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जिसे देख सहम जाते थे दुश्मन, अब अपने का झेल रहा जख्म…पढ़ें पूरी खबर

locationकरौलीPublished: Sep 11, 2019 12:16:24 pm

Submitted by:

Dinesh sharma

करौली. शहर के जिस बेजोड़ परकोटे को देख दुश्मन भी सहम जाते थे, वहीं परकोटा अब दरक रहा है।

जिसे देख सहम जाते थे दुश्मन, अब अपने का झेल रहा जख्म...पढ़ें पूरी खबर

जिसे देख सहम जाते थे दुश्मन, अब अपने का झेल रहा जख्म…पढ़ें पूरी खबर

करौली. शहर के जिस बेजोड़ परकोटे को देख दुश्मन भी सहम जाते थे, वहीं परकोटा अब दरक रहा है। रियासतकालीन इस शान की नगरपरिषद -प्रशासन ने लगातार अनदेखी की है और अपनों ने स्वार्थ के चलते इसको खुर्द-बुर्द कर डाला है। इस स्थिति से मिले जख्मों से यह परकोटा दर्द से कराह रहा है।
करौली शहर में जगह-जगह से तहस-नहस हुए परकोटे की दुदर्शा पर वृद्धजन अफसोस जताते हैं। वे कहते हैं कि ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए अभी भी काफी कुछ बचा है। इसके लिए आमजन से जागरूकता और नगरपरिषद-प्रशासन से दृढ़ इच्छा शक्ति की दरकार है। वरना तो धीरे-धीरे रियासतकालीन परकोटे का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
हालांकि पिछले वर्षों में आरयूआईडीपी की ओर से परकोटे के कुछ हिस्से पर लाखों रुपए खर्च कर मरम्मत तो कराई है, लेकिन इसके संरक्षण के प्रति किसी का ध्यान नहीं है। नतीजतन कई जगह से परकोटा दरक चुका है और अनेक स्थान पर अतिक्रमण की भेंट चढ़ा है।
रियासत में मजबूत थी सुरक्षा
इतिहास के जानकार बताते हैं कि रियासतकाल के दौरान अपनी रियासत की सुरक्षा के लिए शासकों द्वारा करौली शहर में परकोटे का निर्माण कराया गया था। करीब 5-6 किलोमीटर के दायरे में लाल पत्थरों से मजबूत परकोटे का निर्माण हुआ था। इसमें सात दरवाजे और 12 खिड़कियों का भी निर्माण हुआ।
उस जमाने के परकोटे आज भी मजबूती की दृष्टि से बेजोड़ हैं। दरवाजों का नाम हिण्डौन गेट, वजीरपुर गेट, गणेश गेट, मेला गेट, मासलपुर गेट, नदी गेट, नगाडख़ाना दरवाजा रखा गया।वहीं खिड़कियों के नाम भी अलग-अलग दिए गए। हालांकि आवश्यकतानुसार पिछले कुछ वर्षों में कुछ अधिकांश खिड़कियों की चौड़ाई बढ़ा दी गई है।
यहां हो रही दुदर्शा
वर्तमान में परकोटा बैठा हनुमान, ढोलीखार, मासलपुर गेट के समीप से तहस-नहस हो गया है। वहीं होली खिड़किया, वजीरपुर गेट, सायनात खिड़किया इलाका आदि स्थानों पर परकोटा अतिक्रमण की जद में है।
जयपुर का परकोटा बढ़ा चुका है मान
करौली की भांति राजधानी जयपुर का परकोटा भी रियासतकालीन है। एक ओर करौली का परकोटा अपने अस्तित्व के लिए जद्दोजहद कर रहा है, वहीं दूसरी ओर जयपुर का परकोटा विश्व धरोहर में शामिल होकर देश और प्रदेश का मान बढ़ा चुका है।
खतरे की भी आशंका
रियासतकालीन शान के दरकने को लेकर लोग आहत भी हैं। वहीं क्षतिग्रस्त परकोटे से आसपास के इलाके के लोगों को खतरे की आशंका भी रहती है। शहर के अबरार काजी कहते हैं कि परकोटा दरक रहा है।
इसकी सार-संभाल की जरुरत है। एक ओर तो धरोहर तहस-नहस हो रही है, वहीं आसपास के लोगों को भी इससे खतरा बना रहता है। कभी भी हादसा हो सकता है। इसे लेकर कई बार नगरपरिषद और जिला प्रशासन को अवगत भी कराया। इसी प्रकार ढोली खार निवासी निजामुद्दीन का कहना है कि शासन-प्रशासन को परकोटे को दुरुस्त कराना चाहिए। परकोटे के टूटने से जंगली जानवर तक इलाके में प्रवेश कर जाते हैं।
इतिहासकार वेणुगोपाल शर्मा के अनुसार करौली नगर की स्थापना के बाद नगर सुरक्षा के लिए करौली के प्रतापी राजा गोपाल सिंह ने 1724-1757ई. अवधि में नगर की दोहरी सुरक्षा के लिए पुराने परकोटे के अन्दर लाल पत्थर से मजबूत परकोटे का निर्माण कराया। परकोटे की 10-15 फीट ऊंचाई पर सैनिकों की नियमित गश्त के लिए पगमार्ग एवं सीढिय़ां बनाई गई। गश्ती सैनिक इस पद मार्ग के समानान्तर छिद्रों से दुश्मन पर गोली दाग सकते थे तथा अपनी ऊंचाई के समानान्तर छोटे छिद्रों से दुश्मन को देख सकते थे। आबादी विस्तार के साथ ही परकोटे की दीवारों पर अतिक्रमण हो गया। कई जगह मकान बन गए हैं। पुराने कच्चे परकोटे की बुर्जों का तो निशान ही मिट सा गया है। नगर परिषद की उदासीनता से करीब 300 वर्ष प्राचीन विरासत का यही हश्र होता रहा तो यह धरोहर इतिहास के पन्नों में ही दर्ज होकर रह जाएगी।
चलाएंगे अभियान
परकोटे पर हो रहे अतिक्रमण को हटाने के लिए अभियान चलाया जाएगा। वहीं इसे दुरुस्त कराने के लिए हमने प्रस्ताव बनाकर भिजवा दिए हैं।
राजाराम गुर्जर, सभापति, नगरपरिषद करौली

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