रेशर संचालन की अनुमति दी गई। तो बांधवगढ़ के डिप्टी डायरेक्टर एके शुक्ला का कहना है कि खनिज व राजस्व विभाग द्वारा चिन्हित क्षेत्र की वन सीमा से दूरी मांगी जाती है। हम जीपीएस लोकेशन के आधार पर दूरी बता देते हैं। इन विभागों द्वारा ऐसी जानकारी नहीं मांगी जाती है कि क्रेशर व दूसरी गतिविधियों को अनुमति दी जा रही है, और उससे जंगल और वन्यप्राणियों के विचरण पर क्या असर पड़ेगा।

खासबात यह है कि मध्यप्रदेश में 35 वनक्षेत्रों में इको सेसिटिव जोन के लिए क्षेत्र निर्धारण का प्रस्ताव राज्य सरकार ने भेजा है। इसमें से 24 का नोटिफिकेशन केंद्र सरकार से जारी हो गया है। वन्यप्राणी प्रेमियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से देशभर में वनसीमा के दस किलोमीटर दूर तक माइनिंग गतिविधि के लिए अनुमति नहीं मिलने से इतनी दूरी तक वनों के विकास की कल्पना की जा सकती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। स्थितियों के अनुसार क्षेत्र चिन्हित कर इको सेंसिटिव जोन का दायरा कम होने से जंगल से सटे क्षेत्र में खनन और दूसरी गतिविधियां बढ़ेंगी। इसका सीधा नुकसान वनक्षेत्र और वहां वन्यप्राणियों के मूवमेंट पर पड़ेगा।
एपीसीसीएफ वन्यप्राणी भोपाल जेएस चौहान का कहना है कि माइनिंग की जो अनुमतियां पहले से पेंडिंग थी उसको लेकर कोई अलग से प्रावधान नहीं है। बांधवगढ़ के बिचपुरा व बड़ागांव मामले में क्रेशर संचालन को अनुमति कैसे मिली, यह जांच का विषय है। इको सेंसिटिव जोन के लिए प्रदेश से 35 वनक्षेत्रों का प्रस्ताव भेजा गया था जिसमें 24 का नोटिफिकेशन हुआ है। इसमें दायरा स्थितियों के अनुसार कहीं पर दो, कहीं पांच तो कहीं एक किलोमीटर है।

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