हिण्डौन डिपो की 84 बसों में से अनुबंध की 12 बसों के अलावा रोडेवज की 67 बसें ऑन रूट संचालित हैं। जबकि सात बसें इंजन के अभाव में डिपो अथवा जयपुर कार्यशाला में खड़ी हैं। रोडवेज सूत्रों के अनुसार रोडवेज निगम की धरोहर में शुमार 67 में से 35 बसेें 10 बर्ष से अधिक पुरानी होने से 12-15 लाख किलोमीटर का सफर करने से माइलेज के मानक पर खरी नहीं हैं। रोडवेज द्वारा डिपो की बसों के लिए 5.20 किलोमीटर प्रति लीटर का लक्ष्य तय किया हुआ। जबकि अवधि पार होने से कण्डम खटारा हुई बसों का माइलेज की सूई 4 से 4.5 किलोमीटर प्रतिलीटर पर अटक गई है। कई बसों का माइलेज 3.97 किलोमीटर प्रति लीटर ही है। मानकों के मुताबिक खटारा श्रेणी में शुमार 35 बूढ़ी बसें भी लोकल रूटों पर करीब 12 हजार 250 किलोमीटर का सफर करती है। नई बसों की तुलना में इन बसों में रोजाना करीब 350 लीटर डीजल अधिक खपत होती है। यानी रोडवेज को खटारा बसों में यात्रियों को करना महंगा पड़ रहा।
रोडवेज सूत्रों के अनुसार हिण्डौन डिपो की बसों 77 शिड्यूलों पर हर रोज 28-29 हजार किलोमीटर दौड़ती हैं। इसके एवज में डिपो में स्थापित एचसीएल के पम्प से 5 हजार लीटर डीजल की खपत होती है। ऐसे में तेल कम्पनी से डिपो को हर तीसरे दिन 12 हजार लीटर की क्षमता के टैंकर के आपूर्ति की जाती है।
किलोमीटर लक्ष्य के लिए डिपो की हरेक प्रति दिन करीब 350 किलोमीटर चलाई जाती है। लोकल रुटों पर कण्डम श्रेणी में पहुंची 35 बसें भी सडक़ों पर दौड़ती हैं। यानी डिपो की बूढ़ी बसेंं भी दिन भर मेंं करीब 12 हजार 250 किलोमीटर संचालित हो लक्ष्य के करीब 45 फीसदी सफर को पूरा करती हैं।
यंू समझें माइलेज मार-
हिण्डौन से करौली की 30 किलोमीटर की दूरी को मानकों के अनुसार नई बस करीब साढ़े पांच लीटर डीजल खर्च कर तय करती है। वहीं बूढ़ी बसें इस सफर को साढ़े 6 से 7 लीटर डीजल तय करती हैं। यानी एक से दो लीटर डीजल की ज्यादा खपत होती है।
नई बसें व इंजन मिले तो बढ़े माइलेज
पचास फीसदी बसें पुरानी हंै, इंजन मरम्मत मांग रहे हैं। नई बसें व इंजन मिलें तो माइलेज की मार से राहत मिलेगी।
-भाईराम गुर्जर, प्रबंधक (संचालन) हिण्डौन डिपो, राजस्थान परिवहन निगम।