खेलो पत्रिका Flash Bag NaMo9 Contest और जीतें आकर्षक इनाम, कॉन्टेस्ट मे शामिल होने के लिए http://flashbag.patrika.com पर विजिट करें। वह घोड़ा आया और ज्ञान-गुदड़ी वाले स्थल की कोमल-कोमल रज में लोट-पोट होने लगा। सबके देखते-देखते उसका रंग बदल गया, काले से गोरा, अति मनोहर रूपवान हो गया वह। श्रीनन्दबाबा सब आश्चर्यचकित हो उठे। वह घोड़ा सबके सामने मस्तक झुका कर प्रणाम करने लगा । श्रीनन्दमहाराज ने पूछा-‘ कौन है भाई तू ? कैसे आया और काले से गोरा कैसे हो गया ?
वह घोड़ा एक सुन्दर रूपवान विभूषित महापुरुष रूप में प्रकट हो हाथ जाड़ कर बोला- हे ब्रजराज! मैं प्रयागराज हूँ। विश्व के अच्छे बुरे सब लोग आकर मुझमें स्नान करते हैं और अपने पापों को मुझमें त्याग कर जाते हैं, जिससे मेरा रंग काला पड़ जाता है। अतः मैं हर कुम्भ से पहले यहाँ श्रीवृन्दावन आकर इस परम पावन स्थल की धूलि में अभिषेक प्राप्त करता हूँ। मेरे समस्त पाप दूर हो जाते हैं। निर्मल-शुद्ध होकर मैं यहाँ से आप ब्रजवासियों को प्रणाम कर चला जाता हूँ। अब मेरा प्रणाम स्वीकार करें ।
इतना कहते ही वहाँ न घोड़ा था न सुन्दर पुरुष। श्रीकृष्ण बोले- बाबा! क्या विचार कर रहे हो? प्रयाग चलने का किस दिन मुहूर्त है ?
नन्दबाबा और सब व्रजवासी एक स्वर में बोल उठे- अब कौन जायेगा प्रयागराज? प्रयागराज हमारे ब्रज की रज में स्नान कर पवित्र होता है, फिर हमारे लिये वहाँ क्या धरा है ? सबने अपनी यात्रा स्थगित कर दी । ऐसी महिमा है श्रीब्रज रज व श्रीधाम वृन्दावन की।
धनि धनि श्रीवृन्दावन धाम॥
जाकी महिमा बेद बखानत,
सब बिधि पूरण काम॥
आश करत हैं जाकी रज की,
ब्रह्मादिक सुर ग्राम॥
लाडिलीलाल जहाँ नित विहरत,
रतिपति छबि अभिराम॥
रसिकनको जीवन धन कहियत,
मंगल आठों याम॥
नारायण बिन कृपा जुगलवर,
छिन न मिलै विश्राम॥
वह घोड़ा एक सुन्दर रूपवान विभूषित महापुरुष रूप में प्रकट हो हाथ जाड़ कर बोला- हे ब्रजराज! मैं प्रयागराज हूँ। विश्व के अच्छे बुरे सब लोग आकर मुझमें स्नान करते हैं और अपने पापों को मुझमें त्याग कर जाते हैं, जिससे मेरा रंग काला पड़ जाता है। अतः मैं हर कुम्भ से पहले यहाँ श्रीवृन्दावन आकर इस परम पावन स्थल की धूलि में अभिषेक प्राप्त करता हूँ। मेरे समस्त पाप दूर हो जाते हैं। निर्मल-शुद्ध होकर मैं यहाँ से आप ब्रजवासियों को प्रणाम कर चला जाता हूँ। अब मेरा प्रणाम स्वीकार करें ।
इतना कहते ही वहाँ न घोड़ा था न सुन्दर पुरुष। श्रीकृष्ण बोले- बाबा! क्या विचार कर रहे हो? प्रयाग चलने का किस दिन मुहूर्त है ?
नन्दबाबा और सब व्रजवासी एक स्वर में बोल उठे- अब कौन जायेगा प्रयागराज? प्रयागराज हमारे ब्रज की रज में स्नान कर पवित्र होता है, फिर हमारे लिये वहाँ क्या धरा है ? सबने अपनी यात्रा स्थगित कर दी । ऐसी महिमा है श्रीब्रज रज व श्रीधाम वृन्दावन की।
धनि धनि श्रीवृन्दावन धाम॥
जाकी महिमा बेद बखानत,
सब बिधि पूरण काम॥
आश करत हैं जाकी रज की,
ब्रह्मादिक सुर ग्राम॥
लाडिलीलाल जहाँ नित विहरत,
रतिपति छबि अभिराम॥
रसिकनको जीवन धन कहियत,
मंगल आठों याम॥
नारायण बिन कृपा जुगलवर,
छिन न मिलै विश्राम॥
प्रस्तुतिः डॉ. आरके दीक्षित, सोरों