इस मौके पर नन्दबाबा का दरबार सजा, जिसमें पुजारी रविकुमार ने नन्दबाबा की भूमिका निभाई। हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच भजनों पर ढांड़ा-ढांड़ी नृत्य ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। इस अवसर पर रियासतकालीन परम्परा के अनुसार चौधरी परिवार की ओर से भगवान के लिए पोशाक लाई गई। ढांड़ा-ढांड़ी नृत्य के दौरान नन्दबाबा को कान्हा जन्म की बधाई दी गई।
गौरतलब है कि बृज से जुड़े और मिनी वृन्दावन के रूप में पहचान रखने वाले करौली में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केे मौके पर प्रसिद्ध मदनमोहनजी मंदिर में होने वाले ढांड़ा-ढांड़ी नृत्य की परम्परा आज भी कायम है। रियासतकाल में शुरू हुई यह परम्परा आमजन के आकर्षण का केन्द्र रहती है।
लल्ला (कृष्ण) जन्म से पहले होने वाले इस आयोजन में भक्ति और उल्लास का अनूठा नजारा देखते ही बनता है। हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच नन्द बाबा के दरबार में नृत्य करते ढांडा-ढांडी भजनों के बीच नन्द बाबा को बधाई देते हैं।
मंदिर परिसर में यह आयोजन शाम के समय होता है, जिसमें नन्द बाबा का दरबार सजाया जाता है और मंदिर पुजारी नन्दबाबा के रूप में बैठते हैं। इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा बताते हैं कि महाराजा गोपालसिंह के समय मदनमोहनजी मंदिर में यह परम्परा शुरू हुई थी, जो अब भी बदस्तुर जारी है।
चौधरी परिवार अर्पित करता है पौशाक
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर भगवान कान्हा चौधरी परिवार की ओर से अर्पण की जाने वाली पोशाक धारण करते हैं। यह परम्परा भी रियासतकाल से चली आ रही है। इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा के अनुसार राजा हरबक्सपाल की ओर से यहां के चौधरी परिवार को जन्माष्टमी के मौके पर पौशाक की स्वीकृति दी गई थी, तभी से चौधरी परिवार और उनके वशंज जन्माष्टमी पर लल्ला (श्रीकृष्ण) को गाजे-बाजे के साथ पोशाक लेकर पहुंचते हैं। परम्परा के अनुसार मंदिर प्रशासन की ओर से उन्हें प्रसादी भेंट की जाती है।