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हरियाणा में कठिन है भाजपा प्रत्याशियों की डगर, कई सीटों पर भितरघात का डर

locationकरनालPublished: Apr 08, 2019 05:47:28 pm

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Prateek

लोकसभा चुनाव में इन प्रत्याशियों को प्रदेश सरकार का ही सहारा होगा…

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संजीव शर्मा/चंडीगढ़,करनाल: भारतीय जनता पार्टी की ओर से घोषित किए गए आठों लोकसभा प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में इस बार कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। कई लोकसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को विरोधियों के साथ-साथ अपनों से भी जूझना पड़ रहा है। रतनलाल कटारिया, राव इंद्रजीत, धर्मवीर, रमेश कौशिक जैसे सांसद भले ही दोबारा टिकट लेने में कामयाब हो गए हैं लेकिन इनकी डगर आसान नजर नहीं आ रही। राजनैतिक समीकरणों में भी शुरू से ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल और राज्य सरकार के साथ इनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में इन प्रत्याशियों को प्रदेश सरकार का ही सहारा होगा। क्योंकि इनमें से कई ऐसे हैं, जिनका अपने-अपने क्षेत्रों में भारी विरोध है।

 

अंबाला में कटारिया और विज में दूर नहीं हुए मतभेद

पिछले पांच साल के दौरान रतनलाल कटारिया और कैबिनेट मंत्री अनिल विज कभी भी एक मंच पर नहीं आए। पार्टी हाईकमान और प्रदेश प्रभारी अनिल जैन ने भी दोनों नेताओं को इकट्ठा बैठाने का प्रयास किया लेकिन वह भी सफल नहीं हो सके। विज और कटारिया के एक-दूसरे के खिलाफ बयान के वीडियो कई बार वायरल हो चुके हैं। अंबाला जिला से संबंधित दूसरे मंत्री नायब सैनी खुद कुरूक्षेत्र से चुनाव लडऩे के कारण कटारिया के लिए प्रचार नहीं कर पाएंगे। सांसद रहते कटारिया जनता से ज्यादा तालमेल नही रख सके। कांग्रेस द्वारा यहां से कुमारी सैलजा को चुनाव मैदान में उतारने की अटकलें चल रही हैं। ऐसे में यहां कटारिया फंसे नजर आ रहे हैं।


कुरूक्षेत्र में सैनी की राह में रोड़ा बनेंगे सैनी

पिछली बार कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर जोरदार जीत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार चुनावी चक्रव्यूह में फंस सकती है। बीजेपी के निवर्तमान सांसद राजकुमार सैनी पार्टी से बगावत करके अपनी खुद की पार्टी बना चुके हैं। उनके विकल्प के रूप में बीजेपी ने नारायणगढ़ के विधायक नायब सैनी को चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि इस सीट से पंजाबी बिरादरी से संबंधित विधायक सुभाष सुधा का नाम बड़ी तेजी से चल रहा था। कुरूक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र में सैनी समुदाय का एक लाख से अधिक वोट है। सैनी समुदाय के वोट दो हिस्सों में बंटेंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस यहां से नवीन जिंदल को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी में है। नायब सैनी के बारे में बाहरी प्रत्याशी का प्रचार शुरू हो चुका है। यह उनके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है।

 

करनाल में ब्राह्मणों का गुस्सा झेलना पड़ सकता है भाजपा को

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के जिले से संबंधित करनाल लोकसभा सीट पर बीजेपी के लिए दोबारा जीत दर्ज करना बेहद महत्व रखता है। सीएम मनोहरलाल अपने चहेते संजय भाटिया को टिकट दिलवाने में सफल रहे। संजय भाटिया 2004 और 2009 में पानीपत विधानसभा से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन हार गए थे। यहां अब तक हुए 16 में से 14 चुनावों में ब्राह्मण समुदाय का सांसद बना है। इस सीट पर ब्राह्मणों के वोट सबसे अधिक हैं। संजय भाटिया के लिए करनाल के नेताओं को साथ लेकर चलना बड़ी चुनौती होगा।

 

सोनीपत में कौशिक बनेंगे सहारा

जाटलैंड का गढ़ माने जाने वाली सोनीपत लोकसभा सीट को दोबारा जीतने के लिए बीजेपी को भारी मशक्कत करनी पड़ेगी। वर्तमान सांसद रमेश कौशिक को लेकर लोगों में भारी नाराजगी के बावजूद पार्टी ने उन्हें दोबारा मैदान में उतारकर बड़ा जोखिम लिया है। पिछले पांच वर्षों के दौरान कौशिक पहले ऐसे सांसद हैं, जिन्होंने इस बार चुनाव लडऩे से इनकार किया था। कौशिक राव इंद्रजीत और धर्मवीर वाली उस तिकड़ी का भी हिस्सा रहे हैं, जिसने मुख्यमंत्री से अलग होकर एसवाईएल के मुद्दे पर मोदी से मुलाकात का समय मांगा था। इसके बावजूद रमेश कौशिक को इस बार यहां चुनाव जीतने के लिए मुख्यमंत्री का ही सहारा है।

