ये सुनकर बराबर की समाधि पर एक आदमी फ़ोन पर किसी फूलवाले से हज़ारों रुपयों की फूलों की चादर लेने के लिए बात करते-करते कुछ सोचकर फ़ोन पर बोला कि ऑर्डर कैंसिल कर दो, नहीं चाहिए भाई। फूल इधर ही मिल गए हैं।
पैसे बच्चे के हाथ में रख कर बोला :- “बेटा, ये लो तुम्हारे पापा ने भेजे हैं। कल स्कूल जाना। सीख दोस्तो, हम जिन्दगी में जाने अनजाने में कितनी गलतियां कर जाते हैं, पर किसी एक जरूरतमन्द की अगर हम सहायता करते हैं, उसके काम आ जाते हैं तो हमारी जिन्दगी धन्य हो जाती है। मैं ये दावा के साथ कह रहा हूँ कि आप किसी असहाय की मदद करके देखिए आप के मन को बहुत शांति मिलेगी। कोई जाति, धर्म बड़ा नहीं होता, इन्सानियत बड़ी होती है। कुछ भी बनो मुबारक है पर पहले इन्सान बनो।
प्रस्तुतिः डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित, प्राध्यापक, केए कॉलेज, कासगंज, आगरा