इलाज कराने आए मरीज को डॉक्टर उसी ब्रांड की दवा लिखते हैं, जो अस्पताल में नहीं मिलती है। डॉक्टर समझाते हैं कि दवा बाहर नहीं मिलेगी, ऑनलाइन मंगा लो। फिर डॉक्टर के इशारे पर साथ बैठा एमआर मरीज से नाम पता पूछकर दवा का पैकेट घर भिजवा देता है। इसमें डॉक्टर को मोटा कमीशन मिलता है और एमआर की नौकरी भी आसानी से चल जाती है। मरीज मजबूरी में डॉक्टर की बात मानकर दवा मंगाता है।
दवा कारोबारी डॉक्टरों के इस रवैए से परेशान हैं। उनका कहना है कि डॉक्टरों के जरिए दवा कंपनियां मरीजों को सीधे घर पर दवा पहुंचा रही हैं, इससे दवा दुकानदारों को नुकसान हो रहा है। डॉक्टरों के जरिए दवा सीधे मरीज तक पहुंचने से दवा कंपनियों को दवा दुकानदारों को भी कमीशन नहीं देना पड़ेगा। इसमें नुकसान को मेडिकल स्टोर संचालकों का ही है।
अभी तक आधा दर्जन से अधिक डॉक्टरों की पहचान हुई है, जो इस साठगांठ में लिप्त पाए गए हैं। पूर्व में बाहरी दवा लिखने पर एक डॉक्टर की सेवा खत्म हो चुकी है। इस मामले में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मुन्ना लाल विश्वकर्मा का कहना है कि प्रत्येक सोमवार को सभी डॉक्टरों को व्हाट्सएप से उपलब्ध दवाओं की सूची भेज दी जाती है। अगर ऐसा कोई मामला संज्ञान में आता है तो जांच कराकर सख्त कार्रवाई की जाएगी।