हैलट की दशा इन दिनों बेहद खराब है। यहां दो वार्डों के बीच एक ड्रेसिंग ट्रॉली है। इसमें उपयोग आने वाले छोटे-छोटे उपकरण जो डिस्पोजल होते हैं उनकी गम्भीर किल्लत है। जबकि 100-120 मरीजों के छोटे-बड़े ऑपरेशन रोज होते हैं। इस संबंध में एक जूनियर डॉक्टर का कहना है कि एक बार ड्रेसिंग के बाद एक उपकरण खराब हो जाता है। 50 से 60 मरीज एक वार्ड में होते हैं। उपकरणों के इतने सेट नहीं हैं। दस्ताने, विसंक्रमित कॉटन तो मंगवा लिए जाते हैं पर उपकरण मरीजों से नहीं मंगवाए जा सकते हैं। कभी-कभी समय से उपकरण विसंक्रमित होकर भी नहीं आते हैं, ऐसे में केस पेंडिंग हो जाते हैं।
ऑर्थोपेडिक सर्जरी विभाग में 10 रुपए का पिन भी मरीज को बाहर से खरीदना पड़ता है। इम्प्लांट के लिए अस्पताल में खरीदारी की कोई व्यवस्था नहीं है। मरीजों को पूरा ऑपरेशन अपने खर्च पर कराना पड़ता है। विभाग की ओर से 30 लाख रुपए सालाना इंप्लांट की खरीदारी के लिए डिमांड भेजी गई है मगर अभी तक उस पर कोई फैसला नहीं हुआ है। हैलट में हर साल 12 लाख मरीजों की ओपीडी होती है और 175 मरीज यहां पर हर रोज भर्ती होते हैं।
अस्पताल में भर्ती मरीजों को पूरी दवाएं तक नहीं मिल पाती हैं। दवाओं के बजट से अधिकतर खरीदारी ओपीडी में मरीजों के लिए हो रही है। इनडोर में भर्ती होने वाले मरीजों को 70 फीसदी दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। यहां तक कि एक सर्जरी में ऑपरेशन के समय मरीजों को पांच से सात हजार रुपए की दवाएं बाहर से लानी पड़ती है। अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि 350 दवाओं की आरसी है मगर उनमें 70 से 75 दवाएं ही खरीद पा रहे हैं।