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ऐसे मनानी होंगी खुशियां, ताकि न उजड़े पर्यावरण की भी ‘बखिया’

locationकानपुरPublished: Oct 31, 2018 02:21:30 pm

दीपावली के महापर्व काफ़ी करीब है. ऐसे में लोग हर तरह की खरीददारी कर रहे हैं, लेकिन बिना भगवान गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों की बात किए यह पर्व अधूरा है. यहां याद दिला दें कि शहर के कलक्टरगंज में गणेश-लक्ष्मी की जो थोक मार्केट लगती है, वहां शहर के साथ ही आसपास के जिलों तक मूर्तियां फुटकर में बेचने के लिए ले जाई जाती हैं.

Kanpur

ऐसे मनानी होंगी खुशियां, ताकि न उजड़े पर्यावरण की भी ‘बखिया’

कानपुर। दीपावली के महापर्व काफ़ी करीब है. ऐसे में लोग हर तरह की खरीददारी कर रहे हैं, लेकिन बिना भगवान गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों की बात किए यह पर्व अधूरा है. यहां याद दिला दें कि शहर के कलक्टरगंज में गणेश-लक्ष्मी की जो थोक मार्केट लगती है, वहां शहर के साथ ही आसपास के जिलों तक मूर्तियां फुटकर में बेचने के लिए ले जाई जाती हैं. इस बाजार की खासियत यह है कि यहां जो गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बिकती हैं वह पूरी तरह से इको फ्रैंडली होती हैं. जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के कुम्हार इन मूर्तियों का साल भर निर्माण करते हैं और दिवाली पर यहां खुद बिक्री करने आते हैं. इस थोक बाजार में 16 रुपए से लेकर 500 रुपए तक गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बिकती है. यह बाजार सिर्फ एक हफ्ते के लिए ही लगती है.
ऐसी मिली है जानकारी
इस बार बाजार में मूर्तियों को बेचने वालों से लेकर खरीदने वाले तक जागरूक नजर आए. मूर्ति के हर थोक व्यापारी से बात करने पर पता चला कि यहां सिर्फ मिट्टी से ही बनी मूर्तियों की बिक्री होती है. इसके पीछे कारण है कि क्योंकि ये मूर्तियां पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाती हैं. कलक्टरगंज गल्ला मंडी में एक सप्ताह की यह बाजार 70 साल से लगती चली आ रही है. हर साल यहां 200 से अधिक कुम्हार अपने हाथ की बनाई मूर्तियों को बेचने आते हैं.
ऐसे हैं थोक बाजार के दाम
आप भी थोक बाजार में इन मुर्तियों के दाम सुनकर चौंक जाएंगे. प्राप्‍त जानकारी के अनुसार मूर्ति व्यापारी थोक में मूर्तियां 100 रुपए में 6 जोड़े से लेकर 3000 रुपए में 6 जोड़े तक में बेचते हैं. यानी एक जोड़ी मूर्ति करीब 16 रुपए से लेकर करीब 500 रुपए तक में उपलब्ध थी.
ऐसा कहना है कुम्हारों का
इस बारे में मिट्टी का काम करने वाले कुम्‍हारों का कहना है कि दिवाली के करीब एक सप्ताह पहले से वे थोक बाजार लगाते हैं. शहर के अलावा कई जिलों से दुकानदार उनसे मूर्तियां खरीद ले जाते हैं. यहां सिर्फ मिट्टी से बनी मूर्तियां ही बेची जा रही हैं. ये मिट्टी शुद्ध भी होती है, पवित्र भी और इको फ्रेंडली भी.
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