सामाजिक समीकरण के लिहाज से भी ये मुस्लिम बहुल क्षेत्र जदयू की सियासत के लिए मौजू हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इन पांच संसदीय सीट की सीमाओं से कुल तीस विधायक चुनकर आए जिनमें सबसे आधिक जदयू के तेरह, भाजपा के पांच, कांग्रेस के आठ और आरजेडी के तीन विधायक हैं। इस तरह महागठबंधन के कुल 12 विधायक हैं। हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू, कांग्रेस और आरजेडी के महागठबंधन को साझा वोट मिले पर इस बार जदयू का भाजपा के साथ होने का अलग असर होगा।
बांका में तिकोना संघर्ष
बांका में संघर्ष इस बार तिकोना हो गया है। महागठबंधन की ओर से आरजेडी ने मौजूदा सांसद जयप्रकाश नारायण यादव को मैदान में उतारा है तो जदयू ने विधायक गिरिधारी लाल यादव को।भाजपा की सीट छिन जाने से नाराज दिवंगत दिग्विजय सिंह की विधवा और पूर्व सांसद पुतुल कुमारी ने निर्दलीय ही मैदान में उतर गयीं। 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार दिग्विजय सिंह ने आरजेडी के जयप्रकाश यादव को 28,176 मतों से पराजित किया था। सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी पत्नी पुतुल कुमारी को मैदान में उतारा और वह आरजेडी को हराकर सांसद बनीं। फिर 2014 में जयप्रकाश नारायण यादव ने पुतुल को हराया पर वोटों का अंतल मात्र पांच हजार रहा। इधर जदयू प्रत्याशी गिरिधारी यादव भी इसी क्षेत्र के बेलहर से विधायक होने का भी भरपूर फायदा उठाने में जुटे हैं। भाजपा के मनाने के बावजूद पुतुल मैदान में पार्टी से निलंबन के बाद भी डटी हैं और कड़े मुकाबले के हालात पैदा कर दिए हैं।
भागलपुर में मंडल बनाम मंडल
भाजपा के लिए हमेशा उरवर रहे भागलपुर क्षेत्र में सामाजिक समीकरण इस बार सीधा बना हुआ है। दोनों गठबंधन की ओर से एक ही मंडल जाति (गंगोता कुर्मी) के प्रत्याशी हैं। यह क्षेत्र मंडल और मुस्लिम बहुल है। साथ ही राजस्थान के मारवाड़ी समाज की अधिकता है जिससे भागलपुर को मिनी राजस्थान भी कहते आए हैं। यादव और ब्राम्हण वोटर भी निर्णायक संख्या में हैं। आरजेडी के बुलो मंडल आरजेडी के निवर्तमान सांसद हैं। जदयू प्रत्याशी अजय मंडल नाथनगर के विधायक हैं। पिछली बार बुलो मंडल से करीबी मुकाबले में शिकस्त खाए शाहनवाज हुसैन अरसे बाद भी मैदान में नहीं हैं। भागलपुर में खेमों में बंटी भाजपा ने यह सीट जदयू की थाली में डाल दी है। आजादी के बाद से लगातार 1971 तक यह सीट कांग्रेस के पास रही पर 1977 में पहली बार जनता पार्टी के रामजी सिंह चुनाव जीते। 1989के भागलपुर दंगों के बाद कांग्रेस यहां दोबारा नहीं जीत पाई। कीर्ति आजाद के स्वर्गीय पिता भागवत झा आजाद यहां से पांच बार सांसद बने और 1984 के बाद मुख्यमंत्री बने। यह सीट भाजपा, जनता दल, सीपीएम और आरजेडी के पास भी रही। 2004 में सुशील कुमार मोदी यहां से चुनाव जीते और बाद में बिहार की एनडीए सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाए गये। 2014के चुनाव में आरजेडी के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल ने कड़े मुकाबले में शाहनवाज़ हुसैन को पराजित किया था।
