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कानपुर

सपा प्रदेश अध्यक्ष ने बजट पर जताई निराशा, किसानों के लिए अलग बजट बनाए जाने की मांग

पिछले साल वित्तमंत्री से मांग की थी कि किसानों के लिए अलग से बजट बनाएं,

कानपुरFeb 01, 2018 / 04:18 pm

Vinod Nigam

Budget
वैश्वीकरण के इस दौर में दुनिया के विकसित कहे जाने वाले सारे देशों का ध्यान भारत सरीखे उन विकासशील देशों की तरफ लगा हुआ है जहां उपलब्ध विशाल भू-भाग पर कृषि को और उन्नत बनाकर ज्यादा से ज्यादा खाद्यान्न पैदा करने की अपार सम्भावनाऐं बनी हुई हैं ताकि उनके देशों को भी खाद्यान्न मिल सके। सम्पन्न ब्रिटेन और विस्तृत क्षेत्रफल वाले रुस भी खाद्यान्न के लिए भारत-चीन सरीखे देशों पर निर्भर करते हैं। कोई भी देश औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में कितनी ही प्रगति कर ले लेकिन उसे भी अपने नागरिकों के लिए खाने के लिए अनाज चाहिए ही। यह बात पत्रिका के साथ खास बातचीत के दौरान समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने कही। बतादें खुद सपा प्रदेश अध्यक्ष की पहचान एक किसान नेता के रूप में जानी जाती है और यह भी अन्नदाताओं के लिए सड़क से लेकर संसद तक आवाज उठाते रहे हैं। नरेश उत्तम ने कहा कि हमने पिछले साल वित्तमंत्री से मांग की थी कि किसानों के लिए अलग से बजट बनाएं, जिससे 70 फीसदी आबादी भी देश की मुख्यधारा में वापस लौट सके।

बजट में किसानों के लिए कोई योजना नहीं


सपा के प्रदेश अध्यक्ष वित्तमंत्री के बजट को निराशाजनक बताया और कहा कि इसमें किसानों के लिए कुछ नहीं है। किसान बदहाल है और आएदिन खुदकुशी कर रहा है। मोदी सरकार किसानों को झूठें वादे दिखाकर वोट तो ले लिए, लेकिन पौने चार साल के दौरान इनके लिए जमीन पर कुछ नहीं किया। वित्तमंत्री के बजट में किसानों के लिए कोई योजना नहीं है। इसलिए हम मांग करते हैं कि मोदी सरकार किसानों के लिए अलग से बजट बनाए, जो सिर्फ अन्नदाताओं के लिए हो। नरेश उत्तम ने कहा कि देश की आजादी के बाद सरकारें हर तबके लिए कुछ न कुछ करती रहीं। सरकारी नौकरशाहों को उनकी मांग के अनुसार एक लेकर सातवां वेतन दिया गया। बजट में शहरी लोगों के लिए अनेक उपहार दिए गए, लेकिन आजाद भारत में 70 फीसदी आबादी अन्नदाताओं के लिए किसी भी वित्तमंत्री ने अपनी तिजोरी से इनके लिए कुछ नहीं दिया। मलहम लगाने के नाम पर कर्जामाफी कर वाहवाही लूटी। पर केंद्र की सरकार ने किसानों के लिए अलग से बजट बनाए जाने पर विचार नहीं किया। सरकारी उपेक्षा के चलते आलू और धान किसान बदहाल है। उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है।

सपा सरकार आई तो किसानों के लिए बनाएंगे बजट


नरेश उत्तम ने कहा कि हम किसान के बेटे हैं और हमें पता है कि किसान का दर्द क्या होता है। सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान किसानों के लिए यूपी में कई योजनाएं चलाई गईं, जिनके चलते कुछ हद तक उन्हें फाएदा मिला। केंद्र में सपा सरकार होती तो किसानों के लिए अलग से बजट बनाया जाता। मोदी सरकार ने किसानों के लिए पौने चार साल में कुछ नहीं किया। मनरेगा योजना भी बेपटरी हो गई। जिस इलाके में हम रहते हैं वहां से सैकड़ों किसान पलायन कर गए। नरेश उत्तम कहते हैं कि इस देश के किसानों का दुर्भाग्य यह है कि वे नाना प्रकार की उपेक्षा और तकलीफें सहकर भी देश की जरुरत का धान-गेहॅूं-गन्ना पैदा कर ही रहे हैं। जिस देश में आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में हर साल दोगुना की वृद्धि हो रही है वहॉं किसानों को सरकारी समर्थन मूल्य के नाम पर प्रति कुन्तल सिर्फ 30-40 रुपये वृद्धि की सहमति दी जाती है। वह भी तब मिल सकता है जब किसान के उत्पाद की खरीद सरकार स्वयं करे और तमाम दावे करने के बावजूद सरकार किसानों से सिर्फ धान और गेहॅूं खरीदने का ही बन्दोबस्त करती है।

दो करोड़ किसानों ने छोड़ी किसानी


नरेश उत्तम कहते हैं कि सरकारी रिपोर्ट की मानें तो पिछले 20 वर्षों में दो करोड़ से अधिक किसानों ने खेती करना छोड़कर अन्य कार्य अपना लिया। किसाना घट रहे हैं और मजदूर बढ़ रहे हैं। इसका अर्थ समझना कोई कठिन काम नहीं। देश में ज्यादा से ज्यादा मजदूर उपलब्ध रहेंगें तो कल-कारखानों को सस्ते में श्रमिक मिलते रहेंगें। सरकार की नीति देखिए कि वह अपने चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी को जितनी मासिक तनख्वाह देती है, उसका चैथाई भी न्यूनतम मजदूरी के तहत एक मजदूर को नहीं देती। कृषि को जब तक लाभकारी नहीं बनाया जाएगा और किसानों को उनकी कृषि योग्य जमीन पर खेती करने के बदले एक निश्चित आमदनी की गारन्टी नहीं दी जायेगी, जैसा कि अमेरिका सहित तमाम विकसित देशों में है, तब तक किसानों को खेती से बॉंधकर या खेती की तरफ मोड़कर नहीं किया जा सकता। खेती से होने वाली आमदनी को बढ़ाने के प्रयास इस तरह किये जाने चाहिए कि किसान धीरे-धीरे सरकारी अनुदान से मुक्त होकर खेती पर निर्भर रह सकें।

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