जनप्रतिनिधि चुनाव में भूमिका बेअसर
जनप्र्रतिनिधियों के चुनाव में कॉलेज की छात्र राजनीति की भूमिका गौण ही दिखती है। जनप्रतिनिधि चुनाव में तो छात्र नेता गायब से ही दिखते हैं। करौली कॉलेज की छात्र राजनीति से निकला कोई भी युवा अभी प्रमुख जनप्रतिनिधि पद तक भी नहीं पहुंचा है।
संगठनों से दूर ही रहते छात्रनेता
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एनएसयूआई व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का संगठन साल भर सक्रिय रहता है। लेकिन चुनाव के समय इनकी भूमिका भी केवल चुनाव जीतने के लक्ष्य पर आधारित होती है। आमतौर पर किसी संगठन का अध्यक्ष पद का उम्मीदवार व पैनल चुनाव नहीं जीता है। हालांकि उपाध्यक्ष व महासचिव पर जरूर जीत मिली है। इस कारण छात्रनेता चुनाव के समय संगठनों से दूर ही रहते है।
ये हैं मुद्दे
छात्रसंघ चुनाव में कॉलेज की समस्याओं के मुद्दों की भरमार है। स्नातकोत्तर महाविद्यालय में नियमित कक्षाएं, रसायन शास्त्र, हिन्दी में क्रमोन्नति, संसाधन, ट्यूशन पर रोक तथा महाविद्यालय की ग्रेड में सुधार जैसे मुद्दे है। लेकिन जातियों के जोर में चुनाव में ये सभी मुददे दब जाते है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य बाबू सहाय मीना बताते है कि रसायन शास्त्र में पीजी स्तर की कक्षाएं चालू कराने के प्रयास किए जाने चाहिए। जिससे क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।