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पेट की आग बुझाने के लिए जिंदगी खफा रही बेटियां

locationकानपुरPublished: Dec 31, 2018 04:05:40 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

दूसरे शहरों से आकर सड़क के किनारे झोपड़ी बनाकर रहते हैं ये लोग, पुरूष करते हैं मजूदरी तो बेटियां करतब के साथ कूड़े कचरे के ढेर में सवांर रहीं जिंदगी।

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पेट की आग बुझाने के लिए जिंदगी खफा रही बेटियां

कानपुर। गरीबी हटाओ, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार आदि अभियान, अधिकार व प्रावधान का सड़कों पर सरेआम मजाक उड़ा। सरकार लगातार इन अभियानों के जरिये बालिका शिक्षा व गरीबी दूर करने का दावा करती रही है, पर जमीनी हकीकत कुछ और है। देखना हो तो नगर के सड़कों पर नजर दौड़ा लिजीए। देखिए कि किस तरह अपना और परिवार को पेट भरने को मासूम बच्चियां मौत से खेलती हैं तो कुछ कूड़े कचरे के ढेरों के अलावा पार्को में बैनर होडिंग्स को समेट कर उससे दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करती हैं।

न्हें भी नहीं आया तरस
बार एसोसिएशन के चुनाव परिणाम के दिन डीएवी कॉलेज में वकीलों की भीड़ थी। वकील और नेताओं का जमघट था। बैनर और पोस्टर सड़कों में पड़े थे। इसी दौरान एक दर्जन नाबालिग लड़कियां वहां पर बोरे लेकर पहुंच गई। वकीलों के पैरों के तले दबे बैनरों को बीनती तो सड़क पर रददी को उठाकर बोरी में भरतीं। इस दौरान भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा के कई दिग्गज नेता मौजूद थे। बेटियों को रोकने के बजाए उन्हें जल्द से जल्द सफाई का हुक्म सुना रहे थे। समाजसेवी राजेंद्र खरे कहते हैं कि आजादी के बाद आज भी बेटी को वो नहीं मिला, जिसकी वो हकदार थी। मोदी सरकार ने कई नारे दिए पर 2018 कि आखरी दिन वो हवा-हवाई साबित हुए।

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साल गया, हालत नहीं बदले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बेटी-पढ़ाओ और बेटी बचाओ को लेकर आएदिन बयान देते रहते हैं। इसी के तहत पत्रिका टीम मंगलवार की सुबह 2018 के आखरी दिन सड़क पर उतरी और बेटियों की जमीनी हकीकत परखी। कानपुर नगर की जो तस्वीर सामने आई, वो दयनीय थी। शबड़ा चौराहे के पास छत्तीसगढ़ के बिलासपुर निवासी अंजनी अपनी सात साल की बेटी के साथ दिखी। नाबालिग बच्ची लाठी में बंधी रस्सी पर चलकर करतब दिखा रही थी। बच्ची ने अपने सिर पर कई बर्तन रखे हुए थे। रस्सी पर रेंगेती इस बच्ची का संतुलन देखते ही बन रहा था। चेहरे पर खौफ के निशां नहीं थे, पर देखने वाले दांतों तले अंगुली दबाए हुए थे। उनके करतब देखकर हर कोई हैरत में था। पूरे खेल में हादसे की हर पल संभावना थी, इसके बावजूद बच्ची अपने व भाई की जान जोखिम में डाल कर करतब दिखाती रही।

 

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नौकरशाह-खादी ने देखकर मोड़ा मुंह
बेटी जब रोटी के लिए करतब दिखा रही थी तो सड़क से सत्ताधारी दल व विपक्ष के नेताओं की कारें पहले रूकतीं और कुछ देर के बाद बड़ जातीं। इतना ही नहीं कई नौकरशाह भी यहां से निकले पर किसी ने बेटी की सुधि नहीं ली। वो करीब पंद्रह से बीस मिनट तक करतब दिखाती रही। इस मौके पर जब हमने बेटी की मां से बात की तो उसने बताया कि बिलासपुर के जिस गांव के हम रहने वाले हैं, वहां पर रोजगार के साधन नहीं है। करीब पांच सौ परिवार वहां से आकर कानपुर के अलावा आसपास के क्षेत्रों में सड़क के किनारे फुटपाथ पर रहते हैं। पति को रोजगार नहीं मिला तो वो रिक्शा चलाकर कुछ रूपए कमाकर लाते हैं। खर्चा पूरा करने के लिए मैं बेटी के साथ चौरहों-मोहल्लों में करतब दिखा कर कुछ पैसे कमा लेती हूं।

 

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हम भी पढ़ना चाहते हैं ककहरा
मासूम बेटी से जब करतब के बारे में पूछा तो पहले उसने बताया कि बाबू हम भी पढ़ना चाहते हैं। स्कूल जाकर ककहरा सीखने चाहते हैं। पर आर्थिक स्थित ठीक नहीं होने के चलते हमें सुबह से लेकर शाम तक रस्सी पर चलना पड़ता है। तलवे में गहरे घाव होने के बावजूद भी हम लोगों को मनोरजंन कर दो वक्त की रोटी के लिए जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं। मासूम की मां ने बताया कि उसके तीन बेटियां हैं। तीनों स्कूल जाने के लिए हरदिन लड़ती हैं। इनके पिता एक सरकारी स्कूल में दाखिले के लिए गए, पर मस्साब ने आधार कार्ड मांग लिया। पहचान पत्र नहीं होने के चलते स्कूल में दखिला नहीं मिला।

 

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