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कटनी

महिलाओं के पेट चीरते रहे प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर, यहां उपचार को लेकर सामने आई ये हकीकत

जिला अस्पताल ने 365 दिन में हरा दो लाख 9 हजार मरीजों का दर्द, संसाधन बढऩे के साथ सुधरी उपचार की स्थिति, 60 फीसदी कम स्टॉफ के बाद भी मरीजों का उपचार

कटनीJan 06, 2019 / 04:52 pm

balmeek pandey

ayush Doctors

आयुष डॉक्टर

कटनी. जिला अस्पताल में उपचार कराने पहुंचे मरीजों के साथ हुई जरा सी चूक के बाद परिजन एक ओर जहां हंगाम खड़ा करते रहे, डॉक्टरों व नर्सिंग स्टॉफ पर लापरवाही का आरोप मढ़ते रहे तो कई बार खामियां भी उजागर हुईं। इन सभी चुनौतियों के बीच अस्पताल प्रबंधन ने चिकित्सकों और नर्सिंग स्टॉफ की मदद से लोगों के दर्द को हरने का कमा किया है। 2018 की परफॉरमेंस रिपोर्ट बेहतर रही है। इसे राज्य स्तर पर भी सराहा गया है। इसी का परिणाम है कि जिला अस्पताल लक्ष्य जैसी योजना में बाजी मार चुका है। उल्लेखनीय तो यह है कि जिला अस्पताल में सिर्फ कटनी जिला ही नहीं बल्कि पांच पड़ोसी जिलों के मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं। इसमें सतना, पन्ना, दमोह, उमरिया सहित शहडोल आदि शामिल हैं। एक अस्पताल के बजट में पांच जिलों के मरीजों का उपचार किया गया। जिला अस्पताल का 200 बिस्तर से उन्नयन कर 350 कर दिया गया है, ट्रामा सेंटर अलग से मिला है, लेकिन डॉक्टरों, नर्सों सहित अन्य स्टॉफ की पदस्थापना नहीं हुई है। 60 फीसदी से अधिक स्टॉफ की कमी के बाद भी मरीजों को उपचार दिया गया है। मुठ्ठी भर विशेषज्ञों व स्टॉफ के भरोसे सैकड़ों लोगों को इलाज हो रहा है। रोगों के विशेषज्ञों, नर्सिग स्टॉफ से लेकर मशीनों से जांच करने वालों तक की कमी बनी हुई है। हालत यह है कि जरूरत पडऩे पर पीडि़तों का इलाज करने की बजाय उन्हें जबलपुर मेडीकल कॉलेज रेफर करना पड़ता है।

1904 टीबी रोगियों को मिल रहा उपचार
कम स्टॉफ के बाद भी मरीजों को बेहतर उपचार देने का काम हुआ है। सालभर में 2 लाख 9 हजार 37 मरीज उपचार कराने पहुंचे हैं। प्रतिदिन 700 से 800 मरीजों की ओपीडी आ रही है। साल भर में 1904 टीबी के मरीज सामने आए हैं, जिनका उपचार चल रहा है। इसमें मेडिसिन विभाग के 6 हजार 616 मरीजों को उपचार मिला है। रक्तचाप के 2 हजार 692, डायबिटीज के 3 हजार 652, हृदय रोग के 957, रक्तचाप के एक हजार 90, मस्तिष्क रोग से ग्रसित 181 लोगों को लाभ मिला है। सर्जिकल विभाग में 4 हजार 250 मरीज लाभान्वित हुए हैं।

