इसके बाद किसी भी प्रकार की खनन व दूसरी गतिविधि की अनुमति इस सीमा से बाहर मिलती थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा राज्यों से भेजे जाने वाले प्रस्ताव के बाद इकोसेंसिटिव जोन में जो सीमा निर्धारण का नोटिफिकेश जारी किया जा रहा है उसमें कहीं दो किलोमीटर कहीं पांच तो कहीं एक किलोमीटर दूरी तक ही सीमा है। देशभर में बाघों के ब्रीडिंग सेंटर के रुप में विख्यात बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व जैसे वनक्षेत्र में इसका असर यह हुआ कि टाइगर रिजर्व के कटनी जिले की सीमा से लगे बिचपुरा और बड़ागांव में 11 क्रेशर को संचालन की अनुमति मिल गई। जंगल के समीप ये क्रेशर धड़ल्ले से चल भी रहे हैं।
Read also
आखिर प्रशासन को कड़ी सुरक्षा के बीच क्यों करानी पड़ी जियोस की बैठक
यहां तो प्रभारीमंत्री को भी गलत जानकारी देने में नहीं हिचकिचा रहे अफसर
जाहिर इन क्रेशर से होने वाले प्रदूषण से जंगल का इकोसिस्टम प्रभावित होगा। 11 क्रेशर के संचालन को लेकर खनिज विभाग कटनी के निरीक्षक सतीश मिश्रा बताते हैं कि फॉरेस्ट से एनओसी मिलने के बाद बिचपुरा और बड़ागांव में 11 क्रेशर संचालन की अनुमति दी गई। तो बांधवगढ़ के डिप्टी डायरेक्टर एके शुक्ला का कहना है कि खनिज व राजस्व विभाग द्वारा चिन्हित क्षेत्र की वन सीमा से दूरी मांगी जाती है। हम जीपीएस लोकेशन के आधार पर दूरी बता देते हैं। इन विभागों द्वारा ऐसी जानकारी नहीं मांगी जाती है कि क्रेशर व दूसरी गतिविधियों को अनुमति दी जा रही है, और उससे जंगल और वन्यप्राणियों के विचरण पर क्या असर पड़ेगा।
खासबात यह है कि मध्यप्रदेश में 35 वनक्षेत्रों में इको सेसिटिव जोन के लिए क्षेत्र निर्धारण का प्रस्ताव राज्य सरकार ने भेजा है। इसमें से 24 का नोटिफिकेशन केंद्र सरकार से जारी हो गया है। वन्यप्राणी प्रेमियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से देशभर में वनसीमा के दस किलोमीटर दूर तक माइनिंग गतिविधि के लिए अनुमति नहीं मिलने से इतनी दूरी तक वनों के विकास की कल्पना की जा सकती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। स्थितियों के अनुसार क्षेत्र चिन्हित कर इको सेंसिटिव जोन का दायरा कम होने से जंगल से सटे क्षेत्र में खनन और दूसरी गतिविधियां बढ़ेंगी। इसका सीधा नुकसान वनक्षेत्र और वहां वन्यप्राणियों के मूवमेंट पर पड़ेगा।
एपीसीसीएफ वन्यप्राणी भोपाल जेएस चौहान का कहना है कि माइनिंग की जो अनुमतियां पहले से पेंडिंग थी उसको लेकर कोई अलग से प्रावधान नहीं है। बांधवगढ़ के बिचपुरा व बड़ागांव मामले में क्रेशर संचालन को अनुमति कैसे मिली, यह जांच का विषय है। इको सेंसिटिव जोन के लिए प्रदेश से 35 वनक्षेत्रों का प्रस्ताव भेजा गया था जिसमें 24 का नोटिफिकेशन हुआ है। इसमें दायरा स्थितियों के अनुसार कहीं पर दो, कहीं पांच तो कहीं एक किलोमीटर है।