बिजली की रोशनी को तरस रहे ग्रामीण आपको बता दें कि कानपुर देहात मुख्यायल से 40 किलोमीटर दूर रसूलाबाद क्षेत्र के भंथौरी गांव अंधकार में होकर उजाला ढूंढ रहा है। अभी तक गांव में विद्युतीकरण नहीं हो सका है। जबकि किसी गांव को राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना में शामिल किया गया तो किसी को जनेश्वर मिश्र योजना में जोड़ा गया, लेकिन इस गांव में बिजली की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। ग्रामीण आजादी के बाद से अभी तक एक बल्ब की रोशनी को तरस रहे हैं। बिजली न होने से गांव के बच्चे पढ़ाई नही कर पा रहे है। अगर पढ़ाई कर भी रहे हैं तो दीपक या लालटेन का सहारा लेने को मजबूर हैं। जबकि दीपक से निकलने वाला धुँआ भी बच्चों के आंखों के लिए घातक साबित हो रहा है।
जन प्रतिनिधियों पर नही रहा भरोसा ग्रामीणों ने बताया कि खानापूर्ती के लिए गांव में दो साल पहले से ही खंभे गाड़ दिये गए थे, लेकिन वो ख़ंम्बे अभी भी शोपीस बने खड़े हुए है। जबकि इस गांव के पड़ोस के गांव में बिजली बराबर दौड़ रही है। ग्रामीणों की माने तो इस गांव की बिजली कागजो में तो चल रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। गांव से हाईटेंशन के तारों को निकाला गया है, लेकिन घरों तक बिजली पहुंचाने में अभी समय लगना तय है। गांव में खड़े बिजली के पोल ग्रामीणों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। ग्रामीण कहते हैं कि चुनाव नजदीक आते ही बड़े बड़े नेता गांव आकर वादा करके चले जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद नेता को याद नही रहता है।
इन ग्रामीणों ने बताया दुखड़ा ग्रामीणों से कई बार वादा किया गया, लेकिन अभी तक इसे हकीकत में नहीं बदला जा सका है। विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव वोट लेने के लिए जनप्रतिनिधि गांव आते हैं। मतदान होने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि वापस नजर नहीं आता है। इससे ग्रामीणों में नाराजगी है। ग्रामीण रामपाल, श्याम, दीपक हिमांशु, योगेश, राममोहन, अरविंद, शिवबालक, मन्नी लला, श्यामसुंदर, अनूप कुमार, सुंदरलाल, सुमन, मंजू, राम बेटी व सीता देवी ने बताया कि समस्या को लेकर कई बार अफसरों से भी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है। अब ग्रामीण बच्चों के भविष्य को लेकर पलायन करने की बात कह रहे हैं।