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कासगंज

Motivational story प्रार्थना भी हो, और होंठो पर मांग भी न आए, पढ़िए संत रामदास की कहानी

मैं परमात्मा के द्वार पर खड़ा हूं। वह देख लेंगे। मैं क्या कहूं? अगर मेरी स्थिति कुछ नहीं कह सकती, तो मेरे शब्द क्या कह सकेंगे?

कासगंजJul 17, 2019 / 07:28 am

धीरेंद्र यादव

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परमसिद्ध सन्त रामदास जब प्रार्थना करते थे तो कभी उनके होंठ नहीं हिलते थे। शिष्यों ने पूछा – हम प्रार्थना करते हैं, तो होंठ हिलते हैं। आपके होंठ नहीं हिलते? आप पत्थर की मूर्ति की तरह खडे़ हो जाते हैं। आप कहते क्या हैं अन्दर से ? क्योंकि अगर आप अन्दर से भी कुछ कहेंगे, तो होंठो पर थोड़ा कंपन आ ही जाता है। चहेरे पर बोलने का भाव आ जाता है, लेकिन वह भाव भी नहीं आता।
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सन्त रामदास जी ने कहा – मैं एक बार राजधानी से गुजरा और राजमहल के सामने द्वार पर मैंने सम्राट को खड़े देखा, और एक भिखारी को भी खड़े देखा। वह भिखारी बस खड़ा था। फटे-चीथड़े थे शरीर पर। जीर्ण – जर्जर देह थी, जैसे बहुत दिनों से भोजन न मिला हो। शरीर सूख कर कांटा हो गया। बस आंखें ही दीयों की तरह जगमगा रही थी। बाकी जीवन जैसे सब तरफ से विलीन हो गया हो। वह कैसे खड़ा था, यह भी आश्चर्य था। लगता था अब गिरा -तब गिरा।
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सम्राट उससे बोला – बोलो क्या चाहते हो ? उस भिखारी ने कहा – “अगर मेरे आपके द्वार पर खड़े होने से, मेरी मांग का पता नहीं चलता, तो कहने की कोई जरूरत नहीं। क्या कहना है और ? मैं द्वार पर खड़ा हूं, मुझे देख लो। मेरा होना ही मेरी प्रार्थना है। “
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सन्त रामदास जी ने कहा -उसी दिन से मैंने प्रार्थना बंद कर दी। मैं परमात्मा के द्वार पर खड़ा हूं। वह देख लेंगे। मैं क्या कहूं? अगर मेरी स्थिति कुछ नहीं कह सकती, तो मेरे शब्द क्या कह सकेंगे? अगर वह मेरी स्थिति नहीं समझ सकते, तो मेरे शब्दों को क्या समझेंगे ?
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अतः भाव व दृढ़ विश्वास ही सच्ची भक्ति के लक्षण हैं। यहाँ कुछ मांगना शेष नहीं रहता। आपका प्रार्थना में होना ही पर्याप्त है। यह भक्ति का पूरा शास्त्र है कि आप मांगो भी और जल्दी भी न करो। प्रार्थना भी हो, और होंठो पर मांग भी न आए।
प्रस्तुतिः दीपक डावर

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