झोपड़ी में रहती थी बुधिया
गांधीगृम में बुधिया नाम की एक बुजुर्ग महिला पिछले तीन सालों से सड़क के किनारे झोपड़ी में रहती थी। वो भिक्षा के जरिए अपने पेट भरती थी। स्थानीय लोगों ने बताया कि वो महोबा जिले के रहने वाली थी। पति की मौत हो चुकी थी। वो अपने बेटे प्रहलाद के साथ रहती थी। बेटे को बढ़ा लिखाकर इंजीनियर बनाया। बेटे जिस कंपनी में जॉब करता था, वहीं की एक युवती के साथ शादी कर ली। विवाह के बाद से प्रहलाद अपनी मां को भुला दिया और गाजियाबाद में पत्नी के साथ रहने लगा। पड़ोसी बुजुर्ग महिला की देखभाल करते। तीन साल से पहले प्रहलाद महोबा आया और मां को गजियाबाद चलने को कहा।
गाजियाबाद निकल गया कपूत
महोबा से प्रहलाद अपनी मां को गाजियाबाद के लिए निकला, लेकिन वो उसे कानपुर में छोड़ दिया। वो कई दिनों तक भटकती रही। पेट भरने के लिए उसने भिक्षा मांगी। इसी दौरान बुधिया बीमार पड़ गई तो गांधी ग्राम के एक युवक ने उसे अस्पताल में एडमिट कराया। ठीक होने के बाद वो सड़क के किनारे झोपड़ी में रहने लगी। हरबार दिवाली पर वो अपने बेटे का इंतजार करती। सुबह से लेकर देररात हर आने-जाने वाली कार पर टकटकी लगाती। त्योहार बीत जाता और दिन निकल जाते, पर प्रहलाद नहीं आया।
झोपड़ी में ली आखरी सांस
गांधीगृम के लोग बुधिया को खाना-पीने की व्यवस्था करते। बीमार पड़ती तो दवा करते। लेकिन कुछ दिन पहले वो बीमार पड़ गई। उसका इलाज चल रहा था, लेकिन रात में उसकी मौत हो गई। सुबह जब बुधिया झोपड़ी से बाहर नहीं निकली तो मोहल्लेवालों को चिंता हुई। वो झोपड़ी के अंदर गए तो जमीन पर बुधिया का शव पड़ा था। लोगों ने नगरनिगम को सूचना दी, पुलिस को बुलाया पर कोई नहीं आया। बुधिया की मौत की खबर जब पार्षद मनोज यादव को हुई तो कार से पहुंचे और खुद अकेले शव को गोद में लेकर बाहर लाए और कार में रखकर गंगा घाट ले गए।
इस श्रृवण ने दी मुखाग्नि
पार्षद मनोज यादव बुधिया के शव को लेकर गंगाघाट पहुंचे और विधि-विधान से उसका दाहसंस्कार किया। पंडितों को भोज कराया तो अस्थियों को संगम में प्रवाहित कराया। मनोज ने कहा कि वो कई वर्षो से अनाश बच्चों और अपनों की प्रताड़ना का दंश झेल रहे बुजुर्ग लोगों का सहारा बन रहे हैं। मनोज ने बताया कि वो अपनी कमाई का पचास फीसदी हिस्सा आश्रृमों को दान करते हैं और दिवाली अपने घर के बजाए आश्रृम में रहने वाले लोगों के साथ मनाते हैं। मनोज ने बताया कि बुधिया को हम आश्रृम ले गए, पर एकदिन के बाद वो वहां से चली आई और हमसे कहा कि मैं इसी झोपड़ी में रहना चाहती हूं। उसके कहने पर हम राजी हुए पर उसकी मौत के बाद हमें अंदर से झंकझोर दिया है।