 

गुरुग्राम में राव को राव से चुनौती, सीएम के समर्थन की दरकार

गुरुग्राम लोकसभा सीट से दोबारा प्रत्याशी बनकर आए केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत की छवि भले ही दक्षिण हरियाणा के नेता की हो, लेकिन इस बार उनकी राह भी आसान नहीं है। मुख्यमंत्री बनकर चंडीगढ़ सचिवालय में बैठने का सपना पालने वाले राव इंद्रजीत पिछले पांच साल के दौरान समय-समय पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल को आंख दिखाते रहे हैं। सरकार को बड़ा संदेश देने के लिए उन्होंने अहीरवाल से बाहर आकर झज्जर में रैली तक कर डाली थी। राव इंद्रजीत के हमेशा सीएम के साथ वैचारिक मतभेद रहे हैं। दूसरा कैबिनेट मंत्री राव नरबीर के साथ भी उनकी कभी पटरी नहीं बैठी है। मुख्यमंत्री इस सीट से राव नरवीर सिंह को चाहते थे लेकिन राव इंद्रजीत सिंह टिकट हासिल करने में कामयाब हो गए। इन समीकरणों का असर राव के चुनाव पर पड़ेगा।

 

फरीदाबाद में चौकाया भाजपा आलाकमान ने

फरीदाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा ने कृष्णपाल गुर्जर को दोबारा टिकट देकर आश्चर्यजनक संकेत दिए हैं। गुर्जर ऐसे प्रत्याशी हैं जिनका मंत्री होते हुए फरीदाबाद में खुलेआम विरोध हुआ है। यहां लोगों ने उनके विरूद्ध प्रतीकात्मक पोस्टर तक लगा दिए थे। कृष्णपाल गुर्जर की हरियाणा के कैबिनेट मंत्री विपुल गोयल के साथ कभी नहीं बनी। दोनों नेताओं के आपसी नोक-झोंक के वीडियो अक्सर वायरल होते रहे हैं। विपुल गोयल से दूरी, पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं नाराजगी और जनता में विरोध के चलते गुर्जर को यहां भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

 

अंतिम समय में टिकट हासिल करने में कामयाब रहे धर्मबीर

हरियाणा में चौधरी बंसीलाल के बाद उनके स्कूल में पढ़े धर्मबीर सिंह ऐसे नेता हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अंतिम समय में पासा पलट देते हैं। पूर्व हुड्डा सरकार में सोहना से चुनाव जीतना और पिछली बार भाजपा में शामिल होने के महज तीन घंटे बाद टिकट लेकर चुनाव जीतना इसके उदाहरण हैं। धर्मबीर डेढ साल से चुनाव लडऩे से इनकार कर रहे थे। जिसके चलते उन्होंने अपने क्षेत्र में भी सक्रियता कम कर रखी थी। जींद चुनाव में मिली जीत के बाद उन्होंने यू टर्न लिया और टिकट फाइनल होने से पहले मुख्यमंत्री के साथ समझौता करके टिकट हासिल कर लिया। लेकिन दो सप्ताह पहले ही किसानों द्वारा धर्मबीर का विरोध किए जाने का एक वीडियो वायरल हुआ, जो इन दिनों काफी चर्चा में है।

 

चौटाला के गढ़ में सुनीता दुग्गल को मिलेगी कड़ी टक्कर

सिरसा लोकसभा सीट के समीकरण बेहद रोचक हैं। पिछले चुनाव में यहां से इनेलो के चरणजीत सिंह रोड़ी चुनाव जीते थे। सिरसा तथा इसके आसपास के क्षेत्रों में भाजपा विधायकों की संख्या भी अन्य जिलों के मुकाबले कम है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी के बावजूद हारी गई सीटों में शामिल सिरसा से बीजेपी ने भारतीय राजस्व सेवा की नौकरी छोडऩे वाली सुनीता दुग्गल को टिकट दिया है। सुनीता दुग्गल ने पिछला विधानसभा चुनाव रतिया से लड़ा था लेकिन हार गई थीं। सिरसा से कांग्रेस ने अपने प्रदेशाध्यक्ष डॉ अशोक तंवर को मैदान में उतारा है। चौटाला के गढ़ व कांग्रेस की पारंपरिक सीट पर जीतने के लिए दुग्गल को खासी मेहनत करनी पड़ेगी।

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