कटिहार में दोनों तरफ ध्रुवीकरण का सहारा
कटिहार में पिछले दो दशक से भी अधिक के अंतराल के बाद मैदान में अखाड़े बदल गये हैं।राकांपा का दामन छोड़ तारिक अनवर ने राहुल गांधी का सहारा ले लिया। अक्सर तारिक से भाजपा के निखिल कुमार चौधरी की भिडंत में आर पार का फैसला होता आया है। पर भाजपा की अंदरूनी लड़ाई और जदयू को साधने की मुहिम में भाजपा ने अपनी जिन पुरानी और जीतने वाली परंपरागत सीट को जदयू के हवाले कर दी उनमें कटिहार प्रमुख है। जदयू ने पूर्व मंत्री दुलालचंद गोस्वामी को मैदान में उतारा है। यादव मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में तारिक अनवर को लेकर भी महागठबंधन के भीतर पेंच फंसा क्योंकि लालू इस क्षेत्र को अपने लिए बेहद मुफीद मानते हैं। अंततः कांग्रेस के खाते में आई सीट पर तारिक अनवर के चलते पूरे देश की निगाह टिकी है। मोदी लहर के दौरान भी यह सीट 2014 में गंवा देने वाली भाजपा को जदयू के जुझारू उम्मीदवार से काफी उम्मीदें लगी हैं।
किशनगंज में गोलबंदी के मायने ही अलग
सत्तर फीसदी मुस्लिम आबादी वाले किशनगंज का मिजा़ज ही दूसरा है।यहां ध्रुवीकरण का मतलब मुस्लिम बहुल आबादी के मुकाबले हिंदु जातियों की गोलबंदी। शाहनवाज हुसैन ने 1999में इसी गोलबंदी की बदौलत सीट जीतकर भाजपा के इतिहास में एक अध्याय जोड़ा। फिर लगातार आरजेडी की जीत होती रही। यहां कांग्रेस ने मो.जावेद को मैदान में उतारा है। मुकाबले में जदयू के मो.अशरफ हैं। इस बार असदुद्दीन ओवैसी ने अख्तरुल इमाम को उम्मीदवार बनाया है और यहां पैठ जमाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। पिछले चुनाव में किशनगंज से कांग्रेस के अशरारूल हक़ चुनाव जीते थे। इस बार जदयू ने कांग्रेस को मात देने के लिए भाजपा की मदद से ध्रुवीकरण का तानाबाना रचने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है।
पूर्णियां में पुराने ही लड़ाके मैदान में
पिछला संसदीय चुनाव भाजपा से अलग होकर अकेले लड़ने वाले जदयू ने सिर्फ पूर्णियां और नालंदा कुल दो सीटें ही जीतीं और इह बार भी सीट शेयरिंग में अपने पाले में लेकर निवर्तमान सांसद संतोष कुशवाहा को मैदान में उतारा है। भाजपा उम्मीदवार रहे उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने कांग्रेस के हाथ का सहारा लेते हुए फिर मैदान में ताल ठोंक दी है। 2004के पूर्व भी वह कांग्रेस में थे। पिछला चुनाव वह जदयू के संतोष कुशवाहा से 1.20 लाग वोटों से हार गये थे। इस बार फिर दोनों ही मैदान मारने की जंग में जुटे हैं।
सीमांचल में दिलचस्प होगा मुकाबला
2014 के मोदी लहर के बावजूद भाजपा को सीमांचल की इन सीटों पर कामयाबी नहीं मिल सकी थी। जदयू अकेले मैदान में रहकर पूर्णियां में शानदार जीत दर्ज़ की थी। भागलपुर, बांका आरजेडी नेतो कांग्रेस ने किशनगंज सीट जीती थी। एनसीपी के तारिक आनवर ने कटिहार सीट जीती। इस बार भाजपा ने सभी सीटें जदयू के खाते में डाल खेल बदलने की चाल चली है। देखना होगा बाजी कैसी लग पाती है।