महिला उपचार में रहा आगे
प्राइवेट अस्पताल में मरीजों व उनके परिजनों से मोटी रकम एठने के लिए ऑपरेशन पहली प्राथमिकता हो गई है तो वहीं जिला अस्पताल सीजर से ज्यादा सामान्य प्रसव कराया है। जिला अस्पताल सुरक्षित प्रसव और एसएनसीयू में बेहतर देखभाल के लिए जाना जाता है। यहां पर 2018 में 8 हजार 820 गर्भवती महिलाएं भर्ती हुई हैं। जिसमें से 4 हजार 601 महिलाओं के डॉक्टर व नर्सिंग स्टॉफ ने सामान्य प्रसव कराए हैं। इसी प्रकार 2 हजार 627 महिलाओं को पीपीआइयूसीडी, 2 हजार 416 को आइयूसीडी लगाई गई है। ओटी में 716 ऑपरेशन एलटीटी, सीटीसी ऑपरेशन 30, एनएसवी ऑपरेशन 17, एलएससीएस ऑपरेशन 637, एलएससीएस व सीटीटी के 226 ऑपरेशन हुए हैं। 170 मेजर ऑपरेशन किए गए हैं। एनआरसी में सालभर में 357 कुपोषित बच्चे भर्ती हुए जिन्हें सुपोषित किया गया। वहीं एसएनसीयू में 2 हजार 130 बच्चों को बेहतर लाभ मिला। 2 हजार 372 बच्चों को सुपोषित किया गया।

931 ने कराया डायलिसिस, 2 लाख से अधिक जांचें
अस्पताल में डायलिसिस सेंटर की स्थापना से किडनी रोगियों को राहत मिली है। सालभर में 931 मरीजों ने डायलिसिस कराया है। पैथोलॉजी में 2 लाख 3 हजार 41 जांचें हुई है। अस्पताल में 11 हजार 806 एचआइवी जांच, 6 हजार 364 सोनोग्रॉफी, एक लाख 7 हजार 207 मरीजों ने एक्सरे कराया है। हालांकि नेत्र रोग विभाग रिपोर्ट बेहतर नहीं रही है। सालभर में मात्र 99 को ही लाभ मिला है। ऑर्थोपेडिक में 952, आइसुलेशन में 3 हजार 577 मरीजों को उपचार मिली है।

यह है स्टॉफ की स्थति
जिला अस्पताल में 33 डॉक्टर व विशेषज्ञों की जरुरत है, जिसमें से मात्र 10 ही हैं, 23 पद खाली पड़े हैं। चिकित्सा अधिकारी, दंत शल्य चिकित्सा, आयुष चिकित्सक के 20 में 6 पद खाली हैं। ट्रामा यूनिट के लिए 60 डॉक्टर व अन्य स्टॉफ की जरुरत है, जिसमें से 58 पद खाली हैं। चतुर्थ श्रेणी के 97 द हैं, जिसमें से 67 पद खाली हैं। यही स्थिति मेट्रन, नर्सिंग सिस्टर, ब्रदर, स्टॉफ नर्स, एलएचवी, एएनएम के 170 पद स्वीकृत हैं, जिसमें से 95 की कमी बनी हुई है। तृतीय श्रेणी के 73 पद स्वीकृत हैं, इसमें से 50 पद खाली हैं।

ये है ट्रामा सेंटर की स्वरूप
4 करोड़ 19 लाख रुपए से ट्रामा सेंटर का निर्माण हुआ है। ग्राउंड फ्लोर में 5 कमरे डॉक्टरों के लिए, एक वार्ड, दो लेवर रूम, एक नर्स ड्यूटी रूम, एक डॉक्टर ड्यूटी रूम, कोर्ट यार्ड एरिया, यूरिन टेस्ट रूम, मरीजों के आगवामन के लिए शेड का निर्माण कराया गया है। फस्ट फ्लोर में तीन वार्ड, चार डॉक्टर केबिन, एक पैथॉलोनी लैब, एक आई वार्ड, एक आई वार्ड की ओटी, एनआरसी सेंटर, दो लेट-बॉथ, मेजर ओटी, माइनर ओटी, वेटिंग ऐरिया, रैम्प बना हुआ। सेकंड फ्लोर में 6 प्राइवेट कमरे, दो वार्ड, एक स्टोर रूम सहित यहां पर भी शेड बना है, लेकिन स्टॉफ की पदस्थापना नहीं हुई।

इनका कहना है
जिला अस्पताल में कई वर्षों से स्टॉफ की भारी कमी है। फिर भी सालभर में मरीजों को डॉक्टरों और नर्सिंग स्टॉफ ने बेहतर उपचार दिया है। इस वर्ष स्थिति और बेहतर हो इस दिशा में प्रयास किये जाएंगे।
डॉ. एसके शर्मा, सिविल सर्जन।

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