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स्वर्ग और नरक कैसे प्राप्त होते हैं, पढ़िए आँखें खोल देने वाली कहानी

locationकासगंजPublished: Mar 09, 2019 07:19:37 am

जितना समय, हमारा मन, भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण और धाम में रहता है केवल उतना समय ही हम पाप से मुक्त रहते हैं।

एक महात्मा ने जीवन भर हरि भजन-कीर्तन किया था। उनके आश्रम के सामने एक तालाब था। जब उनका अंत समय आया तो उन्होंने देखा कि एक बगुला मछली पकड़ रहा था। उन्होंने बगुले को उड़ा दिया। इधर उनका शरीर छूटा तो नरक में जाना पड़ा। उनके चेले को स्वप्न में दिखाई दिया कि वे कह रहे हैं :- “बेटा! हमने जीवन भर कोई पाप नहीं किया, केवल एक बगुले को उड़ा देने मात्र से नरक मिला है मुझे, लेकिन तुम सावधान रहना।”

जब इस शिष्य का भी शरीर छूटने का समय आया तो वही दृश्य पुनः आया। बगुला मछली पकड़ रहा था। गुरु का निर्देश मानकर उसने बगुले को नहीं उड़ाया। मरने पर वह भी नरक पहुंचा, तब एक गुरुभाई को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि गुरुजी ने तो बगुला उड़ाया था इसलिए नरक गये, हमने नहीं उड़ाया इसलिए नरक प्राप्त हुआ है, पर तुम बचके रहना!

जब इन गुरुभाई की मरने की घड़ी आई तो संयोग वश पुनः बगुला मछली मारता दिखाई दिया। गुरुभाई ने भगवान को प्रणाम करते हुए प्रार्थना की; भगवन! आप मछली में हो और आप बगुले में भी। हमें नहीं मालूम कि क्या सही है और क्या गलत? पाप क्या है, पुण्य क्या है? हमें नहीं पता, आप अपनी व्यवस्था स्वयं देखें। मुझे तो सिर्फ आपके चिंतन से मतलब है। बस इतना कहकर जब इनका शरीर शांत हुआ तो बैकुंठ की प्राप्ति हुई।

श्री नारद ने भगवान से पूछा, “भगवन! अंततः वे नरक क्यों गये? महात्मा ने बगुला उड़ाकर कोई पाप तो नहीं किया?”

उतर में भगवान ने कहा, “नारद! उस दिन बगुले का आहार मछली था, पर गुरुवर ने उसे उड़ा दिया। भूख से छटपटा कर बगुले का अंत हुआ, अतः पाप लगा, इसलिए उनको नरक जाना पड़ा।”

नारद ने फिर पूछा, “दूसरे ने तो नहीं उड़ाया, वह क्यों नरक गया?”

भगवान बोले, “उस दिन बगुले का पेट भरा था, वह केवल विनोद वश मछली पकड़ रहा था, उसे उड़ा देना चाहिए था। शिष्य से भूल हुई और इस पाप के कारण उसे नरक मिला।”

नारदजी ने पुनः पूछा, “और तीसरा?” भगवान ने कहा; “तीसरा मेरे भजन में लगा रहा, उसने सारी ज़िम्मेदारी मुझको सौंप दी। जैसा होना था, वैसे ही हुआ; किंतु मुझसे संबंध जोड़ने के कारण और मेरे ही चिंतन के प्रभाव से वह मेरे धाम को प्राप्त हुआ।”
सीख
अतः पाप-पुण्य की चिंता में समय न गँवाकर जो निरंतर हरि चिंतन में लगा रहता है, वह मेरे परम धाम को प्राप्त होता है। जितना समय, हमारा मन, भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण और धाम में रहता है केवल उतना समय ही हम पाप से मुक्त रहते हैं। इस लिए सदैव हरिनाम लेते रहें, हरि चर्चा करते रहें, हरि कथा सुनते रहें।
श्रीमन्नारायण नारायण हरि हरि,तेरी लीला सबसे न्यारी न्यारी, हरि हरि!
प्रस्तुतिः दीपक डावर

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