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मर्ज पर भारी उपचार का दर्द, सिलिकोसिस पीडि़तों को समय पर मिलती सहायता ना होती जांच

locationकरौलीPublished: Jun 15, 2019 05:07:30 pm

Submitted by:

Dinesh sharma

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मर्ज पर भारी उपचार का दर्द, सिलिकोसिस पीडि़तों को समय पर मिलती सहायता ना होती जांच

दिनेश शर्मा
करौली. सिलिकोसिस बीमारी से सिसकती जिंदगियों को सहारा देने की खातिर भले ही सरकार ने सहायता राशि में इजाफा कर दिया हो, लेकिन जांच की धीमी चाल इस जानलेवा बीमारी से पीडि़त रोगियों को भारी पड़ रही है। जांच-उपचार की रेंगती प्रक्रिया के चलते अनेक मरीज तो उपचार से पहले ही दुनिया से अलविदा हो जाते हैं।
जांच-उपचार की जटिल प्रक्रिया रोग से पीडि़त व्यक्ति को सिसकने को मजबूर कर रही है। इस सबके चलते ना रोगियों को समय पर उपचार मिल पाता है और ना ही सहायता राशि। गौरतलब है कि करौली जिले में सैण्ड स्टोन और सिलिका की खदाने हैं, जिन पर हजारों लोग काम करते हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता होता कि परिवार का भरण-पोषण करने की जुगत में वे बिना सुरक्षा संसाधनों के खुद की जान को जोखिम में डाल रहे हैं। सुरक्षा संसाधनों के बिना हजारों मजदूर सिलिकोसिस की चपेट में आ चुके हैं।
जानकारों के अनुसार खदानों पर उडऩे वाली धूल के श्वांस के साथ अंदर जाने से पत्थर के कण फेफड़ों में जमा होते हैं, जिससे सिलिकोसिस की बीमारी उनको घेर लेती है। ऐसे मजदूरों की संख्या हजारों में है।
आंकड़ों में पंजीयन
सिलिकोसिस पीडि़तों को सरकारी सहायता की कितनी मलहम लग पाती है, उसकी सच्चाई आंकड़ें बयां करते हैं। मासलपुर क्षेत्र के सामाजिक व आरटीआई कार्यकर्ता मनीराम मीना ने बताया कि वर्तमान में करीब 5873 जनों ने ऑनलाइन पंजीयन कराया।
इनमें से सीएचसी लेबिल पर स्क्रीनिंग के 1292 केस लंबित हैं, वहीं मेडिकल बोर्ड से 1548 केस स्क्रीनिंग के लिए लंबित पड़े हैं। शेष भी प्रक्रियाधीन है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार इनमें से 256 जनों के प्रमाण पत्र बन चुके हैं। गौरतलब है कि सिलिकोसिस के बोर्ड द्वारा प्रमाणित किए जाने पर मरीज को 2 लाख रुपए नकद दिया जाता है और मृत्यु होने पर परिजन को 3 लाख की सहायता मिलती है। इस सबके बावजूद ना चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग गंभीर है और ना ही जिला प्रशासन के अधिकारी इस ओर ध्यान दे रहे।
इन इलाकों में खनन
जिले के लांगरा, मासलपुर, कुडग़ांव, हिण्डौन, मण्डरायल आदि इलाकों में विशेष रूप से खनन कार्य होता है। इन पत्थर खदानों पर हजारों श्रमिक कार्य करते हैं, लेकिन खदानों में श्रमिकों की सुरक्षा की अनदेखी ही की जाती है। न तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में मास्क मिल पाते हैं और ना हीं उन्हें सुरक्षित कार्य करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे में कार्य के दौरान पत्थरों से निकलने वाले डस्ट (धूल) उनके शरीर में अन्दर जमा होती रहती है, जिससे वे रोग की चपेट में आ जाते हैं।
5800 से अधिक ने कराया पंजीयन
करीब 10 माह पहले से सिलिकोसिस के संभावित मरीजों की जांच के लिए पंजीयन ऑन लाइन शुरू किए गए थे। इस अवधि के दौरान 5800 से अधिक रोगियों ने जांच के लिए पंजीयन कराया है। विभागीय प्रक्रिया के अनुसार सिलिकोसिस बीमारी का सत्यापन चिकित्सकों के बोर्ड द्वारा किया जाता है जिसके लिए बैठक होती है। लेकिन पर्याप्त संख्या में रोगियों की जांच नहीं हो पाती।
ऐसे में मरीजों की जांच की गति तो धीमी है जबकि संभावित मरीजों के पंजीयन की संख्या लगातार बढ़ रही है। नतीजतन सिलिकोसिस की गंभीर बीमारी की जकड़ में आ रहे पत्थर श्रमिकों की जांच में देरी का सिलसिला चल रहा है। इस स्थिति के बावजूद सिलिकोसिस मरीजों के जांच कार्य में तेजी लाने को लेकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग गंभीर नहीं है।
जांच-सहायता में होती है देरी
सिलिकोसिस पीडि़तों को जांच और सहायता में देरी हो रही है। जांच के इंतजार में ही कई पीडि़त दम तोड़ देते हैं। इस बारे में कलक्टर को ज्ञापन सौंपा गया था। करीब एक वर्ष से पीडि़तों को सहायता राशि नहीं मिली है। खनन क्षेत्र में सुरक्षा संसाधनों की भी अनदेखी की जा रही है।
विकास भारद्वाज, सचिव, डांग विकास संस्थान, करौली
जांच में तेजी के कर रहे प्रयास
जांच प्रक्रिया में तेजी लाने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। समय पर उपचार और प्रमाण पत्र जारी हो, इसके लिए व्यवस्था की हुई है। हालांकि परेशानी यह है कि ऑनलाइन पंजीयन की संख्या काफी अधिक हुई है। 2774 जनों के आवेदन ही निरस्त हुए हैं।
डॉ. विजयसिंह मीना, जिला क्षय रोग अधिकारी, करौली

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